एनसीईआरटी की पुस्तकों को अनिवार्य किए जाने के मामले सख्त हुआ हाईकोर्ट

हाईकोर्ट ने एनसीईआरटी की पुस्तकों को अनिवार्य किए जाने के मामले सख्त रूख जारी रखा है। निजी स्कूलों व प्रकाशकों की इसके खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सख्त हिदायत दी है। इस मामले में पब्लिक स्कूलों के हड़ताल पर जाने को गंभीरता से लिया जाएगा। कहा है कि उनकी लंबित याचिकाओं को खारिज किया जा सकता है। इधर इस मामले में सुनवाई के दौरान सरकार व सीबीएसई की ओर से दलील दी गई। वहीं अदालत ने प्रदेश के मुख्य सचिव से मामले में विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है। अगली सुनवाई 11 अप्रैल की तय की है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई की।

सरकार ने 23 अगस्त 2017 को साशनादेश किया जारी

नॉलेज वर्ल्ड माजरा देहरादून ने इस मामले में हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें कहा है कि सरकार ने 23 अगस्त 2017 को साशनादेश जारी किया है। इसमें प्रदेश के आईसीएससी विधालयो को छोड़कर अन्य विद्यालयों में एनसीईआरटी की ही किताबों के अनिवार्य कर दिया गया है। निजी प्रकाशक की किताबों के चलने पर पूर्ण प्रतिबंधित कर दिया है। निजी प्रकाशकों की किताब लागू करने पर स्कूल प्रबंधन के खिलाफ कानूनी कार्रवाही का प्राविधान किया गया है। इससे निजी स्तर पर पुस्तकों का प्रकाशन करने वाले प्रकाशकों पर व्यापक असर हुआ है।

शासन के इस आदेश को याचिका माध्यम से चुनौती दी गई है। पूर्व में अदालत ने याची से सीबीएसई को भी पार्टी बनाने के निर्देश दिए थे। इधर सीबीएससी बोर्ड की ओर से अधिवक्ता शशांक उपाध्याय ने अदालत में पक्ष रखा। इसमें कहा गया कि 1 से 12 तक एनसीईआरटी के तहत तय पाठ्यक्रम की किताब चलनी चाहिए। माध्यमिक तक की कक्षाओ के लिए यह पाठ्यक्रम मान्य है। पाठ्यक्रम को आगे आने वाले सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के मध्येनजर बनाया गया है। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से कक्षा 9 से 12 तक नेशनल क्यूरेकलम फ्रेम से मान्यता प्राप्त ही किताबों को ही लागू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई पब्लिक स्कूल किसी अन्य प्रकाशक अथवा लेखक की किताब को मान्य करता है तो स्कूल प्रबंधन इसके लिए स्वयं जिम्मेदार होगा।

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