न्यायपूर्ण फैसले के लिए जज को अपने पद के पावरफुल स्मृति में रहना होगा | Nation One
निर्बलता है तो असफलता भी है, असफलता का कारण निर्बलता है। हमारी असफलता के पीछे समर्थता का अभाव है। हम चाहते तो बहुत कुछ हैं, लेकिन इसे पै्रक्टिकल में नहीं ला पाते हैं, क्योंकि इच्छा रखने के साथ, उस इच्छा को पूरा करने की इच्छा शक्ति का होना भी जरूरी है। इच्छा शक्ति तभी आयेगी जब हमें अपने आत्मबल की स्मृति होगी। एक होती है साधारण स्मृति और दूसरी होती है पावरफुल स्मृति।
जैसे कोई जज जब अदालत के डायस पर बैठता है तो उसमें जजपन की स्मृति होती है। यह स्मृति जज को अपने कार्य को कुशलता पूर्वक करने की शक्ति प्रदान करती है। यदि जज अपनी शक्ति को भूल जाय तब उसके फैसले अन्यायपूर्ण होंगे। न्यायपूर्ण फैसले करने के लिए जज को हमेशा अपने पद के पावरफुल स्मृति में रहने के लिए प्रैक्टिस करना होगा। अर्थात हमें अपने हर संकल्प, हर कार्य को करते समय अपने आत्मबल की शक्ति को याद में रखकर करना होगा।
अपने आत्मबल की शक्ति को याद में रखकर कार्य करने से हमारे भीतर कमजोरी का अनुभव नहीं होगा। लेकिन जब जज अदालत के डायस पर बैठने वाली याद की सर्विस को भूल जाता है और अपनी सीट छोड़ देता है, तब जज अपने पद के पावरफुल स्मृति को भूल जाता है। अतः हमें अपने पावरफुल स्मृति के सीट को नहीं छोड़ना है।
आत्मबल की शक्ति को याद करने वाली सीट को छोड़ते ही हमें थकान महसूस होने लगता है। जबकि हमें हमेशा अपनी से आत्मशक्ति और परमात्माशक्ति से अटूट-अटल-अखण्ड संबंध का अनुभव होना चाहिए। अटूट सम्बन्ध होने से हम स्व पर राज्य करने के अधिकारी बन जाते हैं और हमारा अपने ऊपर कन्ट्रोल में आता है।
इच्छा शक्ति बढ़ाने के लिए अपने लक्ष्य पर अन्य बातों का पूर्णतः समर्पण कर देना चाहिए। जितना विल करेंगे उतना ही विल पावर वाले बनेंगे। यदि विल पावर है तब असफलता नहीं है। यदि हम अपनी आत्मशक्ति के लगन में मगन रहेंगे तब कठिनाईयों का सामना नहीं करेंगे। माया, कठिनाईयों के रूप में हमारे सामने इसलिए आती है, क्योंकि हम खाली रहते हैं, लेकिन जब हम बिजी होंगे तब माया सामना नहीं करेगी। हमें बिजी देखकर माया आकर लौट जायेगी।
बिजी रहकर अपने कार्य में मगन रहना, लगन रहना अर्थात अण्डर ग्राउण्ड हो जाना है। अण्डर ग्राउण्ड रहने पर हम बाहर के बम वर्षा से बच जाते हैं। यदि हम अन्तर्मुखता की सीट छोड़ दें तब माया पुनः लौट आती है। अपने को अण्डर ग्राउण्ड कर लेना अथवा बिजी कर लेना हमारे सेफ्टी का साधन है। जो व्यक्ति अण्डर ग्राउण्ड रहकर कार्य करने की प्रैक्टिस नहीं करते हैं वह थोड़े ही देर में चंचल होकर बहिर्मुखता में आ जाते हैं। लेकिन अन्तर्मुखता हमारे निरन्तर के अन्तर को समाप्त कर देती है।
इच्छाशक्ति को बढ़ाने के लिए योगयुक्त अवस्था का प्रैक्टिस करना होगा। योगयुक्त अवस्था अर्थात अपने कार्य से योग लगाना। जैसे यदि कोई बच्चा इंजीनियर बनना चाहता है तब वह अपनी इंजीनियरिंग परीक्षा की तैयारी से योग लगाये। परमात्मा से योग लगाने पर दिव्य बुद्धि मिलती है। दिव्य बुद्धि योगयुक्त अवस्था को प्राप्त करने में मदद देती है। दिव्य बुद्धि हमें ओरीजिनल गोल्ड बना देता है। मिलावटी गोल्ड को मोल्ड करने मंे परेशानी होती है। लेकिन ओरीजिनल गोल्ड आसानी से मोल्ड हो जाता है।
डाॅ० कमजोर शरीर में शक्ति प्रदान करने के लिए गूलूकोज चढ़ाता है। उसी प्रकार स्वयं को आत्मा समझकर साक्षीपन की अवस्था की प्रैक्टिस हमारे भीतर शक्ति भरने का कार्य करती है। जितना अपने को साक्षी समझेंगे उतना ही परमात्मा के साथी का अनुभव होगा। ऐसा करने से एक तरफ साक्षीपन के शक्ति का अनुभव होता है तथा दूसरी तरफ परमात्मा के साथी बनने के खुशी के खुराक वाला शक्ति का अनुभव होता है।
शक्ति प्राप्त होते ही हम निरोगी बन जाते हैं। यह हमारी पावरफुल स्थिति है। जिस प्रकार डाॅ० किटाणु मारने के लिए लेजर किरणों का प्रयोग करता है उसी प्रकार साक्षीपन के अनुभव से हमारे अन्दर की बुराई रूपी किटाणु नष्ट हो जाते हैं। बुराईयों को समाप्त करते ही हम शक्तिशाली बन जाते हैं।
मनोज श्रीवास्तव
विधानसभा देहरादून