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माओवादी संगठन की रीढ़ टूटी: 18 महीनों में 500 से अधिक ढेर, अब शांति वार्ता की पहल

सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई से माओवादियों पर कसा शिकंजा

देशभर में सुरक्षा बलों की सघन कार्रवाई ने चार दशक से बंदूक के सहारे क्रांति का दावा करने वाले माओवादी संगठन को गहरी चोट दी है। बीते 18 महीनों में 500 से अधिक माओवादी मारे गए, जिनमें 13 केंद्रीय समिति स्तर के बड़े नेता शामिल हैं। वहीं, लगभग 2000 कैडर और समर्थक आत्मसमर्पण कर चुके हैं।

छत्तीसगढ़ में सबसे बड़ा असर

केवल छत्तीसगढ़ में ही शीर्ष कमांडर बसव राजू, चलपति, सुधाकर और मोडेम बालकृष्ण मुठभेड़ों में मारे गए। इसी दबाव के बीच संगठन ने अब पहली बार हथियार छोड़कर शांति वार्ता की पहल की है।

15 अगस्त को संघर्ष विराम की घोषणा

स्वतंत्रता दिवस पर केंद्रीय समिति प्रवक्ता अभय के नाम से जारी पत्र में माओवादियों ने संघर्ष विराम की घोषणा करते हुए कहा कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होकर जनता की समस्याओं का समाधान चाहते हैं। खास बात यह रही कि पत्र संगठन की आधिकारिक फेसबुक अकाउंट, ईमेल और प्रवक्ता की तस्वीर के साथ सार्वजनिक किया गया। सुरक्षा विशेषज्ञ इसे एक ओर शांति प्रक्रिया की दिशा में महत्वपूर्ण मानते हैं, तो दूसरी ओर इसे संदेह की नजर से भी देख रहे हैं।

सरकार का रुख

गृह मंत्री विजय शर्मा ने पत्र की सत्यता की जांच के निर्देश दिए हैं। सरकार का रुख साफ है कि हथियारों के साथ किसी भी तरह की वार्ता संभव नहीं।
इस बार माओवादियों ने स्पष्ट किया है कि वार्ता पर सहमत कैडरों के अलावा जेलों में बंद सदस्यों और अन्य राज्यों में सक्रिय नेताओं से भी रायशुमारी जरूरी है। इसके लिए संगठन ने एक माह का संघर्ष विराम मांगा है।

10 महीनों में छठी अपील

पिछले 10 महीनों में यह माओवादियों की छठी अपील है। हालांकि, पहले के प्रयास हिंसा और हमलों की वजह से नाकाम रहे थे।

फोर्स का दबाव और ढहता नेटवर्क

छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना और झारखंड में संयुक्त अभियानों ने संगठन को भारी नुकसान पहुंचाया है।

  • जनवरी 2025 से अब तक 463 माओवादी छत्तीसगढ़ में ढेर हुए।

  • एसजेडसीएम स्तर के 13 से अधिक नेता मारे गए।

  • तेलंगाना में केंद्रीय समिति सदस्य सुजाता ने आत्मसमर्पण किया।

  • बस्तर में 1500 से अधिक माओवादी हथियार डाल चुके हैं।

  • मई 2024 में गढ़चिरौली में 28 शीर्ष माओवादी मारे गए थे।

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