(मोहम्मद सलीम सैफ़ी)
देहरादून: अप्रैल 2014 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने नाजायज़ तरीके और गलत मंशा से किये गए किसी भी स्टिंग को जायज नही ठहराया। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पी. सदाशिवम के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा था कि न्यायालय ने आरके आनंद के मामले में जनहित में स्टिंग ऑपरेशन को सही ठहराया था, लेकिन इसे हर मामले में जायज नहीं ठहराया जा सकता.न्यायालय ने कहा था , ”भले ही एक अपराधी को पकड़ने के लिए स्टिंग ऑपरेशन चलाया जाता हो, लेकिन इससे कुछ नैतिक सवाल खड़े होते हैं। पीड़ित, जो कि अन्यथा बेक़सूर होता है, को स्थितियों के बारे में पूरी गोपनीयता बरतने का वादा कर अपराध करने के लिए प्रेरित किया जाता है.”
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व केन्द्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव के ख़िलाफ़ स्टिंग ऑपरेशन करने वाले दो अभियुक्तों की याचिका को ख़ारिज करते हुए यह आदेश दिया था. उस स्टिंग ऑपरेशन में जूदेव को पैसे लेते हुए दिखाया गया था.अभियुक्तों ने अपनी याचिका में उनके ख़िलाफ़ मामले को बंद किए जाने का आग्रह किया था.जिन्हें राहत नही दी गईं हालांकि उनकी दलील थी कि इस स्टिंग ऑपरेशन के पीछे उनका मकसद भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ करना था
नोट के बदले वोट वाला स्टिंग सकारात्मक सोच से किया गया ऐतिहासिक स्टिंग साबित हुआ जिसे हरकिसी ने उचित ठहराया या यूं कहें मीडिया द्वारा किया गया सकारात्मक स्टिंग जनहित में प्रजातंत्र की मज़बूती के लिए सही साबित हो सकता है अगर उसे सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों की रोशनी में अस्तित्व में लाया गया हो।स्टिंग सही प्रथा है या गलत इसमें विरोधाभास इसलिए है कि ज़्यादातर न्यूज़ चैंनलों का अस्तित्व राजनीतिक व्यक्तियों के रहमोकरम पर ही निर्भर है जो अपने राजनीतिक स्वार्थो को पूरा करने के लिये नैतिक और अनैतिक का फर्क भूल जाते है,दूसरी ओर राजनेताओं और अधिकारियों की वो सोच जो पत्रकारों और छोटे चैंनलों को हीन दृष्टि से देखते है।
यानी चुनिंदा बड़े मीडिया ब्रांड्स के पत्रकारों को तरजीह देना ही राजनेताओं और अधिकारियों के लिए धातक साबित होता है जिसकी वजह से छोटे मीडिया ब्रांड्स से जुड़े पत्रकारों में हींन भावना पैदा हो जाती है वो अपना अस्तित्व और ताकत साबित करने के लिए गलत रास्ते को ही अपनी ताकत और कमाई का एक मात्र रास्ता बना लेते है,जिसकी ज़द में वो तमाम राजनेता और अधिकारी फंस जाते है जो लालची है या जिनके लिये कमाई के शॉर्टकट्स ही सर्वोपरि है,नैतिक और अनैतिक तो वक़्त व हालात पर निर्भर करता है,शे और मात के खेल में कौन,किस पर भारी पड़ा उसी पर सब कुछ तय होता है लेकिन गलत सिर्फ गलत ही होता है मंशा भले ही कुछ भी हो।
एक दूसरा पहलू
