वक्फ बोर्ड कानून 2025 पर सुप्रीम कोर्ट की रोक: सदस्यता, गैर-मुस्लिमों की संख्या और कलेक्टर के अधिकार पर बड़ा फैसला
नई दिल्ली: संसद के बजट सत्र में पारित हुए वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 को लेकर देशभर में बहस और विरोध हुआ था। लोकसभा और राज्यसभा से बहुमत से पास होने के बाद 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस पर मुहर लगा दी थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के कुछ अहम प्रावधानों पर रोक लगाकर बड़ा फैसला सुनाया है।
कोर्ट में सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की अगुवाई वाली दो जजों की बेंच ने वक्फ कानून के खिलाफ दायर 5 याचिकाओं पर सुनवाई की। इस दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने याचिकाकर्ताओं की पैरवी की। वहीं, सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखा।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य फैसले
1. कौन बन सकेगा वक्फ बोर्ड का सदस्य?
पहले: अधिनियम में प्रावधान था कि केवल वे ही लोग वक्फ बोर्ड के सदस्य बन सकते हैं, जिन्होंने कम से कम 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन किया हो।
अब: सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगाते हुए कहा कि जब तक राज्य सरकारें नियम नहीं बनातीं, यह शर्त लागू नहीं होगी।
2. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की संख्या
पहले: कानून में कहा गया था कि वक्फ बोर्ड के 11 सदस्यों में गैर-मुस्लिम सदस्य भी होंगे।
अब: सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि वक्फ बोर्ड में 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं हो सकते। वहीं, केंद्रीय वक्फ परिषद में भी 4 से ज्यादा गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे।
3. जिला कलेक्टर के अधिकार
पहले: वक्फ कानून 2025 के अनुसार, वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण या स्वामित्व का फैसला जिला कलेक्टर करता।
अब: सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगाते हुए कहा कि जिला कलेक्टर को नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर निर्णय देने का अधिकार नहीं हो सकता। यह शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Power) का उल्लंघन है।
राजनीतिक और सामाजिक असर
वक्फ कानून में बदलाव को लेकर देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए थे। मुस्लिम संगठनों ने इसे धार्मिक अधिकारों में दखल बताया था, जबकि सरकार का कहना था कि यह कानून पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए जरूरी है। अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस मुद्दे पर नई बहस शुरू होना तय है।
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