योगी सरकार के बजट पर सवाल: साढ़े आठ माह में सिर्फ 35.5% खर्च, योजनाएं कागजों में अटकी
उत्तर प्रदेश: योगी आदित्यनाथ सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष 2025-26 के बजट में लोक-लुभावन और विकासपरक योजनाओं के लिए रिकॉर्ड धनराशि का प्रावधान किया था। वित्तीय संकट न होने के बावजूद सरकार ने कुल 8.40 लाख करोड़ रुपये के बजट में से करीब 3.88 लाख करोड़ रुपये (46 प्रतिशत) नई और पुरानी योजनाओं-परियोजनाओं के लिए आवंटित किए। उद्देश्य था—आम जनता को राहत, बेहतर बुनियादी सुविधाएं और चुनावी वर्ष से पहले विकास की तेज रफ्तार।
लेकिन हकीकत यह है कि वित्तीय वर्ष के साढ़े आठ माह बीतने के बाद (15 दिसंबर तक) योजनाओं पर सिर्फ 1.38 लाख करोड़ रुपये, यानी महज 35.5 प्रतिशत राशि ही खर्च हो सकी है। इसका सीधा असर यह है कि प्रदेशवासियों को सरकार की मंशा के अनुरूप योजनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पा रहा।
चुनावी वर्ष में बड़े ऐलान, जमीनी अमल कमजोर
पंचायत चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए सरकार ने बजट में कई बड़ी घोषणाएं की थीं। 20 फरवरी को आम बजट पेश करते समय जिन योजनाओं का व्यापक प्रचार किया गया, उनमें से कई योजनाएं अब तक धरातल पर उतरती नजर नहीं आ रहीं। कई योजनाओं का बजट कागजों तक ही सीमित है, जबकि कुछ में 50 प्रतिशत से भी कम खर्च हुआ है।
यह स्थिति तब है जब सरकार के पास धन की कोई कमी नहीं है। इसके बावजूद लगभग ढाई लाख करोड़ रुपये अभी तक खर्च नहीं हो सके हैं, जो प्रशासनिक सुस्ती और क्रियान्वयन में लापरवाही की ओर इशारा करता है।
अफसरशाही की हीला-हवाली बनी बड़ी वजह
योजनाओं-परियोजनाओं को अमली जामा पहनाने में अधिकारियों की ढिलाई साफ नजर आ रही है। 12 माह के वित्तीय वर्ष में से साढ़े आठ माह गुजर जाने के बाद भी अगर सिर्फ 35.5 प्रतिशत बजट खर्च हो पाया है, तो यह गंभीर चिंता का विषय है। इससे न सिर्फ राज्य की विकास योजनाएं प्रभावित हो रही हैं, बल्कि केंद्र सरकार से मिलने वाली धनराशि पर भी असर पड़ रहा है।
दरअसल, योजनाओं की धीमी प्रगति के कारण उपयोगिता प्रमाण पत्र (UC) समय से जारी नहीं हो पा रहे हैं, जिससे केंद्र प्रायोजित योजनाओं की अगली किस्त राज्य को देर से मिलती है।
मुख्यमंत्री योगी का सख्त रुख
योजनाओं के खराब क्रियान्वयन से नाराज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में अधिक बजट वाले 20 प्रमुख विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों की कड़ी समीक्षा बैठक की। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि बजट खर्च करने में ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
उन्होंने सभी संबंधित विभागों को निर्देश दिया कि योजनाओं को जल्द से जल्द जमीन पर उतारा जाए और बजट का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित किया जाए। हालांकि, वित्तीय वर्ष के बचे हुए साढ़े तीन माह में 64 प्रतिशत राशि खर्च करना एक बड़ी चुनौती माना जा रहा है।
कई बड़े विभाग पिछड़े
ग्राम्य विकास, नगर विकास, खाद्य एवं रसद, औद्योगिक विकास, नमामि गंगे एवं ग्रामीण जलापूर्ति, सिंचाई, चिकित्सा शिक्षा, बेसिक शिक्षा, पंचायती राज, पर्यटन, परिवहन और आवास एवं शहरी नियोजन जैसे अहम विभाग 15 दिसंबर तक 40 प्रतिशत खर्च भी नहीं कर सके हैं।
प्रमुख योजनाओं में खर्च की बेहद खराब स्थिति
कई प्रमुख योजनाओं में तो स्थिति और भी चिंताजनक है। टैबलेट/स्मार्ट फोन वितरण, स्मार्ट स्कूल निर्माण, कन्वेंशन सेंटर, पीएम आदर्श ग्राम योजना, बसों की खरीद, रिंग रोड-फ्लाईओवर, पीएम आवास योजना (ग्रामीण व शहरी), पीएमजीएसवाई, गांवों में डिजिटल लाइब्रेरी और विवाह घर जैसी योजनाओं में खर्च शून्य प्रतिशत दर्ज किया गया है।
वहीं जल जीवन मिशन जैसी अहम योजना में भी 16 हजार करोड़ रुपये के बजट के मुकाबले सिर्फ 0.74 प्रतिशत खर्च हो सका है। इससे सरकार के “हर घर जल” अभियान पर भी सवाल उठने लगे हैं।
विकास बनाम प्रशासनिक क्षमता
स्पष्ट है कि बजट आवंटन और जमीनी क्रियान्वयन के बीच बड़ा अंतर है। अगर समय रहते खर्च की रफ्तार नहीं बढ़ी, तो विकास योजनाएं कागजों तक सीमित रह जाएंगी और इसका राजनीतिक असर भी पड़ सकता है।अब सबकी निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि योगी सरकार शेष महीनों में बजट खर्च की रफ्तार बढ़ाकर योजनाओं को कितना धरातल पर उतार पाती है।
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