जानिये, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों कहा लाठी ग्रामीण की पहचान, हत्या का हथियार नहीं | Nation One
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में टिप्पणी करते हुए हत्या (धारा 302) के प्रकरण को यह कहते हुए गैर इरादतन हत्या (धारा 304 भाग दो) में बदल दिया कि, लाठी ग्रामीण की पहचान है, इसे हत्या का हथियार नहीं कह सकते. साथ ही कोर्ट ने जेल में आरोपी के रहने की अवधि (14 साल) को सजा मानते हुए उसे रिहा करने का आदेश दिया.
जस्टिस आरएफ नरीमन की पीठ ने आदेश में कहा कि गांव में लोग लाठी लेकर चलते हैं, जो उनकी पहचान बन गई है. यह तथ्य है कि लाठी को हमले के हथियार की तरह से प्रयुक्त किया जा सकता है लेकिन, फिर भी इसे सामान्य तौर पर हमले का हथियार नहीं माना जा सकता. मौजूदा मामले में लाठी से सिर पर वार किया गया है लेकिन, यह हमेशा सवाल रहेगा कि क्या वार हत्या के इरादे से किया गया था? उसे इस बात का ज्ञान था कि इस वार से जान जा सकती है.
कोर्ट ने कहा कि तथ्य व परिस्थितियां, हमले की प्रकृति और उसका तरीका, वार/घावों की संख्या आदि को देखकर ही इरादे के बारे में तय किया जा सकता है. इस मामले के अभियुक्त जुगत राम ने खेत पर काम कर रहे व्यक्ति के सिर पर लाठी से वार किए, जो उस समय उसके हाथ में थी. दोनों के बीच मामला भूमि विवाद का था. वार के कारण पीड़ित की दो दिन बाद अस्पताल में मौत हो गई.
2004 में आरोपी को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. पुलिस ने मामले को धारा 302 में तब्दील कर दिया और सेशन कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा दी. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने भी उसे बरकरार रखा. हाईकोर्ट ने कहा कि हत्या पहले योजना बनाकर नहीं की गई थी बल्कि गुस्से में हो गई थी. हालांकि, उसने धारा 302 के तहत सजा बरकरार रखी. सजा के इस फैसले को राम ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.