‘लव जिहाद’ का इतना शोर क्यों, कैसे रुकेगा ये ? | Nation One
रिपोर्ट : प्रकाश नौटियाल
हरियाणा राज्य के फरीदाबाद जिले में परीक्षा देकर लौट रही छात्रा निकिता की गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस घटना के बाद फिर से `लव जिहाद` चर्चा में है क्योंकि, जिस छात्रा की हत्या की गई उसे मारने वाला आरोपी तौसीफ था. वह उस पर जबरदस्ती दोस्ती करने का दबाव डाल रहा था, असफल रहने पर गोली मार दी. तौसीफ ने गिरफ्तारी के बाद निकिता की हत्या करना स्वीकारा है.
हालांकि, इस मामले में प्रशासन पर भी अंगुलियां उठ रही हैं क्योंकि, मृतका के पिता ने कहा कि वह पहले भी युवक की शिकायत पुलिस में कर चुके थे लेकिन, यह पहली घटना नहीं है. इसी तरह की तमाम घटनाएं सामने आई हैं जिनके बाद से लव जिहाद का शोर होने लगा.
आखिर यह है क्या? और यह कैसे रुकेगा? क्योंकि, इस तरह की घटनाएं सामने आऩे के बाद शांतिभंग की आशंकाएं उत्पन्न होने लगती हैं. इतिहासकारों की नजर में यह कुछ नहीं है. उनका मानना है कि, 19वीं सदी में इस तरह की घटनाओं पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं होती थी. 20वीं सदी की शुरुआत के बाद ही कुछ इस तरह के मामले सामने आए जिन्हें `लव जिहाद` का नाम दिया जाने लगा.
यह बात सही है कि, लोग अब इस तरह के मामले सामने आने के बाद इसे `लव जिहाद` या `रोमियो जिहाद` भी कहने लगे हैं. साथ ही, पूर्ण रूप से मुस्लिम पुरुषों द्वारा गैर-मुस्लिम समुदायों से जुड़ी महिलाओं को बहला-फुसलाकर, प्रेम जाल में फांसकर इस्लाम में धर्म परिवर्तन कराने की एक सोची समझी साजिश का हिस्सा बता रहे हैं. गुप्त तरीके से तो यह बहुत लंबे समय से चल रहा है लेकिन, 2009 में भारत में राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार केरल और उसके बाद कर्नाटक की घटनाओं को लेकर सुर्खियों में आया.
हिन्दू संगठनों का मानना है, `हिन्दू संस्कृति के संरक्षण` एवं `लव जिहाद` के अंत के लिए कठोर निर्णय लेने ही होंगे. पूर्व में कहीं ना कहीं जिहादियों का साथ राजनीतिक पार्टियां, राजनेता और प्रशासनिक अधिकारी खड़े नजर आए हैं, जिसके चलते इनके हौसले बढ़े.
दक्षिणपंथी संगठनों के मुताबिक, संगठित रूप से `लव जिहाद` होता है लेकिन, सरकार ने इसी साल संसद में कहा था कि कानून में ऐसी कोई चीज नहीं है. नवंबर 2009 में, पुलिस महानिदेशक जैकब पुन्नोज ने कहा था कि कोई भी ऐसा संगठन नहीं है, जिसके सदस्य केरल में लड़कियों को मुस्लिम बनाने के इरादे से प्यार करते थे.
तब दिसंबर 2009 में, न्यायमूर्ति के.टी. शंकरन ने पुन्नोज की रिपोर्ट को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया था और इसे जबरदस्ती धर्मांतरण के संकेत बताया था. उस दौरान अदालत ने `लव जिहाद` मामलों में दो अभियुक्तों की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि पिछले चार वर्षों में इस तरह के तीन से चार हजार मामले सामने आए थे.
फरीदाबाद में छात्रा निकिता की हत्या से पहले 17 अक्टूबर का बरेली में भी इस तरह की घटना सामने आई थी जिसमें काफी बवाल हुआ था. वहां एक छात्रा लापता हो गई. पता चला कि, यह मामला भी `लव जिहाद` का है. आरोप है कि, एक मुस्लिम युवक ने हिंदू बनकर युवती को फंसाया.
घरवालों का कहना है कि युवक माथे पर चंदन लगाता था और हाथों में मोटा कलावा बांधता था ताकि खुद को हिंदू साबित कर सके. युवती उसके झांसे में आ गई. मामला सामने आने के बाद हिंदू संगठनों ने जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया. जवाब में पुलिस ने लाठीचार्ज किया. विवाद बढ़ता देश पुलिस अधिकारियों ने चौकी इंचार्ज समेत कुछ सिपाहियों को सस्पेंड कर दिया.
हालांकि, लड़की के पिता ने बिलाल और उसके परिवार वालों के खिलाफ मामला दर्ज कर दिया है लेकिन, बात यहीं खत्म नहीं होती इससे पहले 10 अक्टूबर के आसपास कानपुर में भी ऐसा ही मामला सामने आया था. यहां भी एक युवती लापता हो गई थी.
लापता होने के पांच दिन बाद जब घरवालों को पता चला कि उनकी बेटी जोया शेख बन गई है तो सभी हैरान रह गए. तब परिजनों ने आरोप लगाया था कि सलमान नाम के युवक ने उनकी बेटी का ब्रेनवाश किया है, फिर उसका जबरन धर्म परिवर्तन कराने के बाद निकाह किया है. मां ने `लवजिहाद` की जांच के लिए बनी एसआईटी से न्याय की गुहार लगाई थी.
