बस्तर के भोले-भाले आदिवासी के सवा करोड़ की जमीन को दलालों ने कूटरचना कर 6 लाख में बिकवा दिया

बस्तर आदिवासी पांचवी अनुसूची बहुल क्षेत्र होने के साथ-साथ यहां ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी बहुत ही भोले और सीधे होते हैं। उन्हें शहर की खरीदी बिक्री की कोई जानकारी नहीं होती है। जिसका फायदा शहर  के कुछ दलालों ने उस आदिवासी के साथ रहकर उठाया है अभी हाल ही में  एक आदिवासी की जमीन को कूटरचना कर शहर के दलालो ने करोड़ो की जमीन को 6 लाख में खरीदी बिक्री करवा दी, जिसकी जानकारी उस आदिवासी को अब तक नही लगी है, क्योंकि उसे शहर के वास्तविक जमीन के मूल्य का पता नही है।

दरअसल मामला जगदलपुर नगर निगम के ग्राम हाटकचोरा आनंद ढाबा के पास NH जयपुर रोड के ऊपर का है। जहां  खसरा न.161/2 की .40 डिसमिल भूमि जो कि डायवर्टेड भूमि एक आदिवासी अलनार निवासी के नाम पर है जिसे वो अपनी जरूरत के लिए बेचना चाह रहा था। तभी वो शहर के कुछ दलालो के संपर्क में आ गया और दलालो ने उसे अपने जाल में फ़ांस लिया। वो गॉव का आदिवासी कुछ समझ पाता उससे पहले ही उन दलालो ने कूटरचना कर उस आदिवासी की सवा करोड़ की जमीन को दलालो ने बहला फुसलाकर 6 लाख में सौदा कर गैर आदिवासी से सौदेबाजी कर दिया और गैर आदिवासी ने बिना समय गवाये दूसरी आदिवासी महिला के नाम से खरीदी बिक्री कर दी।

गैर आदिवासियों द्वारा इस भूमि को रजिस्टर्ड अग्रीमेंट कर भूमि को NH रोड़ से छुपाया,परिवर्तित भूमि भी छुपाया, सरकारी मूल्य को छुपाया, इनकम टैक्स के नियमों को ताक में रख दलालो ने नगद पैसे 5 लाख देने का हवाला दिया है। साथ ही पूरे दस्तावेजो को देखने का चेक करने का काम उप पंजीयक का होता है। लेकिन दस्तावेज में तमाम कमी खामी देखने के बाद लगता है कि उप पंजीयक की भूमिका भी जांच के दायरे में है।

मामले की जानकारी लगते ही आदिवासी समाज ने तत्काल संभाग आयुक्त से इन मामले में जांच कर दलालो के खिलाफ FIR करने की मांग की साथ ही उप पंजीयक की भी साठ गांठ होना बताया है। वहीं आदिवासी समाज भूमि वापस भूमि स्वामी को लौटाने की मांग की साथ ही कड़ी कार्यवाही की समाज ने मांग की कमिश्नर ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच टीम गठित कर दिया है।

अब देखना ये होगा आखिर वो कौन दलाल थे जिन्होंने सवा करोड़ की जमीन को 6 लाख में बिकवा दिया, जिसकी भनक उस भोले भाले आदिवासी को भी नही लगी। साथ ही जिस गैर आदिवासी ने इस जमीन की खरीदी बिक्री एक आदिवासी महिला के नाम से कर रखी है। क्या वो इनकम टैक्स के चपेट में आ जायेगी जिसका खामियाजा उसे 35 से 40 लाख के इनकम टैक्स पेनल्टी देकर चुकाना होगा  जिसका इस जमीन से कोई लेना देना ही नही है वो बस मोहरे के समान उसे इस्तेमाल किया जा रहा है।

 

जगदलपुर,छत्तीसगढ़ से मुकेश सोलंकी की रिपोर्ट