इतिहास में जब गलती हो जाती है तो उसका कितने भयंकर परिणाम होता है : हुकुमदेव नारायण यादव
रिपोर्ट: पुनीत गोस्वामी
नई दिल्ली : उत्कृष्ट सांसद एवं पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित हुकुमदेव नारायण यादव, पूर्व सांसद ने बयान जारी कर कहा है कि भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने सार्वजनिक बयान देकर कहा है कि भारतीय इतिहास को पुनः लिखना चाहिए और गलत व्याख्या को सुधारना चाहिए। इस बयान पर कुछ तथाकथित वामपंथियों ने गम्भीर प्रतिक्रिया व्यक्त की है और अर्नगल प्रलाप किया है।
भारतीय इतिहास की आलोचना…
उन्हें स्मरण करना चाहता हू कि प्रख्यात समाजवादी नेता और विचारक डॉ राममनोहर लोहिया ने 26 मार्च, 1996 को लोकसभा में “भारतीय इतिहास की आलोचना” विषय पर बहस छेड़ी थी। समाजवादी और वामपंथियों को पढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा था कि इतिहास में जब गलती हो जाती है, लिखने में समझने में तो उसके कितने भयंकर परिणाम होते है? आखिर इतिहास है क्या? यह है अतीत का बोध। जो कुछ पहले हो चुका है उसको किस ढंग से समझते है, अधूरा, पूरा गलत, सही इतिहास है अतीत का बोध, भविष्य और वर्तमान का निर्माता भी हुआ करता है। इसकी व्याख्या विस्तार से की गयी है।
उत्कृष्ट राष्ट्रवाद को विलक्षण बोध…
संसद में बहस के क्रम में उन्होंने जिस तर्क को दिया था तथा इतिहास के तथ्यों का विश्लेषण किया था आज उसी दृष्टि को दिशा की आवश्यक्ता है। उन्ही बातों को बीजेपी या संघ के लोग बोलते है तब उन्हें क्या क्या नही कहा जाता है। लोहिया संघ के स्वयंसेवक या जनसंघ के नही थे। वे भारतीय थे और उनका दर्शन भारतीय समाजवाद था दृष्टि अलग थी। चिंतन में सर्वग्राह्यता थे परन्तु भारतीय संस्कृति के प्रति अटूट आस्था थी। आज के राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ताओं को पढ़ना चाहिए। उत्कृष्ट राष्ट्रवाद को विलक्षण बोध होता है।
आज जो हमारे बीच बसने बाले मुसलमान है…
संसद में ही उन्होंने कहा था “आज जो हमारे बीच बसने बाले मुसलमान है, आखिर तो वे हमारे भूतपूर्व हिन्दू है। उनका कोई हाथ नही था पूर्व के वाकये में, उनसे बदला ना निकालकर के जो की बिल्कुल एक अहम काम होगा, हम यह कोशिश करते है की इतिहास को गुस्से के रूप में ना देखे बल्कि दर्द के रूप में देखें।” भारतीय इतिहास की आलोचना विषय पर जो उन्होंने कहा था वह चिंतन करने योग्य है। उदारता और गुलामी में फर्क होता है। हमने अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए गुलामी को उदारता कहा।
संस्कृति के चार अध्याय…
आवस्यकता है दुराग्रह, पूर्वाग्रह और अनुग्रह से मुक्त होकर स्वतंत्र भारतीय मानसिकता के साथ इतिहास की व्याख्या की जाए। गांधी, लोहिया और दीनदयाल के साथ डॉ अम्बेडकर की दृष्टि के साथ और भारतीय स्वाभिमान और संस्कृति के साथ इतिहास लिखा जाए। नई पीढ़ी को इतिहास का सही बोध कराया जाए। रामधारी सिंह दिनकर द्वारा लिखित “संस्कृति के चार अध्याय” को पढ़ने की आवश्यकता है।
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