कुम्भ मेले में अद्भुत साधु संतों ने डेरा जमा लिया, बने आकर्षण का केंद्र | Nation One
धर्मनगरी हरिद्वार महाकुंभ पर्व के रंग में रंग चुकी है। कुम्भ मेले में अद्भुत साधु संतों ने डेरा जमा लिया है। इनका आशीर्वाद लेने वाले श्रद्धालुओं का ताँता लगा हुआ है क्योंकि 12 साल बाद ही लोगो को इन संतो के अद्भुत दर्शन होते है।
हरिद्वार स्थित डामकोठी के पास गंगा किनारे 11 हजार रुद्राक्ष पहने रुद्राक्ष बाबा धुना रमाये भगवान शिव की साधना में लीन है, तो वही बैरागी कैम्प में सात किलो मोतियों की मालाएं पहने दयाल दास महाराज कुम्भ पर्व में आकर्षण का केंद्र बने हुए है।
11 हजार माला पहने रुद्राक्ष बाबा का मूल नाम अजय गिरी महाराज है और वो निरंजनी अखाड़े के नागा सन्यासी है। अगर बात करें वजन की तो इन 11 हजार रुद्राक्ष का कुल वजन लगभग 20 किलो है। रुद्राक्ष बाबा बताते है कि भगवान शिव के अश्रु से रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई है। रुद्राक्ष भगवान शिव का रूद्र स्वरूप माना जाता है, शिव आदि अनादि है, शिव से संसार है शिव से ही सृष्टि है। जब कहीं भी कुंभ मेले का आयोजन होता है तब रुद्राक्ष धारण करके वह धुने पर बैठते हैं।
इतना ही नहीं रुद्राक्ष बाबा यह भी बताते हैं कि कुंभ मेले के बाद वह अपने मठ मंदिरों में रहकर भगवान शिव की आराधना करते है। उदेश्य केवल उनका एक ही है, विश्व कल्याण और सनातन धर्म का प्रचार प्रसार। कुम्भ मेले के समापन के बाद ये संत अपने अपने स्थानों पर चले जाते है और वहीं रहकर भगवान शिव की साधना करते है।
ऐसे ही एक संत है दयाल दास जो निर्वाणी अखाड़े के बैरागी संत है। दयाल दास ने अपने गले मे 103 मालाएं पहनी हुई है, इन मालाओं का वजन भी लगभग सात किलो है। संत दयाल दास ने ये मालाएं बाजार से खरीदकर नही पहनी है, बल्कि देश के विभिन्न राज्यों के संतों से उन्होंने ये माला आशीर्वाद स्वरूप ली हुई है।
इनके पीछे उनका एक संकल्प है, जो 108 माला पूरी होने पर ही पूरा होगा। 108 मालाएं पूरी हो जाने पर वो एक विशेष यज्ञ करेंगे, जिसमे बड़ी संख्या में साधु संत शामिल होंगे। उनका भी केवल एकमात्र उद्देश्य है सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करना।
संत दयाल का कहना है कि अभी उन्हें अपना संकल्प पूरा करने के लिए 5 मालाओं की आवश्यकता है, लेकीन ये मालाएं कब उन्हें मिलेगी इनके बारे में उन्हें जानकारी नही है।
रिपोर्ट : वंदना गुप्ता