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भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद, 1.5 लाख श्रद्धालुओं ने किए दर्शन

रुद्रप्रयाग: उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित तृतीय केदार भगवान तुंगनाथ मंदिर के कपाट गुरुवार को शीतकाल के लिए विधिवत रूप से बंद कर दिए गए। हिमालय की गोद में स्थित यह विश्व का सबसे ऊँचाई वाला शिव मंदिर है, जो समुद्र तल से लगभग 3,680 मीटर (12,073 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।

हर वर्ष की तरह, इस बार भी कपाट बंद होने की प्रक्रिया बेहद भव्य और धार्मिक उत्साह से संपन्न हुई। बदरी-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) के मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल की उपस्थिति में सुबह 10:30 बजे से विधिवत पूजा-अर्चना आरंभ हुई।

भव्य विधि-विधान से हुआ कपाट बंद

पूरे क्षेत्र में भक्ति का वातावरण छा गया था। भक्तों ने मंत्रोच्चार और भजन-कीर्तन के बीच भगवान तुंगनाथ की विशेष पूजा में भाग लिया। भोग, यज्ञ और हवन के बाद भगवान के स्वयंभू शिवलिंग को समाधि रूप प्रदान किया गया। इसके बाद सुबह 11:30 बजे मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए।

कपाट बंद होने के उपरांत भगवान तुंगनाथ की चल (चलित) विग्रह डोली ने अपने प्रथम पड़ाव चोपता के लिए प्रस्थान किया। परंपरा के अनुसार डोली आगे मक्कूमठ पहुँचेगी, जहाँ पूरे शीतकाल के दौरान भगवान तुंगनाथ की पूजा-अर्चना की जाती है।

श्रद्धालुओं की भावनाओं का उमड़ा सैलाब

इस वर्ष लगभग डेढ़ लाख (1.5 लाख) से अधिक श्रद्धालुओं ने भगवान तुंगनाथ के दर्शन किए। कपाट बंद होने के अवसर पर भी 500 से अधिक भक्त इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने। मंदिर परिसर में चारों ओर “हर हर महादेव” और “जय तुंगनाथ” के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा। श्रद्धालुओं का कहना था कि तुंगनाथ यात्रा उनके जीवन का सबसे पवित्र अनुभव है। यहाँ पहुँचकर आत्मा को शांति और अध्यात्मिक ऊर्जा का अद्भुत अनुभव होता है।

तुंगनाथ मंदिर का धार्मिक और भौगोलिक महत्व

तुंगनाथ, पंचकेदारों में तीसरा केदार (तृतीय केदार) है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह वही स्थान है जहाँ भगवान शिव के भुजाओं (हाथों) की पूजा होती है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना है और इसकी स्थापना पांडवों द्वारा की गई मानी जाती है। तुंगनाथ से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध चंद्रशिला शिखर स्थित है, जहाँ से हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों का भव्य दृश्य दिखाई देता है।

शीतकालीन व्यवस्था और आगामी पूजा स्थल

कपाट बंद होने के बाद भगवान तुंगनाथ की पूजा अब मक्कूमठ (Makku Math) में की जाएगी। यहाँ तुंगनाथ जी की चल विग्रह डोली की स्थापना की जाती है और पूरे शीतकाल में भक्त वहीं दर्शन कर सकते हैं।शीतकाल में तुंगनाथ क्षेत्र बर्फ से ढक जाता है, जिससे मंदिर तक पहुँचना कठिन हो जाता है। इसलिए हर वर्ष अक्तूबर-नवंबर में कपाट बंद कर दिए जाते हैं और अप्रैल-मई में पुनः खोले जाते हैं।

आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र

तुंगनाथ न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। यहाँ आने वाले यात्रियों को हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता, देवभूमि की संस्कृति और अध्यात्म का अनूठा संगम देखने को मिलता है। राज्य सरकार और बीकेटीसी लगातार सुविधाएँ बढ़ाने के प्रयास में हैं ताकि आने वाले वर्षों में अधिक से अधिक तीर्थयात्री तुंगनाथ के दर्शन कर सकें।

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