- अपराधी ने एटीएम के की-बोर्ड पर ड्रिल करके लगाया था कैमरा
- खाताधारकों के एटीएम पिन रिकार्ड करने के बाद कैमरा हटा लिया
- सवाल: खोदा गया स्थान कैमरा हटाने के बाद एम सील से क्यों भरा गया
- बैंक शाखाओं के प्रबंधन की लापरवाही भी बनी वजह, चेक नहीं होते फुटेज
देहरादून
राजधानी के एटीएम पर साइबर अटैक करने वालों ने बड़े इत्मीनान और योजनाबद्ध तरीके से लोगों की गाढ़ी कमाई पर डाका डाला है। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है, शक के दायरे में आने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। शक के दायरे में आने वालों में एटीएम के मेंटीनेंस और कैश फीड करने से लेकर, एटीएम सीसीटीवी कैमरों और सुरक्षा से जुड़े कर्मचारी-अधिकारी शामिल हैं। सभी को जांच के दायरे में लाकर जल्द पूछताछ हो सकती है। इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि साइबर क्रिमिनल ने एटीएम पर लगे कैमरे को हटाने के बाद वहां एम-सील क्यों लगाई? इसके साथ ही एटीएम की मशीन को आसानी से खोलने के लिए अपराधियों के पास चाबी कहां से आई? यह चाबी उन आउट सोर्सिंग एजेंसियों के पास होती है, जो एटीएम की देखरेख करती हैं।
देहरादून के कुछ एटीएम पर स्किमर लगाकर एटीएम कार्डों की क्लोनिंग बनाने की घटना ने खाताधारकों को बेचैन कर दिया है। साइबर एक्सपर्ट और पुलिस की टीम इस जांच में जुटे हैं। शुरुआती जांच में ही साइबर और फोरेंसिक एक्सपर्ट अंकुर चंद्रकांत ने इसको एटीएम कार्डों की क्लोनिंग से हुई घटना बताते हुए कहा था कि एटीएम पर स्किमर लगाकर कार्डों को स्किमिंग करके सारी डिटेल ली गई है। इसके आधार पर एटीएम कार्डों का क्लोन बनाकर पैसे निकाले गए। पुलिस ने जांच की तो राजीवनगर के एसबीआई के एटीएम पर स्किमर की तार मिली, जिससे साफ हो गया कि एटीएम कार्डों के क्लोन बनाकर जयपुर में रकम निकाली गई है। अभी शहर के और एटीएम की जांच की जा रही है।
साइबर एक्सपर्ट अंकुर चंद्रकांत ने बताया कि शहर के एक एटीएम के की बोर्ड के ठीक ऊपर एम-सील लगी मिली। यहां अपराधी ने खाताधारक के पिन कोड को रिकार्ड करने के लिए कैमरा लगाया था। अपराधी ने इस एटीएम पर दो बार अपनी गतिविधियों को अंजाम दिया होगा। वह पहले स्कीमर फिट करने और की बोर्ड के ऊपर कैमरा लगाने आया होगा और फिर कैमरा और स्कीमर लेने के लिए। एटीएम पर ड्रिल करके कैमरा फिट किया था। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अपराधी ने दूसरे चक्कर में कैमरा तोड़ लिया और फिर टूटे स्थान पर एम सील भर दी। सवाल यह उठता है कि अपराधी चाहता तो कैमरा लेकर भाग सकता था, उसने टूटे हुए स्थान पर एम सील क्यों लगाई।
वहीं अपराधियों ने एटीएम का हुड भी खोला था, जो बिना किसी तोड़फोड़ के खोला गया था। इससे यही संकेत मिलता है कि हुड खोलने के लिए अपराधी के पास चाबी थी। हुड खोलने के लिए चाबी आउट सोर्सिंग के उन कर्मचारियों के पास होती है, जो मैंटीनेंस करते हैं। हालांकि इससे कैश बॉक्स नहीं खुलता। जांच में एक और बात सामने आई है कि ऐसी कई चाबियां अलग-अलग कर्मचारियों के पास होती हैं। आउट सोर्सिंग कंपनियों के कर्मचारी नौकरी छोड़कर जाते रहते हैं और कंपनियां इस ओर ध्यान नहीं देती कि कर्मचारी ने चाबी जमा कराई है या नहीं। हो सकता है कि कोई कर्मचारी अपराधियों का मददगार रहा हो।
एक और सवाल यह उठता है कि क्या बैंक के अधिकारी एटीएम के सीसीटीवी फुटेज को नियमित तौर पर कभी चेक भी करते हैं या नही? यदि वे नियमित तौर पर एटीएम के सीसीटीवी फुटेज को चेक करते होते, तो निश्चित तौर पर एटीएम का हुड खोले जाने, स्किमर लगाए जाने, की-बोर्ड के ऊपर कैमरा फिट किए जाने और उसको फिर निकाले जाने जैसी सभी अपराधिक गतिविधि की रिकार्डेड सूचना समय रहते मिल गई होती। जानकारों का मानना है कि इस पूरी ठगी में संबंधित बैंक शाखाओं के प्रबंधन की लापरवाही भी काफी हद तक जिम्मेदार है।
एटीएम कार्ड क्लोनिंग केसः देहरादून के एटीएम में लगाया था स्किमर
देहरादून के एटीएम में लगाए थे क्लोनिंग के डिवाइस, सावधानी बरतते तो बच जाती रकम