Health : आज के दौर में बदलती जीवनशैली, सोशल मीडिया का प्रभाव और समय की कमी ने युवाओं के खानपान की आदतों को पूरी तरह बदल दिया है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है टीनएजर्स में तेजी से बढ़ता मोटापा, जो सीधे तौर पर फास्ट फूड कल्चर से जुड़ा हुआ है।
किशोरावस्था यानी 13 से 19 साल के बीच का समय शरीर के विकास और मानसिक संतुलन के लिए बेहद अहम होता है। लेकिन जब पोषण की जगह फैट, शुगर और प्रोसेस्ड खाने की भरमार हो जाए, तो शरीर पर इसके दुष्परिणाम भी साफ नजर आते हैं।
आजकल के किशोरों का एक बड़ा हिस्सा बर्गर, पिज्जा, फ्रेंच फ्राइज, चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स और इंस्टेंट नूडल्स जैसे फास्ट फूड का दीवाना है। ये सभी चीजें स्वाद में भले ही लाजवाब लगती हों, लेकिन सेहत के लिए खतरनाक होती हैं।
इन खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की भारी कमी होती है, जबकि इनमें कैलोरी, ट्रांस फैट और कृत्रिम स्वाद बढ़ाने वाले रसायन अधिक होते हैं। इसका असर यह होता है कि शरीर को सही विकास के लिए जरूरी पोषण नहीं मिल पाता, और मोटापा तेजी से बढ़ता है।
भारत में हाल ही में हुए एक सर्वे के अनुसार, 13 से 19 साल के किशोरों में लगभग 20% युवा मोटापे या ओवरवेट की श्रेणी में आ चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यही रफ्तार रही तो आने वाले वर्षों में भारत दुनिया के सबसे मोटे किशोरों वाले देशों में शामिल हो सकता है। इससे न केवल आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है, बल्कि यह हाई ब्लड प्रेशर, टाइप-2 डायबिटीज, हार्ट डिजीज और लिवर की समस्याओं जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ाता है।
फास्ट फूड का मोह केवल स्वाद तक सीमित नहीं है। यह सोशल मीडिया और मार्केटिंग ट्रेंड्स का भी हिस्सा बन चुका है। किशोर अक्सर इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फूड चैलेंज और रिव्यू देखते हैं, जिससे वे अनजाने में इस संस्कृति का हिस्सा बनते जाते हैं। इसके अलावा, माता-पिता की व्यस्त दिनचर्या और घर में हेल्दी खाने का विकल्प कम होने से बच्चे बाहर के खाने की ओर और आकर्षित होते हैं।
इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए स्कूलों और माता-पिता को मिलकर काम करना होगा। बच्चों को स्वस्थ खाने की आदतें सिखाने की जरूरत है। स्कूल कैंटीनों में हेल्दी ऑप्शन्स लाना और स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना जरूरी है। साथ ही, घर में भी पौष्टिक, स्वादिष्ट और रंग-बिरंगे हेल्दी फूड्स तैयार कर बच्चों को फास्ट फूड से दूर रखना आसान हो सकता है।
सरकार को भी इस दिशा में कदम उठाने की जरूरत है, जैसे फास्ट फूड पर टैक्स बढ़ाना, टीवी और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों को टारगेट करने वाले जंक फूड विज्ञापनों पर रोक लगाना और पोषण शिक्षा को स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करना।
अंत में, यह कहना गलत नहीं होगा कि टीनएजर्स का मोटापा सिर्फ एक मेडिकल समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती है। अगर आज हमने सजगता नहीं दिखाई, तो कल की पीढ़ी एक कमजोर और बीमार समाज के रूप में सामने आएगी। हेल्दी खानपान, जागरूकता और जिम्मेदारी से ही इस साइलेंट हेल्थ क्राइसिस को रोका जा सकता है।
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