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सपा नेता आज़म ख़ान–अब्दुल्ला आज़म के दो पैन कार्ड प्रकरण में बड़ा फैसला, मजबूत साक्ष्यों के आधार पर कोर्ट ने सुनाई सज़ा

लखनऊ। सपा नेता आज़म ख़ान और उनके बेटे व पूर्व विधायक अब्दुल्ला आज़म को दो पैन कार्ड रखने के मामले में एक बार फिर जेल जाना पड़ा है। एमपी-एमएलए मजिस्ट्रेट कोर्ट के न्यायाधीश शोभित बंसल ने सोमवार को 2019 में दर्ज इस बहुचर्चित मुकदमे पर 450 पन्नों का विस्तृत निर्णय सुनाया।

अभियोजन की ओर से नौ गवाहों—जिनमें आयकर अधिकारी विजय कुमार और वादी आकाश सक्सेना शामिल थे—की गवाही को अदालत ने विश्वसनीय माना। दूसरी ओर बचाव पक्ष द्वारा पेश किए गए 18 गवाह अभियोजन के साक्ष्यों का खंडन करने में सफल नहीं हो पाए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि बचाव पक्ष द्वारा पेश किए गए एक चार्टर्ड अकाउंटेंट ने बहस के दौरान आयकर विभाग की दलील को स्वीकार कर लिया, जिसने अभियोजन का पक्ष और मजबूत कर दिया।

अदालत में यह तथ्य स्थापित हुआ कि अब्दुल्ला आज़म के नाम से 2013 और 2015 में दो अलग-अलग पैन कार्ड जारी हुए थे, जिनमें जन्मतिथि में अंतर था। अभियोजन के अनुसार, 2017 विधानसभा चुनाव में उम्र संबंधित योग्यता पूरी न होने के कारण दूसरा पैन कार्ड तैयार कराया गया था। कोर्ट ने यह भी माना कि एक व्यक्ति के दो पैन कार्ड किसी भी परिस्थिति में नहीं बनाए जा सकते, और गलत जानकारी सुधरवाने के लिए अलग प्रक्रिया मौजूद है—मगर उसमें कार्ड नंबर वही रहता है।

सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष द्वारा पेश की गई एक वीडियो कैसेट भी विवादों में रही। अभियोजन ने तर्क दिया कि वीडियो उस कंपनी के नाम पर तैयार बताई गई, जो उस समय भारतीय बाजार में अस्तित्व में ही नहीं थी, जिससे बचाव पक्ष की दलील कमजोर पड़ गई।

अदालत ने आज़म खान और अब्दुल्ला आज़म को जिन धाराओं में दोषी ठहराया, उनमें 420, 467, 468, 471 और 120B शामिल हैं। इन धाराओं के तहत तीन से दस वर्ष तक की सज़ा और जुर्माने का प्रावधान है। फैसला इस आधार पर भी कड़ा रहा कि अभियोजन ने आज़म खान के विरुद्ध लंबा आपराधिक इतिहास होने का उल्लेख किया।

बचाव पक्ष ने न्यायालय से आज़म खान की उम्र—77 वर्ष—और उनकी खराब स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर सज़ा में रियायत की मांग की, साथ ही पूरे मामले को राजनीतिक द्वेष से प्रेरित बताया। हालांकि अदालत ने साक्ष्यों के आधार पर अभियोजन की दलीलों को स्वीकार किया।

फैसले के बाद बचाव पक्ष ने कहा है कि वे निर्णय का अध्ययन कर आगे सेशन कोर्ट में अपील दायर करेंगे।

संबद्ध पुराने मामलों का ब्यौरा

भड़काऊ भाषण केस (2022): तीन साल की सज़ा — बाद में सेशन कोर्ट ने निरस्त किया।

हाईवे जाम केस (2023): दो साल की सज़ा — इसके कारण अब्दुल्ला आज़म की विधायकी गई।

दूसरा भाषण मामला (2023): दो साल की सज़ा — अपील खारिज।

दो जन्म प्रमाणपत्र मामला (2023): आज़म, तज़ीन फात्मा और अब्दुल्ला—सात-सात साल कैद।

डूंगरपुर प्रकरण (2024): सात साल की सज़ा।

डूंगरपुर का दूसरा मामला (2024): 10 साल की सज़ा और 14 लाख रुपये जुर्माना—अब तक की सबसे बड़ी सज़ा।

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