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Uttarakhand : पिता ने डाटा तो सौतेली बेटी ने कर दिया रेप का झूठा केस, 2 साल बाद बरी!

Uttarakhand : उत्तराखंड के रानीखेत में एक सनसनीखेज और दुखद मामले में न्यायालय ने बड़ा फैसला सुनाया है। एक 17 वर्षीय किशोरी द्वारा अपने सौतेले पिता पर लगाए गए दुष्कर्म के आरोप झूठे और मनगढ़ंत साबित हुए हैं। 

अन्य विशेष न्यायाधीश पॉक्सो श्रीकांत पाण्डेय की अदालत ने सौतेले पिता को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया, जिसके बाद पिता करीब एक साल 11 महीने बाद जेल से बाहर आ गए। यह मामला न केवल झूठे आरोपों के गंभीर परिणामों को उजागर करता है, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं और समय-सीमा पर भी सवाल खड़े करता है।

मामला जून 2023 का है, जब रानीखेत कोतवाली में 17 वर्षीय किशोरी ने अपने सौतेले पिता के खिलाफ दुष्कर्म और जान से मारने की धमकी देने का आरोप लगाते हुए तहरीर दी थी। 

किशोरी ने पुलिस को बताया था कि उसकी मां ने दूसरी शादी कर ली थी और वह पहले मेरठ में अपनी दादी के साथ रहती थी। पिछले साल ही वह अपनी मां के पास गांव आई थी, जहां उसका सौतेला पिता भी रहता था।

Uttarakhand : आरोपों का ताना-बाना और पुलिस कार्रवाई

किशोरी के अनुसार, यह घटना तब हुई जब उसके सौतेले पिता और दादी के बीच झगड़ा हुआ, जिसके बाद दादी कहीं चली गईं। किशोरी ने आरोप लगाया कि इसी का फायदा उठाकर उसके सौतेले पिता ने उसके साथ दुष्कर्म किया। जब उसने इस बात की शिकायत अपने सौतेले भाई से की, तो पिता ने उसके साथ मारपीट की और उसे जान से मारने की कोशिश की। 

इन गंभीर आरोपों के आधार पर, रानीखेत कोतवाली पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए सौतेले पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (मारपीट), 376 (दुष्कर्म), 506 (आपराधिक धमकी) और पॉक्सो एक्ट की संबंधित धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया। कुछ समय बाद आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

गिरफ्तारी के बाद से सौतेला पिता लगभग दो साल तक जेल में बंद रहा, इस दौरान उसे कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ी और सामाजिक बदनामी का सामना करना पड़ा।

Uttarakhand : न्यायालय में जिरह और आरोपों की पोल खुली

अधिवक्ता जमन सिंह बिष्ट ने बताया कि न्यायालय में चली लंबी जिरह के दौरान, किशोरी की तहरीर, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दिए गए उसके बयान और परिजनों की गवाही में गंभीर विरोधाभास सामने आए। कोर्ट ने इन सभी पहलुओं पर गहनता से विचार किया।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि पीड़िता की सगी मां तक ने अपनी बेटी के आरोपों को गलत बताया। सगी मां ने कोर्ट में गवाही दी कि दुष्कर्म की ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी। परिवार के अन्य सदस्य, जिनमें सौतेली बहन और सौतेले दो भाई भी शामिल थे, ने भी अदालत को बताया कि जब कथित घटना हुई, तब वे सभी घर में ही थे और ऐसी किसी भी वारदात से इनकार किया। परिवार के सदस्यों ने एक स्वर में कहा कि किशोरी के आरोप मनगढ़ंत हैं और उनमें कोई सच्चाई नहीं है।

Uttarakhand : लैब रिपोर्ट और बयानों में विरोधाभास

पुलिस द्वारा कराई गई पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट भी आरोपों को साबित करने में विफल रही। रिपोर्ट में पीड़िता का यूपीटी (गर्भावस्था परीक्षण) निगेटिव आया, और लैब की रिपोर्ट में भी शारीरिक संबंध बनाए जाने का कोई तथ्य नहीं मिला। ये वैज्ञानिक साक्ष्य किशोरी के दावों के विपरीत थे।

परिजनों ने न्यायालय में गवाही के दौरान एक महत्वपूर्ण तथ्य उजागर किया, जिसने पूरे मामले को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने बताया कि किशोरी सिलाई का काम करती थी और उसने अपने पिता को तीन हजार रुपये उधार दिए थे। परिजनों के अनुसार, इन्हीं रुपयों को लेकर बेटी का पिता के साथ विवाद हुआ था। 

इस विवाद के बाद वह कहीं चली गई थी। दूसरे दिन जब वह वापस लौटी, तो पिता ने उसे ऐसे व्यवहार न करने की नसीहत दी और उसे समझाया। यह घटनाक्रम आरोपों की असली वजह होने की ओर इशारा करता है।

Uttarakhand : न्याय की जीत और झूठे आरोपों के सबक

सभी सबूतों, गवाहों के बयानों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद, न्यायाधीश श्रीकांत पाण्डेय ने निष्कर्ष निकाला कि किशोरी के आरोप झूठे और आधारहीन थे। न्यायालय ने सौतेले पिता को दुष्कर्म के सभी आरोपों से बरी कर दिया।

यह फैसला उस पिता के लिए एक बड़ी राहत है, जिसने बिना किसी अपराध के लगभग दो साल तक जेल में बिताए। इस अवधि ने न केवल उसकी स्वतंत्रता छीन ली, बल्कि उसे मानसिक पीड़ा, सामाजिक अपमान और आर्थिक कठिनाइयों से भी जूझना पड़ा। यह मामला झूठे आरोपों के गंभीर परिणामों का एक स्पष्ट उदाहरण है, जहां एक व्यक्ति का जीवन तबाह हो सकता है, भले ही वह निर्दोष साबित हो जाए।

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