- शपथपत्र धांधली में सरकार को पौने तीन करोड़ का नुकसान
- 20 की जगह खनन ट्रांसपोर्टरों से ढाई फीसदी ही आयकर वसूला
- आीटीआई में हुआ खुलासा, आॉडिट टीम ने की जांच में पकड़़ा घोटाला
देहरादून
वन विकास निगम के अफसरों ने खनन ट्रांसपोर्टरों के साथ मिलकर सरकार को एक साल में लगभग पौने तीन करोड़ का नुकसान पहुंचा दिया। अधिकारियों ने वन निगम के लॉटों में खनन करने के लिए ट्रांसपोर्टरों को आयकर में भारी छूट देकर 15 करोड़ की रेत बजरी लुटा दी। ये वो ट्रांसपोर्टर हैं, जिनका आधे अधूरे दस्तावेजों पर ही रजिस्ट्रेशन कर दिया गया। निगम के अफसरों ने इनसे 20 की जगह मात्र 2.5 फीसदी आयकर ही वसूला। यहां तक कि निगम के नाम से एकमुश्त स्टांप पेपर खरीदकर ट्रांसपोर्टरों के शपथपत्र बना दिए गए।
सूचना आयोग के आदेश पर हुई जांच में यह खुलासा हुआ है। शासन के आदेश पर प्रमुख वन संरक्षक परियोजनाएं जयराज ने मामले की जांच की थी। उन्होंने वन विकास निगम में पंजीकरण के लिए ट्रांसपोर्टरों से आधे अधूरे और नियम विरुद्ध लिए गए शपथपत्रों से किसी घोटाले की आशंका जाहिर करते हुए ऑडिट टीम से जांच कराने की सिफारिश की थी। तीन सदस्यीय ऑडिट टीम ने वन विकास निगम के प्रबंध निदेशक, प्रभागीय लौंगिग प्रबंधक(खनन) तथा आहरण एवं वितरण अधिकारी के कार्यालयों के अप्रैल 2013 से मार्च 2014 तक की फाइलों की जांच में बड़े खुलासे किए।
ऐसे किया गया खेल
वन विकास निगम के लॉटों में खनन के लिए ट्रांसपोर्ट का रजिस्ट्रेशन कराने का प्रावधान है। जांच रिपोर्ट के अनुसार गैर रजिस्टर्ड वाहनों से 20 फीसदी और रजिस्टर्ड से 2.5 फीसदी रकम आयकर के रूप में वसूल की जानी थी। 1587 ट्रांसपोर्टरों जिनके दस्तावेजों में अनियमितताएं मिली हैं, वो आयकर में छूट के पात्र नहीं थे। वन निगम दफ्तर ने शर्ते पूरी नहीं होने के बाद भी इनका रजिस्ट्रेशन करके इनको आयकर में 17.5 फीसदी छूट का लाभ दे दिया। वर्ष 2013-14 में इन ट्रांसपोर्टरों के वाहनों ने 14 करोड़ 98 लाख 22 हजार 675 रुपये के रेत, बजरी और अन्य खनन सामग्री की निकासी की। इनसे 2 करोड़ 99 लाख 64 हजार 535 रुपये आयकर वसूल किया जाना चाहिए था, लेकिन इनसे ढाई फीसदी की दर से मात्र 44 लाख 95 हजार 770 रुपये की ही वसूली की गई। इस तरह लगभग 2.54 करोड़ रुपये के राजस्व का चूना लगाया गया।
ये धांधलियां मिलीं जांच में
- एक साल में 2738 अंपजीकृत वाहनों से रेत बजरी की निकासी की गई, जिससे निगम को 14 लाख 23 हजार 760 रुपये का नुकसान पहुंचाया गया। इनसे प्रति वाहन 500 रुपये शुल्क लिया जाना था। स्टांप व नोटरी शुल्क से अलग राजस्व मिलता। वहीं पंजीकरण की शर्तों के अनुसार आवेदक ट्रांसपोर्टरों के दस्तावेजों में अनियमितताओं की वजह से 2 करोड़ 55 लाख रुपये कम आयकर वसूला गया।
- 175 ट्रांसपोर्टरों के वाहनों का स्टांप पेपर (शपथ पत्र) जमा कराए बिना ही पंजीकरण कर दिया गया।
- 1662 वाहनों के शपथपत्र नोटरी से सत्यापित नहीं थे, लेकिन इनका पंजीकरण हो गया।
- 101 स्टांप पेपर ऐसे मिले, जो किसी ओर के नाम से खरीदे गए थे, लेकिन इनके जरिये रजिस्ट्रेशन किसी ओर का कर दिया गया।
- 298 स्टांप पेपरों के पिछले हिस्से पर वन निगम, एफडीसी देहरादून, यूवीवीएन देहरादून, वन विकास निगम लिखा है, लेकिन इनसे रजिस्ट्रेशन किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर किया गया।
- 669 स्टांप पेपर खरीदने वाला एफडीसी, वन निगम या कोई अन्य व्यक्ति है, लेकिन पंजीकरण किसी ओर के नाम हो गया।
- 06 स्टांप पेपर के पिछले हिस्से गढ़वाल मंडल विकास निगम और पीएनबी देहरादून लिखा है।
- 61 स्टांप पेपर बाद में खरीदे गए और उनके जरिये रजिस्ट्रेशन पहले ही कर दिया गया।
- 17 स्टांप पेपरों पर खरीदने वाले के नाम में कांटछांट करके इस पर किसी दूसरे का नाम लिखा है। दूसरे नाम को सत्यापित भी नहीं कराया गया।
तो किसने खरीदे स्टांप पेपर
अभी तक यह साफ नहीं हो सका कि वन विकास निगम के नाम से बड़ी संख्या में स्टांप पेपर किसने खरीदे। रिपोर्ट के अनुसार जांच के दौरान प्रभागीय प्रबंधक (खनन) ने बताया जो स्टांप पेपर वन निगम के पक्ष में खरीदे दिखाए गए हैं, वह उनके द्वारा नहीं खरीदे गए। रिपोर्ट में कहा गया कि स्टांप पेपरों को रजिस्ट्रेशन से पहले सही तरीके से जांच लेना चाहिए था और इनका रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाना था। रिपोर्ट के अनुसार ट्रांसपोर्टरों के दस्तावेजों में प्रभागीय वन विकास प्रबंधक (खनन) की मुहर लगी है, लेकिन उनके हस्ताक्षर नहीं हैं। इससे साफ है कि ये दस्तावेज उनके समक्ष पेश नहीं किए गए।
कैसे हुआ खुलासा

यह मामला आरटीआई क्लब उत्तराखंड के महासचिव अमर एस धुंता ने उठाया था। उन्होंने सूचना के अधिकार में वन विकास निगम से खनन में लगे ट्रांसपोर्टरों के दस्तावेजों की सूचना मांगी थी। निगम से मिलीं शपथपत्रों की प्रतियों में तमाम खामियां मिलीं थी, लेकिन निगम ने इससे राजस्व क्षति और अन्य जरूरी सूचनाएं नहीं दी थी। सूचना आयोग के आदेश पर शासन ने जांच प्रमुख वन संरक्षक (परियोजनाएं) को सौंप दी। प्रमुख वन संरक्षक की सिफारिश पर मामले की जांच आडिट टीम से कराई गई, जिसमें धांधली का खुलासा हुआ।
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