इस दीपावली इन बातों का रखे ख्याल लक्ष्मी जी होगी प्रसन्न…

भारत त्योहारों का देश है, यहां कई तरह के अलग अलग त्योहार पूरे साल मनाए जाते हैं। लेकिन दीपावाली सबसे बड़े त्योहारों में से एक है। इस त्योहार का बच्चों और बड़ों को पूरे साल इंतजार रहता है।

वहीं धन-वैभव,ऐश्वर्य और सौभाग्य प्राप्ति के लिए दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी-गणेश पूजन के लिए सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त माना गया है। घर, कार्यस्थल पर माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहे, पूजा-पाठ का पूर्ण लाभ मिल सके इसके लिए आवश्यक है कि श्रद्धा भक्ति के साथ हम सब दीपावली पूजन न केवल सच्चे मन से करें, बल्कि वास्तु नियमों को ध्यान में रखकर सही तरीके से भी पूजा-आराधना करें।

ये है सही दिशा और पूजा करने का तरीका…

  • सबसे पहले तो पूजन कक्ष साफ-सुथरा हो, उसकी दीवारें हल्के पीले, गुलाबी, हरे जैसे आध्यात्मिक रंग की हों तो अच्छा है क्योंकि ये रंग सकारात्मक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते हैं।
  • काले, नीले और भूरे जैसे तामसिक रंगों का प्रयोग पूजा कक्ष की दीवारों पर नहीं होना चाहिए।
  • वास्तु विज्ञान के अनुसार मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा की दिशा उत्तर-पूर्व(ईशान) पूजा करने के लिए आदर्श स्थान है क्योंकि यह कोण पूर्व एवं उत्तर दिशा के शुभ प्रभावों से युक्त होता है।
  • घर के इसी क्षेत्र में सत्व ऊर्जा का प्रभाव शत-प्रतिशत होता है। पूजन करते समय मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
  • उत्तर दिशा चूंकि धन का क्षेत्र है इसलिए यह क्षेत्र यक्ष साधना (कुबेर),लक्ष्मी पूजन और गणेश पूजन के लिए आदर्श स्थान है। ध्यान रहे दीपावली पूजन में मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां अथवा चित्र आदि छवियाँ नई हों।चांदी की मूर्तियों को साफ़ करके पुनः पूजा के काम में लिया जा सकता है।
  • पूजा कलश व अन्य पूजन सामग्री जैसेखील पताशा,सिन्दूर,गंगाजल,अक्षत-रोली,मोली,फल-मिठाई,पान-सुपारी,इलाइची आदि उत्तर-पूर्व में ही रखा जाना शुभ फलों में वृद्धि करेगा।
  • देवी लक्ष्मी को लाल रंग अत्यधिक प्रिय है। लाल रंग को वास्तु में भी शक्ति और शौर्य का प्रतीक माना गया है अतः माता को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, श्रृंगार की वस्तुएं एवं पुष्प यथासंभव लाल रंग के होने चाहिए।
  • पूजा कक्ष के दरवाज़े पर सिन्दूर या रोली से दोनों तरफ स्वास्तिक बना देने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती हैं।
  • वास्तु शास्त्र के अनुसार शंख ध्वनि व घंटानाद करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और आस-पास का वातावरण शुद्ध और पवित्र होकर मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।