शासनादेश में सरकारी सेवकों को यह क्या कह दिया…
- 50 साल की उम्र के बाद छंटनी वाले शासनादेश में इस्तेमाल शब्दों से कर्मचारियों में गुस्से में
- कर्मचारी संगठन की सभी का मेडिकल परीक्षण कराने की मांग
- स्क्रीनिंग कमेटी में संगठन को भी दिया जाए उचित प्रतिनिधित्व
देहरादून
14 साल पहले जारी आदेश पर अमल के लिए सरकार ने नया शासनादेश जारी किया है। इसके अनुसार 50 साल से अधिक आयु वाले सरकारी सेवकों को स्क्रीनिंग कमेटी की सिफारिश पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जानी है। इस नए शासनादेश में 50 साल के अधिक आयु वाले सेवकों को मृतप्रायः लकड़ी की संज्ञा देकर अच्छे प्रशासन के लिए छंटनी करने की बात की गई है। राज्य कर्मचारी संगठन ने इस पर गहरी आपत्ति व्यक्त की है।
50 साल से अधिक आयु वाले सरकारी सेवकों की स्क्रीनिंग करके अनिवार्य सेवा निवृत्ति का शासनादेश 2003 में जारी किया गया था। लेकिन आज 14 वर्षों बाद भी न तो स्क्रीनिंग कमेटी बनी और न ही किसी को सेवानिवृत्त किया गया। अब सरकार ने इस पर अमल के लिए नया शासनादेश जारी किया है। पिछली छह जुलाई को मुख्य सचिव के हस्ताक्षरों से जारी इस आदेश सभी विभागों में स्क्रीनिंग कमेटी बनाकर नवंबर तक बैठक करके 31 मार्च,2018 तक कार्मिक विभाग को सूची दी जानी है।
इस शासनादेश के बिंदु संख्या दो के तीन में कहा गया है कि अच्छे प्रशासन के लिए यह आवश्यक है कि मृतप्रायः लकड़ी को काट दिया जाए। (सरकारी सेवक को अनिवार्य सेवा निवृत्ति दे दी जाए)। लेकिन छंटनी का आदेश सरकारी सेवक की सेवा को संपूर्ण रिकार्ड को ध्यान में रखकर किया जाए। जाहिर है कि सरकार 50 साल से अधिक आयु वाले सरकारी सेवकों को ‘मरी लकड़ी’ ही मान रही है। शासनादेश में मृतप्रायः लकड़ी लफ्ज इस्तेमाल करने से पहले कहा गया है कि गुजरात उच्च न्यायालय ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति के एक मामले में मार्गदर्शक सिद्धांत भी दिए हैं। एक मीडिया रिपोर्ट में कर्मचारी संगठन के हवाले से कहा गया है कि इस तरह के लफ्जों के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए था। संगठन की मांग है कि इस आदेश पर अमल से पहले सभी अधिकारियों और कर्मचारियों की मेडिकल परीक्षण भी कराना चाहिए। ताकि तय हो सके कि अधिकारी या कर्मचारी किन-किन रोगों से पीड़ित है और क्या बीमारी की वजह से वह काम करने की स्थिति में है भी या नहीं। साथ ही स्क्रीनिंग कमेटियों में संगठन को भी प्रतिनिधित्व दिया जाए। ताकि द्वेषवश किसी के खिलाफ कार्रवाई की आशंका को दूर किया जा सके।
नकल के लिए भी नहीं लगाई अकल: उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से ऐसा की शासनादेश जारी होने के अगले रोज ही उत्तराखंड सरकार ने भी आदेश जारी कर दिया। जल्दबाजी इतनी रही कि यूपी के शासनादेश की नकल कर ली गई। लेकिन इस नकल के लिए अकल नहीं लगाई गई। मुख्य सचिव एस. रामास्वामी के हस्ताक्षरों से जारी इस आदेश में सेवा में के सामने भी मुख्य सचिव लिखा गया है।
कौन होगा मुख्य सचिव की स्क्रीनिंग कमेटी में ः सूबे की नौकरशाही के मुख्य मुख्य सचिव होते हैं। मुख्य सचिव एस. रामास्वामी भी 50 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं। ऐसे अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि मुख्य सचिव भी ‘मरी लकड़ी’ की कैटेगरी में आते हैं या नहीं, इसकी स्क्रीनिंग करने वाली कमेटी में कौन से अफसर शामिल होंगे। या केवल मुख्यमंत्री खुद ही मुख्य सचिव के बारे में फैसला लेंगे। इसी तरह से अपर मुख्य सचिवों की स्क्रीनिंग क्या अकेले मुख्य सचिव ही करेंगे।