जानिए उस अंग्रेज के बारे में जो उत्तराखंड के संगीत के बारे में हमसे ज्यादा जानते हैं…

जानिए उस अंग्रेज के बारे में जो उत्तराखंड के संगीत के बारे में हमसे ज्यादा जानते हैं...

उत्तराखंड: बात अगर उत्तराखंड की प्राचीन संस्कृति की करें तो आज के इस दौर में उत्तराखंड की संस्कृति विलुप्त होने के कगार पर है। उत्तराखंड में तेजी से हो रहे परिवर्तन के कारण लोग अपनी प्राचीन समय से चली आ रही प्रथा को भूल रहे है। तेजी से हो रहे इस विकास कारण हमारी प्राचीन से चली आ रही परम्परा अब विलुप्त हो रही है। वही दूसरी और आपको यह जान कर हैरानी होगी कि हमारी प्रचीन समय से चली आ रही प्रथा को एक विदेशी नागरिक बरकरार रखने की कौशिश में लगे हुए है। यह विदेशी नागरिक उत्तराखंड के संगीत के बारे में हमशे ज्यादा जानता है।

जानिए उस अंग्रेज के बारे में जो उत्तराखंड के संगीत के बारे में हमसे ज्यादा जानते हैं...

उन्होने यहां आकर 14 सालों तक उत्तराखंड के…

आपने उत्तराखंड के जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण के साथ अक्सर एक अंग्रेज को देखा होगा। और यह अंग्रेज प्रीतम भरतवाण के नारगां सारंगा गाने में ढोल डमाऊ बजाते हुए दिखा था। जिस अंग्रज के बारे में हम अापको बताने वाले हैे उनका नाम स्टीफन फियोल है। स्टीफन अमेरिका के सिनसिनाटी शहर के रहने वाले है। वह कुछ समय पहले वो उत्तराखंड आए थे। उन्होने यहां आकर 14 सालों तक उत्तराखंड के प्रसिद्ध वाद्य यंत्र के बारे में और उत्तराखंड के संगीत के बारें में अध्ययन किया। और इतना ही नहीं उन्होने यहां रह के उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों को अपनाया भी है। पिछले १४ सालों से उत्तराखंड के वाद्य यंत्रों का अध्ययन करने के बाद उन्होने 2017 में रेकास्टिंग फोक इन द हिमालयास नाम की एक बुक लिखी। इस बुक में उन्होने उत्तराखंड के वाद्य यंत्र ढोल दमाऊं के बारे में सविस्तार बताया है। और आज यह हमारे लिए गर्व की बात है कि विदेश में भी लोग हमारे उत्तराखंड के बारे में जान रहे है।

 

जानिए उस अंग्रेज के बारे में जो उत्तराखंड के संगीत के बारे में हमसे ज्यादा जानते हैं...

उनके साथ रहकर उन्होने उत्तराखंड के वाद्य यंत्रो…

फियोल उत्तराखंड में 2003 में आए थे। और वह यहां उत्तराखंड के प्रसिद्ध वाद्य यंत्रों के बारे में अध्ययन करने के लिए आए थे। और पूरी तरह से उत्तराखंड के संगीत में लीन हो गए और उनके मन में यहां के संगीत तथा वाद्य यंत्रो के बारे में जानने का उत्साह पैदा हुआ। उन्होने उत्तराखंड के ढोल डमाऊ और संगीत का अध्ययन करने के लिए देवप्रयाग स्थित नकक्षत्र वेदशाला में योगाचार्य भास्तकर जोशी की शरण ली। और उनके साथ रहकर उन्होने उत्तराखंड के वाद्य यंत्रो के बारे में जाना समझा और उस पर एक किताब भी लिखी।

फियोल आज देश विदेश में उत्तराखंड के संगीत…

इसी के साथ ही ढोल डमाऊ की ताल उन्होने देवप्रयाग के पुजार गांव में वहां के दासों से सीखी। फियोल को उत्तराखंड की सस्कृति और यहां का वातावरण इतना अच्छा लगा कि वह यही के रह गए। और खास बात तो यह है कि उन्होने यहा पर रह कर अपना नाम फियोली दास रख दिया। उन्होने उत्तराखंड में रहकर ना हिंदी के साथ-२ गढवाली भी सिखी। और अब वह बहुत अच्छी गढवाली बोल लेते है। फियोल ही जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण को अमेरिका लेकर गए थे। और यहां उन्होने एक युनीवर्सिटी में बच्चो को ढोल डामउ की शिक्षा दी । फियोल आज देश विदेश में उत्तराखंड के संगीत को लोगो तक पहुंचा रहा है। आजकल अगर देखा जाए तो उत्तराखंड की आने वाली पीढी ढोल डमाउ के बारे में जानती भी नहीं है लेकिन फियोल उत्तराखंड के पारम्पारिक वाद्य यंत्रो को बरकरार रख रहे है।