व्यर्थ का बदलाव, समर्थ में करना अर्थात एनेर्जी जमा करना | Nation One
व्यर्थ को समाप्त करने का साधन है – समर्थ संकल्पों का खज़ाने को प्राप्त कर लेना। समर्थ स्मृति स्वत: ही हमे समर्थ बनाती है। समर्थ अर्थात् व्यर्थ को समाप्त करनेवाले बनना। व्यर्थ है तो, समर्थ नहीं होगा । अगर मंसा में व्यर्थ संकल्प है तो समर्थ संकल्प ठहर नहीं सकते है। व्यर्थ हमे बार-बार नीचे ले आता है और समर्थ संकल्प समर्थ ईश्वर के मिलन का भी अनुभव कराता है।
व्यर्थ संकल्प सदा उत्साह उमंग को समाप्त करता है। व्यक्ति सदा क्यों, क्या के उलझन में फसा रहता है , इसलिए छोटी छोटी बातों में स्वयं से दिलशिकस्त रहता। व्यर्थ संकल्प सदा सर्व प्राप्तियों के खज़ाने को अनुभव करने से वंचित कर देता। व्यर्थ संकल्प वाले व्यक्ति के मन की इच्छायें बहुत ऊँची होती हैं।
इसलिये व्यर्थ संकल्प वाले, यह करूँगा, यह करूँ, यह प्लैन बहुत तेजी से बनाते अर्थात् तीव्रगति से बनाते हैं। क्योंकि व्यर्थ संकल्पों की गति बहुत फास्ट होती है, इसलिए ये बहुत ऊँची-ऊँची बातें सोचते हैं, लेकिन समर्थ न होने के कारण इनके प्लैन और प्रैक्टिकल में महान अन्तर हो जाता है। इसलिए दिलशिकस्त हो जाते हैं।
समर्थ संकल्प वाले सदा जो सोचेंगे वही करेंगे, इनका सोचना और करना दोनों समान होगा। ऐसे लोग सदा धैर्यवत् गति से संकल्प और कर्म में सफल होंगे। व्यर्थ संकल्प तेज तूफान की तरह हमे हलचल में लाता है जबकि समर्थ संकल्प सदा-बहार के समान हरा-भरा बना देता है। व्यर्थ संकल्प एनर्जी खर्च करता है जबकि समर्थ संकल्प सदा आत्मिक शक्ति अर्थात् एनर्जी जमा करता है।
समर्थ संकल्प के खज़ाने का महत्व कम होने के कारण ,समर्थ संकल्प का धारण नहीं हो पाता है ,इससे व्यर्थ को आने का चांस मिल जाता है। समर्थ बुद्धि में व्यर्थ आ नहीं सकता है। जब खाली बुद्धि रह जाती है, इसलिए खाली स्थान होने के कारण व्यर्थ आ जाता है। जब मार्जिन ही नहीं होगी तो व्यर्थ आ कैसे सकता है।
समर्थ संकल्पों से बुद्धि को बिजी रखने का साधन नहीं आना अर्थात् व्यर्थ संकल्पों का आह्वान करना है। बिजी रखने के बिजनेसमैन बनकर व्यर्थ को समाप्त कर सकते है । दिन-रात इन ज्ञान रत्नों के बिजनेसमैन बनो। न फुर्सत होगी न व्यर्थ संकल्पों को मार्जिन होगी। विशेष बात ‘‘बुद्धि को समर्थ संकल्पों से सदा भरपूर रखो।’’ उसका आधार है – ज्ञान को सुनना, समाना और स्वरूप बनना, यह तीन स्टेजेज हैं।
सुनना तो बहुत अच्छा लगता है, सुनने के बिना रह नहीं सकते,यह भी स्टेज है। ऐसी स्टेज वाले सुनने के समय तक सुनने की इच्छा, सुनने का रस होने के कारण उस समय तक उसी रस की मौज में रहते हैं। सुनने में मस्त भी रहते हैं। बहुत अच्छा! यह खुशी से गीत भी गाते हैं। लेकिन सुनना समाप्त हुआ तो वह रस भी समाप्त हो जाता है। क्योंकि उसे समाया नहीं। समाने की शक्ति द्वारा बुद्धि को समर्थ संकल्पों से सम्पन्न नहीं किया तो व्यर्थ आता रहता है। समाने वाले सदा भरपूर रहते हैं। इसलिए व्यर्थ संकल्पों से किनारा रहता है।
लेकिन इससे भी एक कदम आगे ,समर्थ का स्वरूप बनने वाले शक्तिशाली बन औरों को भी शक्तिशाली बनाते हैं। हम व्यर्थ से तो बचते हैं, शुद्ध संकल्पों में रहते हैं लेकिन शक्ति स्वरूप नहीं बनते है । स्वरूप बनने वाले सदा सम्पन्न, सदा समर्थ, सदा शक्तिशाली किरणों द्वारा औरों के भी व्यर्थ को समाप्त करने वाले होते हैं। अभी अपने समर्थ स्वरूप द्वारा औरों को समर्थ बनाने का समय है। स्व के व्यर्थ को समाप्त करना है।
मनोज श्रीवास्तव, देहरादून