पहाड़ से पलायनः समाजसेवा वजह और खनन समाधान!
- आला नौकरशाहों ने बताई पलायन की अजीबोगरीब वजह और दिया हास्यास्पद समाधान
- पहाड़ों से घरबार छोड़कर ‘समाजसेवा’ के लिए मैदानों में उतर रही आबादी
- पहाड़ों में लगातार विकराल होती पलायन की समस्या के संबंध में सरकार ने बनाई है कमेटी
देहरादून
उत्तराखंड में पहाड़ों से हो रहे पलायन की वजह ‘समाजसेवा’ है। आप कहेंगे, इसका समाधान क्या हो सकता है? तो जनाब, पलायन की समस्या का समाधान ‘खनन’ हो सकता है। चौंकिए नहीं। ‘समाजसेवा’ को पलायन की वजह हम नहीं बता रहे। न ही हम ‘खनन’ को इसका समाधान बता रहे हैं। पलायन जैसी गंभीर समस्या की यह चुटकुले सरीखी वजह और इसका यह हास्यास्पद समाधान बता रही है इस प्रदेश की ‘टॉप ब्यूरोक्रेसी।’
अब इसे आप इस प्रदेश का दुर्भाग्य समझें या सरकारों की बेबसी कि उसे ऐसे अफसर संचालित कर रहे हैं, पहाड़ और पलायन के बारे में जिनकी सोच कतई गंभीर नहीं दिखती। पलायन जैसी समस्या की वजह और उसके समाधान के लिए भले ही बुद्धिजीवी वर्षों से दिमागी कसरत कर रहे हों, मगर प्रदेश के प्रमुख सचिव (नियोजन) डॉ. उमाकांत पंवार ने एक झटके में उसकी वजह और अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने उसका समाधान भी दे दिया। दरअसल, प्रदेश सरकार ने पहाड़ों से हो रहे पलायन की समस्या के समाधान के लिए कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज की अध्यक्षता में पलायन समाधान समिति गठित की है। इसमें राज्यमंत्री धन सिंह रावत और रेखा आर्य बतौर सदस्य शामिल हैं। बीते बुधवार को सचिवालय में समिति के अध्यक्ष सतपाल महाराज ने पलायन के समाधान के बारे में विभागीय सचिवों के साथ बैठक की। बैठक में हुई चर्चा के संबंध में बाकायदा सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग की ओर से विज्ञप्ति भी जारी की गई।
पलायन के कारणों के संबंध में विज्ञप्ति में उल्लेख है कि प्रमुख सचिव (नियोजन) डॉ. उमाकांत पंवार ने बताया कि 6000 परिवारों का सर्वे कराया गया है। सर्वे में रोजगार, अध्ययन, ‘समाजसेवा’ आदि पलायन के कारण पाए गए हैं। समाधान के संदर्भ में इसी विज्ञप्ति में अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के सुझाव का भी उल्लेख किया गया है। अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश ने बताया कि योजनाओं को एकीकृत कर समन्वय के आधार पर बेहतर परिणाम लिया जा सकता है। क्षेत्रवार विश्लेषण करके कृषि, बागवानी, ‘खनन’ को प्राथमिक क्षेत्र बनाना चाहिए। इसके बाद लघु उद्योग और सेवा क्षेत्र को फोकस करना होगा। होम स्टे को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगो की आमदनी बढ़ाई जा सकती है। बाह्य पूंजी निवेश पर ध्यान देने की जरूरत है।
यहां सवाल यह उठता है कि रोजगार और अध्ययन के लिए तो वाकई में पहाड़ों से पलायन होता रहा है, मगर ‘समाजसेवा’ के लिए या समाजसेवा की वजह से पलायन कब से और किस रूप में होने लगा है? पहाड़ का आखिर वह कौन सा वर्ग है, जो बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी सुविधाओं और बेहतर जीवनस्तर की आस में नहीं, बल्कि समाजसेवा के लिए मैदानी क्षेत्रों में पलायन कर रहा है? यह जरूर है कि पिछले 16 सालों में पहाड़ों के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों ने जरूर मैदानों का रूख किया, लेकिन राजनीति, सुविधाओं और अन्य कारणों से, न कि समाजसेवा के लिए? इन्हें अगर समाजसेवी मान भी लिया जाए, तो भी समाजसेवा के लिए इनके अलावा और कौन सी आबादी मैदानों में उतरी है? कारण की बात कुछ देर के लिए छोड़ भी दें, तो क्या खनन पलायन को रोकने के लिए समाधान हो सकता है? यदि हो सकता है तो कैसे। अगर यह समाधान है, तो क्या इसके लिए पूरे पहाड़ को ही खोद कर रख दिया जाना चाहिए? ऐसे तमाम सवाल हैं, जो इस बेहद गंभीर मुद्दे पर सरकार और उसके अफसरों की संवेदनहीनता को ही दर्शाते हैं।