
ऐसे लिया तेज तर्रार महिला आईएएस अधिकारी ने पिता की मौत का बदला | Nation One
अगर समय खराब है तो उससे हारना नहीं चाहिए बल्कि परिस्थितियों से लड़ते रहना चाहिए, देखिए फिर समय कैसे पलटता है और आपकी सारी समस्याएं कैसे दूर हो जाती हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है देश की तेज तर्रार महिला आईएएस अधिकारी किंजल सिंह की, जिन्होंने न केवल पिता का सपना पूरा किया बल्कि, अधिकारी बनकर पिता के हत्यारों को सजा भी दिलवाई.
अकेली विधवा मां विभा सिंह ने ही किंजल और बहन प्रांजल सिंह की परवरिश की. किंजल की माँ वाराणसी के कोषालय में कर्मचारी की नौकरी करती लेकिन, तनख्वाह का ज्यादातर हिस्सा मुकदमा लडऩे में चला जाता था. तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने दोनों बेटियों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया और अपने पति के आईएएस बनने के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए भी प्रोत्साहित करती रहीं.
दरअसल, किंजल के पिता डीएसपी सिंह आईएएस बनना चाहते थे और उनकी हत्या के कुछ दिन बाद आए परिणाम में पता चला कि उन्होंने आइएएस मुख्य परीक्षा पास कर ली थी. माँ को बेहद तकलीफ से गुजरते देख किंजल से रहा नहीं गया और फिर उसने माँ से वादा किया कि हम दोनों बहनें आईएएस बनकर पिता के हत्यारे को सजा दिलाएंगे. बेटी की इस आत्मविश्वास से माँ को सुकून मिला और फिर कुछ दिनों बाद माँ का भी देहांत हो गया. मां की मौत के दो दिन बाद ही किंजल को दिल्ली लौटना पड़ा क्योंकि उनकी परीक्षा थी.
मां से किए वादों को पूरा करने का वक्त आया
किंजल दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप करते हुए गोल्ड मेडलिस्ट बनीं. ग्रेजुएशन ख़त्म करने के बाद उन्होंने छोटी बहन प्रांजल को भी दिल्ली बुला लिया और मुखर्जी नगर में फ्लैट किराए पर लेकर दोनों बहनें आईएएस की तैयारी में लग गईं. इस दौरान किंजल के मौसा-मौसी ने हमेशा दोनों बहनों का ख्याल रखा. हॉस्टल में त्याहारों के समय सारी लड़कियां अपने-अपने गांव निकल जाया करती थीं लेकिन, दोनों बहनों ने बिना वक़्त जाया किये दिन-रात एकजुट होकर आइएएस की तैयारी करती रहीं.
दोनों बहनें एक दूसरे की शक्ति बनकर एक-दूसरे को प्रेरित करती रहीं. फिर जो हुआ उसका गवाह सारा देश बना, 2007 में जब परिणाम घोषित हुआ तो संघर्ष की जीत हुई और दोनों बहनों ने आईएएस की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास कर अपनी मां का सपना साकार किया. किंजल जहां आईएएस की मेरिट सूची में 25वें स्थान पर रही तो प्रांजल ने 252वें रैंक लाकर यह उपलब्धि हासिल की.
जद्दोजहद के 31 साल बाद मिला न्याय
पिता को न्याय दिलाने की माँ की अधूरी लड़ाई का दामन अपने हाथों में लेते हुए दोनों बहनों ने अपनी गूंज से न्यायपालिका को हिला दिया. उत्तर प्रदेश में एक विशेष अदालत ने केपी सिंह की हत्या करने के आरोप में तीन पुलिसवालों को फांसी की सजा सुनाई, तभी से शुरु हुआ न्याय के लिए लंबा संघर्ष. किंजल सिंह को देर से ही सही लेकिन, न्याय मिला 31 साल तक जद्दोजहद के बाद.
5 जून, 2013 को लखनऊ में सीबीआइ की विशेष अदालत ने फैसला सुनाते हुए केपी सिंह की हत्या के आरोप में 18 पुलिसवालों को दोषी ठहराया. आज किंजल सिंह देश की एक ईमानदार और सख्त आईएएस अफसर के रूप में जानी जाती हैं लेकिन, इस मुकाम तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था. महज छह माह में पिता को खो देने के बावजूद किंजल ने परिस्थितियों से लड़ना सीखा और खुद की बदौलत आईएएस बनीं तथा अपनी बहन को भी प्रशासनिक अफसर बना अपनी माँ के सपने को साकार किया. पिता के हत्यारों को सजा दिलाते हुए किंजल ने सिद्ध कर दिया कि बेटियाँ किसी मामले में बेटों से कम नहीं हैं.
ऐसे हुई थी पिता की मौत
आपको बता दें, 12 मार्च 1982 को किंजल के पिता केपी सिंह गोंडा जिले में तैनात थे. उन्हें एक गांव में कुछ अपराधियों के छिपे होने की सूचना मिली. केपी सिंह ने पुलिस बल के साथ गांव में घेराबंदी की दोनों ओर से गोलियां चलीं. किंजल के पिता डीएसपी केपी सिंह इस गोलेबारी में घायल हुो गए.
उनके अधीनस्थों की अपराधियों के साथ मिलीभगत थी. इसी का फायदा उठाते हुए उनके साथ रहे पुलिसकर्मियों ने उन्हें गोली मार दी. अस्पताल ले जाने के बाद उन्होंने दम तोड़ दिया. बाद में आरोप लगा कि डीएसपी केपी सिंह की हत्या अपराधियों की गोली से नहीं बल्कि उन्ही के मातहतों द्वारा की गई है. इस मामले को सीबीआई को ट्रांसफर किया गया.