पहाड़ में समय पर नहीं मिलता भूमि अधिग्रहण का मुआवजा
देहरादून।
देहरादून सर्वे चौक स्थित औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान सभागार में उत्तराखंड की स्वयंसेवी संस्थाओं ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्यों के सामने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में मानवाधिकार हनन सम्बन्धी मामलों को रखा। बैठक में आसरा ट्रस्ट की संस्थापक नीलू खन्ना ने बताया कि नदियों में बनी झुग्गी झोपड़ी, बेसहारा, भिक्षावृत्ति और लगातार माइग्रेशन करने वाले बच्चों को राज्य सरकार के सरकारी स्कूल शिक्षा की सुविधा नहीं दे रही है। इन विद्यालयों में एडमिशन के लिए जन्म प्रमाण पत्र नगर निगम देता है। नगर निगम से जन्म प्रमाण पत्र बनाने के लिए बिजली-पानी का बिल या जमीन के कागजात चाहिए। ऐसे में वो बच्चे जो झुग्गी झोपड़ी में रहते हैं, बेसहारा निर्धन और स्लम परिवारों से हैं उनको स्कूली शिक्षा नहीं मिल पा रही है। यह मानवाधिकार का हनन है।
लतिका राॅय फाउंडेशन की जो चोपड़ा ने आयोग के सामने यह समस्या रखी कि अस्थाई राजधानी के एकमात्र बड़े अस्पताल दून अस्पताल में एक ही जगह पर विकलांग प्रमाण पत्र बनाने के लिए कोई सुविधा नहीं है। प्रमाण पत्र बनाने वाला चिकित्साधिकारी कभी चंदन नगर और कभी दून अस्पताल में बैठते हैं। एक दिव्यांग व्यक्ति के लिए चंदन नगर स्थित चिकित्साधिकारी के कक्ष तक जो कि प्रथ्म तल पर है, वहाँ जाने के लिए कोई रैम्प या लिफ्ट आदि की व्यवस्था नहीं है। इस वजह से विकलांगता से प्रभावित बच्चों या व्यक्तियों का स्वास्थ्य परिक्षण नहीं हो पा रहा है। उन्हें कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सीड संस्था की कुसुम घिल्डियाल ने ट्रांस जेंडर और एचआईवी से प्रभावित व्यक्तियों के मानवाधिकार के बारे में बात रखी। उन्होंने कहा कि राज्य में ट्रांस जेंडर बोर्ड बनाकर उनके लिए स्वरोजगार और मूलभूत अधिकारों को मुहैया कराया जाना चाहिए।
चमोली की सामाजिक संस्था आगाज़ फैडरेशन के जेपी मैठाणी ने यह मुद्दा रखा कि बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं, सड़क परियोजनाओं में ग्रामीणों की जो भी भूमि अधिग्रहित की जाती है उसका सही और समय पर भुगतान नहीं होता है। जिससे कई परिवारों के सामने रोजी रोटी का संकट पैदा हो रहा है। विस्थापन एवं पुनर्स्थापना के समय जिला प्रशासन का सहयोग नहीं मिलता। यह सरासर मानव अधिकारों का हनन है। साथ ही अनुसूचित जाति के रिंगाल हस्तशिल्पियों को आज भी जंगलों से रिंगाल लाने से वन अधिकारी रोक रहे हैं। यह उनके मानव अधिकारों का हनन है। उन्होंने यह भी कहा कि उत्तराखंड राज्य में आपदा प्रबन्धन मंत्रालय 15 साल पहले बना दिया गया था। लेकिन आज तक आपदा प्रबंधन नीति राज्य सरकारों ने लागू नहीं की। जो कि मानव अधिकारों का हनन है।
अल्मोड़ा के पीसी तिवारी ने वन अधिकार कानून 2006 के अंतर्गत जनपदों में कमेटी नहीं बनाए जाने, महिलाओं के प्रार्थनापत्रों पर एफआईआर दर्ज ना करने और भूमाफिया के राजनैतिक संरक्षण में ग्राम समाज की जमीनों को कब्जाने को मानवाधिकार हनन बताया। रफेल होम्स की प्रभारी ने बताया कि मानसिक विकलांगता से प्रभावित लोगों के प्रमाणपत्र बनाने, स्वास्थ्य परिक्षण एवं इलाज के लिए प्रदेश में सभी जनपदों में कोई चिकित्साधिकारी नहीं हैं, सेलाकुई के मानसिक रोगी हाॅस्पिटल की स्थिति दयनीय है। इस बैठक में नशा, शराब, आदि के मुद्दों पर भी चर्चा एवं विचार विमर्श किया गया। बैठक में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के न्यायाधीश पीसी घोष, ज्योतिका काला, न्यायाधीश डी मुरूगेशन, डीआईजी अनुसंधान छाया शर्मा सहित उत्तराखण्ड की 50 से अधिक सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। यह बैठक लगभग डेढ घंटे चली।