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यूपी में रिश्वतखोरी का 'नया रेट', DVVNL के XEN पर 13% कमीशन मांगने का गंभीर आरोप

उत्तर प्रदेश की 'डबल इंजन' सरकार, चाहे वह केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हो या राज्य में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में, हमेशा से ही भ्रष्टाचार के खिलाफ 'जीरो टॉलरेंस' की नीति अपनाने का दावा करती आई है। सरकारी महकमों को घूसखोरी और रिश्वतखोरी के कलंक से मुक्त करने की प्रतिबद्धता सार्वजनिक मंचों से दोहराई जाती रही है। 

बावजूद इसके, प्रदेश के एक महत्वपूर्ण विभाग – दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड (DVVNL) आगरा – से एक ऐसा ताजा मामला सामने आया है, जो इन दावों पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है और यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर यह 'भ्रष्टाचार का धंधा' सरकारों की नाक के नीचे कैसे फल-फूल रहा है।

रिश्वतखोरी के इस सनसनीखेज मामले में, DVVNL आगरा के एक उच्च पदस्थ अधिकारी, अधिशासी अभियंता अमित कुमार श्रीवास्तव पर गंभीर आरोप लगे हैं। नेशन वन के खुफिया कैमरे में रिकॉर्ड वीडियो के अनुसार XEN अमित कुमार श्रीवास्तव पर 33 केवी (किलोवोल्ट) और 11 केवी की विद्युत लाइनों के निर्माण और संबंधित ठेकों को पास करने के लिए भारी-भरकम कमीशन की मांग करने का आरोप है।

कथित तौर पर, कमीशन की यह दरें तय की गई हैं : 

1 - स्वीकृति के लिए कुल परियोजना लागत का 8 प्रतिशत।

2 - रनिंग बिल्स के भुगतान के लिए बिल राशि का 5 प्रतिशत।

यानी, निर्माण कार्य की स्वीकृति से लेकर भुगतान तक, ठेकेदार या संबंधित पक्ष से कुल 13 प्रतिशत की मोटी रकम रिश्वत के तौर पर मांगी जा रही है। यह मामला न सिर्फ अधिकारियों की मनमानी को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकारी परियोजनाओं में किस तरह कमीशनखोरी की जड़ें गहराई तक समाई हुई हैं।

राज्य और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार होने के कारण, अक्सर सुशासन और भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन को 'डबल इंजन' की सफलता के रूप में प्रचारित किया जाता है। बिजली विभाग, जो प्रदेश के विकास और औद्योगिक प्रगति की रीढ़ है, उसमें इस प्रकार की रिश्वतखोरी का सामने आना सीधे तौर पर इस दावे को चुनौती देता है।

एक तरफ, सरकार 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' और पारदर्शिता लाने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ, सरकारी विभागों में बैठे अधिकारी, ठेकेदारों और आम नागरिकों के लिए हर छोटे-बड़े काम को कमीशन के बिना असंभव बना रहे हैं। 13 प्रतिशत जैसी बड़ी रिश्वत की मांग से यह साफ है कि अधिकारी भ्रष्टाचार को एक सामान्य व्यापारिक लेन-देन की तरह देखते हैं, जिसके कारण विकास कार्यों की लागत बढ़ती है और गुणवत्ता प्रभावित होती है।

यह पहली बार नहीं है जब दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड भ्रष्टाचार को लेकर सुर्खियों में आया हो। पिछले कुछ समय में, वेतन घपला और बिजली चोरी के मामलों को रफा-दफा करने के लिए रिश्वत लेने के आरोप में कई अधिकारियों, जिनमें एक्सईएन, एसडीओ और जेई शामिल थे, पर कार्रवाई और निलंबन हो चुका है।

पिछले वर्षों में सामने आए ऐसे मामलों ने विभाग की छवि को धूमिल किया है और यह प्रदर्शित किया है कि उच्च प्रबंधन की सख्ती के बावजूद, निचले से लेकर मध्यम-उच्च स्तर तक भ्रष्टाचार का दीमक फैला हुआ है। बार-बार के घूसकांड यह भी साबित करते हैं कि दंडात्मक कार्रवाइयाँ, जैसे कि निलंबन, इन अधिकारियों के मन में डर पैदा करने में विफल साबित हो रही हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कई बार सार्वजनिक रूप से स्पष्ट किया है कि भ्रष्टाचार के मामलों में संलिप्त पाए जाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाएगी। डीवीवीएनएल के एक्ससीएन अमित कुमार श्रीवास्तव पर लगे ये गंभीर आरोप सरकार की ईमानदारी की कसौटी पर एक बड़ा इम्तिहान हैं।

यदि यह आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार की तमाम सख्त नीतियों और निर्देशों के बावजूद, घूसखोरी का यह धंधा अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है। यह मामला न केवल अधिकारियों के तत्काल निलंबन और जांच की मांग करता है, बल्कि पूरे प्रशासनिक तंत्र में व्यापक और कठोर सुधारों की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है ताकि भ्रष्ट अधिकारियों को यह स्पष्ट संदेश जाए कि उनकी मनमानी अब और नहीं चलेगी।

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