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Uttarakhand : जबरन धर्मांतरण के मामलों में भारी वृद्धि, देहरादून बना 'हॉटस्पॉट'!

Uttarakhand : उत्तराखंड में जबरन धर्मांतरण के मामलों में हाल के वर्षों में चिंताजनक वृद्धि देखी गई है। पिछले ढाई वर्षों की तुलना में इससे पहले के तीन वर्षों में ऐसे मामलों की संख्या लगभग चार गुना बढ़ गई है।

राज्य में लागू धर्मांतरण विरोधी नए और सख्त कानून को भी इस वृद्धि का एक कारण माना जा रहा है, क्योंकि कानून के बाद लोगों में जागरूकता बढ़ी है और रिपोर्टिंग में भी तेजी आई है।

Uttarakhand : आंकड़े बयां कर रहे कहानी

उत्तराखंड पुलिस के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 से 2022 तक की तीन साल की अवधि में जबरन धर्मांतरण से संबंधित केवल 11 मामले दर्ज किए गए थे। इसके विपरीत, वर्ष 2023 से जुलाई 2025 तक की ढाई साल की अवधि में ऐसे मुकदमों की संख्या बढ़कर 42 हो गई है।

यह वृद्धि पिछले तीन वर्षों की तुलना में लगभग चार गुना अधिक है, जो राज्य में जबरन धर्मांतरण की बढ़ती समस्या को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।

Uttarakhand : सख्त कानून और बढ़ती सजगता

उत्तराखंड सरकार ने 2018 में जबरन धर्मांतरण विरोधी कानून को मंजूरी दी थी। इसके बाद, वर्ष 2022 के अंत में इस कानून में संशोधन कर इसे और अधिक सख्त बनाया गया। संशोधित कानून में जबरन धर्मांतरण के लिए 10 साल तक की कैद और जुर्माने का प्रावधान है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस सख्त कानून के लागू होने के बाद 2023 से धर्मांतरण के मामलों की रिपोर्टिंग में तेजी आई है। कानून के प्रावधानों के बारे में बढ़ती जागरूकता ने पीड़ितों और उनके परिवारों को आगे आने और शिकायत दर्ज कराने के लिए प्रोत्साहित किया है, जिससे दर्ज मामलों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

Uttarakhand : देहरादून बना धर्मांतरण का 'हॉटस्पॉट'

पुलिस रिकॉर्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि उत्तराखंड में देहरादून जिला जबरन धर्मांतरण का मुख्य केंद्र (हॉटस्पॉट) बन गया है। पिछले ढाई वर्षों में राज्य में दर्ज कुल 42 धर्मांतरण मामलों में से अकेले देहरादून जिले में 18 केस शामिल हैं। यह आंकड़ा दर्शाता है कि देहरादून में धर्मांतरण की गतिविधियां अन्य जिलों की तुलना में अधिक सक्रिय हैं, जिस पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

उत्तराखंड धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2018 के तहत पहला मामला 2020 में देहरादून के पटेलनगर थाने में दर्ज किया गया था। यह मामला एक अंतरधार्मिक विवाह से संबंधित था, जिसमें कानून का उल्लंघन पाया गया था।

हाल ही में, इस मुद्दे ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरीं जब बीते शुक्रवार को रानीपोखरी थाने में 'छांगुर बाबा गैंग' के खिलाफ धर्मांतरण का एक नया मामला दर्ज किया गया। इस मामले में सहसपुर क्षेत्र के शंकर निवासी एक व्यक्ति भी शामिल है। यह घटना दर्शाती है कि धर्मांतरण के प्रयास अभी भी जारी हैं और पुलिस इन गतिविधियों पर कड़ी नजर रख रही है।

Uttarakhand : सामाजिक और कानूनी निहितार्थ

जबरन धर्मांतरण के बढ़ते मामले उत्तराखंड के सामाजिक ताने-बाने और सांप्रदायिक सद्भाव के लिए गंभीर चुनौती पैदा करते हैं। जहां एक ओर धार्मिक स्वतंत्रता व्यक्तिगत अधिकार है, वहीं दूसरी ओर जबरन या प्रलोभन के माध्यम से धर्मांतरण कराना कानूनन अपराध है और सामाजिक अशांति का कारण बन सकता है।

नए कानून का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है, लेकिन साथ ही धोखाधड़ी, जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव के माध्यम से किए गए धर्मांतरण को रोकना भी है।

आंकड़ों में वृद्धि इस बात का संकेत हो सकती है कि कानून अपने उद्देश्य में कुछ हद तक सफल हो रहा है, क्योंकि लोग अब ऐसे मामलों की रिपोर्ट करने में अधिक सहज महसूस कर रहे हैं। हालांकि, यह भी चिंता का विषय है कि क्या ये मामले संगठित धर्मांतरण रैकेट का हिस्सा हैं या व्यक्तिगत स्तर पर होने वाली घटनाएं हैं।

राज्य सरकार और पुलिस को इन बढ़ते मामलों पर गहन विश्लेषण करने की आवश्यकता है। देहरादून जैसे 'हॉटस्पॉट' क्षेत्रों में विशेष निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने पर जोर देना होगा। साथ ही, धर्मांतरण विरोधी कानून के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए पुलिस कर्मियों को संवेदनशील बनाना और उन्हें आवश्यक प्रशिक्षण देना भी महत्वपूर्ण है।

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