नियॉन एप: कॉल रिकॉर्डिंग, प्राइवेसी और डेटा सुरक्षा पर उठते सवाल
कॉल रिकॉर्डिंग का दावा और टर्म्स ऑफ सर्विस
नियॉन एप हाल ही में चर्चा में आया है क्योंकि यह अपने यूजर्स की इनबाउंड और आउटबाउंड कॉल्स रिकॉर्ड कर सकता है। कंपनी का दावा है कि यह सिर्फ यूजर की तरफ का ऑडियो रिकॉर्ड करता है, यानी दूसरी तरफ का व्यक्ति सीधे तौर पर रिकॉर्ड नहीं होता। लेकिन जब इसके टर्म्स ऑफ सर्विस को पढ़ा गया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आए।
नियमों के अनुसार, नियॉन को यूजर्स के रिकॉर्डेड डेटा का न केवल इस्तेमाल करने बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर संशोधित, साझा या बेचने का भी अधिकार है। यही वजह है कि डेटा प्राइवेसी को लेकर गंभीर चिंताएं खड़ी हो गई हैं।
कानूनी और तकनीकी स्थिति
टेक्नोलॉजी विशेषज्ञों का मानना है कि यह एप फिलहाल कानूनी दायरे में आता है, क्योंकि भारतीय कानून के मुताबिक अगर एक पक्ष की सहमति से कॉल रिकॉर्ड की जाती है तो वह गैरकानूनी नहीं मानी जाती। लेकिन कानूनी होने का यह मतलब बिल्कुल नहीं कि यह सुरक्षित भी है। रिकॉर्डेड डेटा का उपयोग फेक कॉल्स तैयार करने में हो सकता है। एआई की मदद से इन ऑडियो क्लिप्स से डीपफेक वॉइस बनाई जा सकती है। अगर यह डेटा हैकर्स के हाथ लगा तो इसे धोखाधड़ी, ब्लैकमेल और साइबर क्राइम में इस्तेमाल किया जा सकता है।
यूजर्स की प्राइवेसी पर असर
आज के दौर में मोबाइल एप्स हमारी निजी जिंदगी का हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे में जब कोई एप हमारी कॉल्स तक रिकॉर्ड करने लगे, तो यह व्यक्तिगत प्राइवेसी के लिए सीधा खतरा है। रिकॉर्ड की गई कॉल्स में सिर्फ यूजर ही नहीं, बल्कि उसके परिवार, दोस्तों, क्लाइंट्स या ऑफिस से जुड़ी बातचीत भी शामिल हो सकती है। यह जानकारी गलत हाथों में जाने पर व्यक्तिगत, सामाजिक और व्यावसायिक नुकसान हो सकता है। खासतौर पर कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स और बिज़नेस क्लाइंट्स के लिए यह रिस्क और ज्यादा बढ़ जाता है।
एआई और प्राइवेसी का संतुलन
एआई टेक्नोलॉजी हमारे जीवन को आसान बनाने के लिए बनाई गई है। लेकिन हर सुविधा के साथ एक कीमत भी जुड़ी होती है। नियॉन जैसे एप हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि क्या थोड़ी सी सुविधा के लिए हम अपनी प्राइवेसी को दांव पर लगा रहे हैं?आज यूजर्स खुद अपनी जानकारी साझा करने को तैयार हो जाते हैं, बिना यह सोचे कि भविष्य में इसका कैसे इस्तेमाल किया जाएगा। आने वाले समय में, ऐसे डेटा का उपयोग मार्केटिंग, निगरानी या साइबर अपराध तक में किया जा सकता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार और कंपनियों को मिलकर डेटा प्रोटेक्शन और यूजर्स की प्राइवेसी के बीच संतुलन बनाना होगा।
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