ट्रांसजेंडर, सेक्स वर्कर क्यों नहीं कर सकते हैं रक्तदान, SC ने केंद्र सरकार से मांगा जवाब | Nation One
नई दिल्ली : केंद्र सरकार के 2017 के नियम के मुताबिक कोई भी ट्रांसजेंडर, समलैंगिक पुरुष या सेक्स वर्कर महिला या पुरुष रक्त दान नहीं कर सकते। जबकि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में इस नियम को ऐसे लोगों के मूल अधिकारों का हनन बताया गया है।
ये नियम ऐसे लोगों के मन में हीं भावना पैदा करता है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में मणिपुर की रहने वाली ट्रांसजेंडर महिला सांता खुराई ने एक जनहित याचिका दाखिल कर 2017 के केंद्र सरकार के आदेश को चुनौती दी है।
केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के मुताबिक कोई भी ट्रांसजेंडर, समलैंगिक पुरुष और सेक्स वर्कर महिला या पुरुष रक्त दान नहीं कर सकता है। क्योंकि इसकी वजह एच आई वी एड्स खतरा बढ़ जाता है। सरकार के मुताबिक ऐसे लोगों का खून संक्रमित हो सकता है। और अगर इनका खून किसी और के लिए इस्तेमाल हुआ तो हमेशा बीमारी के फैलने का खतरा बना रहेगा।
हालांकि सांता खुराई का कहना है की ये उनके अधिकारों का हनन है। सरकार की ये नीति पुराने धारणाओं पर आधारित है। वैज्ञानिक तौर पर ऐसा करना सही नहीं है। दुनिया में किसी भी विकसित देश में इस तरह के नियम लागु नहीं किये गए हैं।
इतना ही नहीं उन्होंने ये भी कहा कि विकसित देशों में ऐसे लोगों के रक्त दान से पहले ये देखा जाता है की उन्होंने रक्त दान से पहले अपना आखिरी सेक्सुअल कॉन्टैक्ट कब किया था। अलग अलग देशों में इसको ले कर अलग नियम है।
ज्यादातर देशों में 45 दिन से ले कर तीन महीने तक का नियम है। यानी अगर रक्त दान करने वाले का आखिरी सेक्सुअल कॉन्टैक्ट 45 दिन से ले कर तीन महीने पहले हुआ है तो वह व्यक्ति रक्दान कर सकता है।
इन सब में सबसे अहम बात यह है कि भारत समेत सभी देशों में दान किए गए रक्त की हेपेटाइटिस और एचआईवी के लिए जांच की जाती है। सिर्फ स्वच्छ रक्त ही किसी मरीज के लिए इस्तेमाल किए जाते है।
फिर कुछ खास तरह के लोगों पर रक्त दान की पूरी तरह से पाबंदी लगा देना किस तरह का इंसाफ है। सांता ने अपनी याचिका में मांग की है कि भारत सरकार के 20170 के नियम को सुप्रीम कोर्ट रद्द करे।
जिसके बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में ट्रांसजेंडर लोगों को सभी सरकारी स्कीम में शामिल करने और हर सरकारी फॉर्म में ट्रांसजेंडर का अलग कॉलम रखने का आदेश दिया था। हालांकि इस पर कोई सरकारी आंकड़ा नही है।