उत्तराखंड में अब तक इतने किसानों ने छोड़ दी खेती, हाईकोर्ट ने जताई चिंता
देहरादून : हाईकोर्ट ने पर्वतीय जिलों के किसानों के भूमिधरी अधिकार से संबंधित निर्णय में पहाड़ों में तेजी से कम हो रही खेती पर भी खासी चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश में खेती का रकबा और खेतिहर मजदूरों की तादाद लगातार घट रही है जबकि पर्वतीय क्षेत्र में 90 फीसदी लोग कृषि पर निर्भर हैं।
1951 में जहां कृषि क्षेत्र में 50 प्रतिशत मजदूर…
प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र में मात्र 20 फीसदी कृषि भूमि है और 80 फीसदी अप्रयुक्त है या बेची जा चुकी है। इस 20 प्रतिशत कृषि भूमि में भी मात्र 12 प्रतिशत सिंचित है और 08 फीसदी वर्षा पर आधारित है। इस पर भी जो खेती हो पाती है उसे जंगली जानवर नष्ट कर देते हैं और रही बची फसल की उचित कीमत नहीं मिल पाती। इस सबके चलते 1951 में जहां कृषि क्षेत्र में 50 प्रतिशत मजदूर कार्यरत थे, 2011 में मात्र 24 प्रतिशत कृषि मजदूर थे।
किसानों को फसल की उचित कीमत सही समय…
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा और जस्टिस मनोज तिवारी की बेंच ने कहा कि कृषि को बचाने के लिए आवश्यक है कि किसानों को फसल की उचित कीमत सही समय पर दी जाय और कर्ज के कारण आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को पेंशन दी जानी चाहिए।
कोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक पर्वतीय क्षेत्र से पलायन…
कोर्ट ने कहा कि प्रदेश में इन सब कारणों से कृषि की हालत इतनी गंभीर हो चुकी है कि बीते वर्षों में अल्मोड़ा से 36401, पौड़ी से 35654, टिहरी से 33689, पिथौरागढ़ से 22936, देहरादून से 20625, चमोली से 18536, नैनीताल से 15075, उत्तरकाशी से 11710, चंपावत से 11281, रुद्रप्रयाग से 10970 और बागेश्वर से 10073 कृषक पलायन कर चुके हैं। कोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक पर्वतीय क्षेत्र से पलायन करने वाले कृषकों की संख्या दो लाख 26 हजार 950 हो चुकी है।