जीवन दांव पर लगा कर डायलिसिस करवा रहे हैं ईएसआईसी के गम्भीर मरीज | Nation One
नोएडा | वैश्विक चुनौती बने अदृश्य राक्षस कोरोना से निपटने के लिए जहां एक तरफ सरकार गुर्दा फेलियर रोगियों की शारीरिक, आर्थिक व मानसिक मनोदशा को गम्भीरता से लेते हुए उनकी समस्याओं को गम्भीरता से लेते हुए नियमित डायलिसिस के संदर्भ में सहूलियतें दे रही है, वहीं दूसरी तरफ डायलिसिस सेंटर ईएसआईसी के मरीजों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखकर उनकी समस्याओं को नजरंदाज कर रहे हैं।
राष्ट्रीय राजधानी से सटे अतिविकसित शहर नोएडा के सेक्टर 24 इलाके में स्थित ईएसआईसी (कर्मचारी राज्य बीमा निगम) मॉडल अस्पताल में मरीजो की सुविधा को दृष्टिगत रखते हुए डायलिसिस संस्था डीसीडीसी के सक्रिय सहयोग से एक डायलिसिस सेंटर स्थापित किया गया था।तमाम सुविधाओं से लैस यह डायलिसिस सेंटर मौजूदा समय मे सुविधाओं के नाम पर महज बानगी बन कर रह गया है।
इस सेंटर के हैपेटाइटिस सी एरिया की हालत तो और दयनीय है।आलम यह हैं कि यहां टीवी तो लगा है लेकिन चलता नही, अपेक्षाकृत बेहद कम स्थान में पड़े 2 बेड और दो डायलिसिस मशीन और ऊपर से चिलचिलाती गर्मी के बीच लगे पंखे भी कभी कभी चलते चलते रुक जाते है। टूटती चहारदीवारी से घिरे इस कमरे में वेल्टीनेशन न होने के चलते यह आइसोलेशन सूरज चढ़ते ही आग का गोला बन जाता है।
कोरोनाकाल में इन लो इम्युनिटी वाले गम्भीर मरीजों के शरीर का तापमान जांचने के लिए थर्मामीटर, डायलिसिस के दौरान रक्त में शर्करा मापने वाली सुगर टेस्टिंग मशीन तक नही जो एक सेंटर में पहली जरूरत होती है। इधर कुछ दिनों से पर्याप्त स्टाफ भी नही।
इन सब समस्याओ को सुनने वाली सेंटर व्यवस्थापक (मैनेजर) नित्य अपनी सेवाएं भी सुचारू नही कर रही।तकनीकी स्टाफ को समस्याए बताने पर वह एहसान जताते हुए कहते हैं कि शुक्र कीजिये डायलिसिस मिल रही है और बेखौफ होकर कहते हैं ईएसआईसी डायरेक्टर से शिकायत करें।
विचारणीय बात यह है कि ईएसआईसी के मरीजो का यह हाल ईएसआईसी प्रशासनिक कार्यालय के ठीक ऊपर है। इधर बिना मैनेजर के कभी कभी बिना दक्ष टेक्नीशियन्स के कुछ शिफ्ट भगवान भरोसे चल रही होती हैं। जिससे आये दिन कुछ मरीजो को डायलिसिस के दौरान जानलेवा स्थितियों का सामना तक करना पड़ जाता है। इन गम्भीर मरीजो की जान बचाने के लिए जान, समय आदि दांव पर लगानी पड़ रही है।
समस्याएं तो तमाम हैं लेकिन 4 घण्टे की डायलिसिस, उस प्रक्रिया में भी समय कटौती यानी साढ़े तीन घण्टे से भी कम डायलिसिस जैसी प्रक्रिया से जूझने के बाद किसी प्रकार का रेस्ट बेड नही।जब कि डायलिसिस के बाद अचानक उठकर चलने से रास्ते मे किसी प्रकार की अनहोनी बनी रहती है। इन सब से निपटने के लिए संस्था अपने बचाव हेतु बीमार/तीमारदार के हस्ताक्षर पहले ही ले चुकी होती है कि डायलिसिस में किसी प्रकार की जिम्मेदारी नही।
इसके अलावा इन गम्भीर मरीजो के साथ तीमारदारी कर रहे परिजनों की भी मूल जरूरतों के कोई इंतजाम नही।डायलिसिस के दौरान बाहर कुर्सियां तो है लेकिन डीसीडीसी की तरह से कोई टॉयलेट/पानी आदि की व्यवस्था नही।
सेंटर की व्यवस्थाओं से दयनीय हालत में पहुंच चुके इन गम्भीर मरीजो ने उत्तर प्रदेश के माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि मामले की न्यायोचित जांच कर उचित कार्रवाई की जाय व डायलिसिस मरीजो को इलाज सम्बन्धी सुविधाओं के आवश्यक निर्देश दिए जाय।
नोएडा से विवेक श्रीवास्तव की रिपोर्ट