अभी कुछ दिन पहले की ही बात है, एक ज्वेलरी ब्रैंड के ऐड पर भी विवाद हुआ था. ऐड के जरिए `लव जिहाद` को बढ़ावा देने का आरोप लगा तो कंपनी ने विज्ञापन वापस ले लिया. इसके बाद राष्ट्रीय महिला आयोग की चेयरपर्सन रेखा शर्मा ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात की थी और राज्य में बढ़ते `लव जिहाद` के मामलों पर चिंता जताई मगर, ये `लव जिहाद` क्या है और भारत में इसकी शुरुआत कब हुई, यह जानना भी जरूरी है.
`लव जिहाद` यह टर्म दो-तीन दशक से ज्यादा पुराना नहीं है. जर्मनी में रहने वाली पीएचडी स्कालर आस्था त्यागी के अनुसार इस टर्म (लव जिहाद) का इस्तेमाल गुजरात में 90 के दशक के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत में हो रहा था. उस वक्त `लव जिहाद` का मतलब था कि मुस्लिम लड़के हिंदू लड़कियों को अपने जाल में फंसाते हैं, खासतौर से डांडिया जैसे सामुदायिक कार्यक्रमों में और फिर उनका धर्मातरण करा देते हैं.
दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहासकार चारू गुप्ता के मुताबिक 21वीं सदी के पहले दशक में `लव जिहाद` की चर्चा देशभर के हिंदू संगठनों में होने लगी. श्रीराम सेना के नेता प्रमोद मुथालिक ने इसे फैलाने में अहम भूमिका निभाई. साल 2009 में पहली बार केरल और कर्नाटक में बड़े पैमाने पर हिंदू लड़कियों के धर्म परिवर्तन के मामले सामने आए.
इतिहासकारों की मानें तो ऐसा कुछ नहीं है. 1920 के दशक की कई घटनाओं का ब्योरा इतिहासकारों ने लिखा है. चारू गुप्ता ने 2002 में एक रिसर्च कंपाइल की थी. उसके मुताबिक, 1927 में मुजफ्फरनगर की शांति तब भंग हुई जब पता चला कि एक हिंदू लड़की का जबरदस्ती धर्मांतरण कर मुस्लिम व्यक्ति से शादी करा दी गई. लोग जुटे और आरोपी के घर की ओर चल पड़े. बाद में पता चला कि, लड़की शुरू से मुस्लिम थी.
चारू गुप्ता का यह भी कहना था कि, हिंदू सुधारकों ने 20वीं सदी की शुरुआत में अपहरण के जो मामले उड़ाए, वे `लव जिहाद` से खासा मेल खाते हैं. जो लड़िकयां भागीं और धर्म परिवर्तन किया, उनमें से अधिकतर बेसहारा थी. 1927 में प्रतापगढ़ की एक हिंदू महिला ने मुसलमान संग भागकर शादी कर ली. बनारस में 1924 में एक महिला ने मुस्लिम शख्स के लिए अपने पति को छोड़ दिया था. अप्रैल 1927 में झांसी में एक मुस्लिम के वेश्या को रखने पर बवाल हो गया था जो मूल रूप से हिंदू थी मगर, बाद में इस्लाम धर्म कबूल कर लिया था.
इतिहासकार चारू गुप्ता का यह भी कहना है कि, उस दौर में उभरे अपहरण, प्रचार अभियान और आज के लव जिहाद के बीच मुझे कई समानताएं नजर आती हैं. वह कहती हैं कि, हर दुष्कर्म या जबरन धर्मान्तरण की छानबीन होनी चाहिए और अपराधियों को दंडित किया जाना चाहिए लेकिन, समस्या तब पैदा होती है जब हम अलग-अलग घटनाओं को एक ही चश्मे से देखने लगते हैं.
बहरहाल, वर्ष 2017 में, केरल उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में `लव जिहाद` के आधार पर एक मुस्लिम पुरुष से हिन्दू महिला के विवाह को अमान्य घोषित कर दिया था. तब मुस्लिम पति द्वारा भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक अपील दायर की गई थी, जहां अदालत ने `लव जिहाद` के पैटर्न की स्थापना के लिए सभी समान मामलों की जांच करने के लिए एनआईए को निर्देश दिया था.
यह अवधारणा पहली बार 2009 में केरल और कर्नाटक में व्यापक धर्मांतरण के दावों के साथ भारत में राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में आई लेकिन, बाद में पूरे देश से मामले सामने आने लगे. 2009, 2010, 2011 और 2014 में भारत में `लव जिहाद` के आरोपों पर विभिन्न हिन्दू, सिक्ख और ईसाई संगठनों ने चिंता जताई, जबकि मुस्लिम संगठनों ने आरोपों से इन्कार किया.
हमारा मकसद, ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देना नहीं है बल्कि इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए ऐसे तत्वों को प्रश्रय और सहायता देने वालों के खिलाफ कठोर कदम उठाने होंगे. ऐसे संस्थानों को मिलने वाला अनुदान बंद करना होगा. जनसंख्या नियंत्रण कानून सहित अन्य कठोर कानून बनाने होंगे.