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प्रथम दिवस: मां शैलपुत्री की पूजा और कलश स्थापना का विशेष महत्व

नई दिल्ली। देशभर में श्रद्धा और उल्लास के साथ शारदीय नवरात्र 2025 की शुरुआत हो चुकी है। इस बार तृतीय तिथि के कारण नवरात्र का एक दिन अधिक होगा और माता रानी की विदाई 2 अक्टूबर 2025 को होगी। पूरे नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना के साथ-साथ लक्ष्मी और सरस्वती की विशेष पूजा भी की जाएगी।

मां शैलपुत्री की पूजा

नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा का विधान है। माता का इस बार हाथी पर आगमन हुआ है, जिसे ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत शुभ माना गया है। मान्यता है कि हाथी पर आगमन सुख-समृद्धि और शांति का प्रतीक होता है।

कलश स्थापना का महत्व और शुभ मुहूर्त

नवरात्र में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। इसे शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

  • शुभ मुहूर्त: सुबह 6:09 से 8:06 बजे तक

  • अभिजीत मुहूर्त: 11:39 से 12:38 बजे तक

पंडितों के अनुसार, कलश शुद्ध मिट्टी और जल से स्थापित करना चाहिए तथा उसमें जौ बोना बेहद शुभ होता है।

नवरात्रि में पूजन सामग्री और मंत्र

नवरात्र के दौरान माता को लाल चुनरी, फूल, नारियल, ऋतुफल और मिष्ठान अर्पित करने का महत्व है। भक्तजन दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं और
“ॐ ऐं हीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” मंत्र का जाप करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

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