देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज में नवरात्र साधना के अवसर पर युवाओं को सकारात्मक दिशा देने के उद्देश्य से कुलाधिपति डॉ. प्रणव पण्ड्या ने विशेष कक्षा का क्रम प्रारंभ किया है। इसके तहत वे युवा मन को ऊर्ध्वगामी बनाने की दिशा में प्रेरित कर रहे हैं। डॉ. पण्ड्या ने कहा कि आत्म साधना ऐसी होनी चाहिए। जिससे बड़ी से बड़ी चट्टान जैसी विपत्ति को भी ढाया जा सके। मन को शांत करने के लिए भी साधना बहुत ही उपयोगी है।
उन्होंने कहा कि रामचरितमानस में भरत के प्रसंग में मानव विकास के छह गुणों का वर्णन किया गया है। इसकी प्रथम संपत्ति है शम- अर्थात मन की शांति। अगर व्यक्ति का मन शांत है, तो वह हर परस्थिति से बिना डरे लड़ सकता है और विजय प्राप्त कर सकता है। कुलाधिपति ने कहा कि शम, काम की अग्नि को शांत करती तथा जीवन और प्रकृति के साथ तालमेल बिठाती है।
डॉ. पण्ड्या ने कहा कि मनुष्य की कामनाएं कभी शांत नहीं होती। वह एक के बाद एक वस्तुओं पर अपना अधिकार जमा कर उन्हें एकत्रित करना चाहता है। परंतु भरत ऐसे पुरुष थे जिन पर कामनाओं ने अपना जाल बिछाया। परन्तु उनमें शम का बल होने से सारी कामनाएं उनके आगे विफल हो गई। इस अवसर पर कुलपति शरद पारधी, प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या, कुलसचिव संदीप कुमार सहित विभागाध्यक्ष, विद्यार्थीगण व शांतिकुंज के कार्यकर्ता शामिल थे।
डॉ. रुचि यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित
देव संस्कृति विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ. रूचि सिंह को यंग साइंटिस्ट अवार्ड से सम्मानित किया गया है। डॉ. रुचि को यह अवार्ड यज्ञोपैथी पर किए गए शोध एवं प्रभावी प्रस्तुतिकरण के लिए मिला है।
उत्तराखंड सरकार की विज्ञान एवं तकनीकी काउंसिल द्वारा देहरादून में बारहवीं साइंस कांग्रेस के आयोजन अवसर पर डॉ. रुचि सिंह ने यज्ञोपैथी को लेकर अपने शोधों का सारांश प्रस्तुत किया। सभी ने एक मत से स्वीकार किया कि यह एक बहुत ही उपयोगी शोध है। साथ ही यह शोधपत्र उच्च गुणवत्ता युक्त एवं समसामयिक भी है। आयोजन में डॉ. रूचि सिंह को यंग साइंटिस्ट का अवार्ड प्रदान किया गया।