स्टिंग ऑपरेशन, यानी पत्रकारिता का वो मज़बूत माध्यम जिससे आप बड़ी से बड़ी हस्ती,राजनेता,ब्यूरोक्रेट्स , कारपोरेट जैसे क्षेत्रों में देश की दशा व दिशा बदलने वाले महारथियों के छिपे काले सच को उजागर होते देख व सुन पाते है जिसके बारे में शायद आप ऐसी कल्पना भी नही कर सकते,हमारे वो रहनुमा, उस पुरानी कहावत मुँह में राम बगल में छुरी को चरितार्थ करती है ओर ये वो छुरी होती है , जिससे न जाने कितनी बार मासूम सी दिखने वाली हस्तियों ने इस अस्त्र का इस्तेमाल कर देश के साथ खिलवाड़ किया है ,उसी कभी न दिखने वाले सच को, दिखाने की पत्रकारिता की मंशा कैसे ,विश्वास से विश्वासघात और कैसे सच्ची पत्रकारिता से ब्लैकमेलिंग का रूप ले लेती है पता नही।किसी सरकारी अधिकारी या राजनेता को गलत तरीके से प्रलोभन देकर स्टिंग के जाल में फांसना कतई सही नही है,किसी व्यक्ति का स्टिंग ऑपरेशन सिर्फ़
विश्वासघात के बूते ही सम्भव हो पाता है या यूं कहे कि जल्द से जल्द करोड़पति बनने की इच्छा रखने वाला महत्वाकांक्षी कथित पत्रकार अपनी इन्ही इच्छाओं को पूरा करने की खातिर किसी इंसान,अधिकारी या राजनेता के विश्वास को तार तार कर देता है क्योंकि स्वयं उसकी हैसियत अपने टारगेट से कमतर होती है लेकिन वो अपने को मिल रहे सम्मान को टारगेट की कमज़ोरी मान बैठता है और यही से शुरु होती है साजिशें। बात साफ़ है कि विश्वास का कत्ल करके ही स्टिंग्बाज़ अपने मक़सद में कामयाब होता है,अब सवाल ये उठता है आखिर स्टिंग होते ही क्यो है जबकि स्टिंग पत्रकारिता तो कतई नही है जिसकी इजाज़त न तो पत्रकारिता के बुनियादी तत्वों से मिलती है और न ही इनका मक़सद जनहित होता है।
“लालच और महत्वाकांक्षा” जैसे शॉर्टकट से ही करोड़पति बनने की मंशा की उत्पत्ति होती है जो नैतिक तो कतई नही है,अब सवाल ये उठता है कि आख़िर कथित स्टिनबाज़ों के हौसले बढ़ते क्यो है,इसके दो कारण प्रतीत होते है एक-भरोसा और दूसरा-लालच यानी लालच और भरोसे का कॉम्बो ही स्टिंग होता है, स्टिंग को अंजाम देने वाले के मन मे भी लालच होता है और उसके टारगेट के मन मे भी लालच,यानी जब दोनों पक्षो के मन मे लालच होगा तो स्टिंग सम्भव होगा,जिसे भरोसे के साथ अंजाम तक पहुँचाया जाता है।
इसके कई कारण मुझे प्रतीत होते है एक टीवी न्यूज चैंनलों की बढ़ती भीड़,उनकी संचालन लागत और कॉस्ट कटिंग जैसे तत्व,एक वक्त था जब न्यूज़ चैनल में किसी रिपोर्टर या स्ट्रिंगर के नियुक्ति के लिए बहुत ही कठिन प्रक्रिया होती थी जिसमे उसकी पारिवारिक प्रष्ठभूमि के साथ साथ शैक्षिक योग्यता, कठिन परिश्रम करने की क्षमता और पत्रकारिता के बुनियादी तत्वों कबप्रचुर मात्रा में समावेश होता था ,
इसी आधार पर न्यूज़ चैंनलों के संचालक अपने रिपोर्टर अथवा स्ट्रिंगर की ज़रूरतों का पूरा ध्यान रखते थे उन्हें मान-सम्मान के साथ साथ प्रति न्यूज़ कवरेज 5-6 हज़ार रुपये का पारिश्रमिक मिलता था गिनती के चैनल हुआ करते थे मगर वक़्त बदलता चला गया और न्यूज़ चैनलों की भरमार हो गई,पत्रकारिता को ताक पर रखा जाने लगा और शुद्ध पत्रकारों की जगह कथित पत्रकारों का जलवा दिखाई देने लगा हालॉकि 5-6 हज़ार प्रति न्यूज़ कवरेज की जगह मात्र 50 रुपये प्रति न्यूज़ कवरेज पारिश्रमिक होने के बावजूद कथित पत्रकारों की बाढ़ सी आ गईं और सच्चे व अच्छे ज़्यादातर पत्रकार चैनल मालिको द्वारा हाशिये पर कर दिए गए,कॉस्ट कटिंग के नाम पर छोटे -बड़े सभी चैनलों ने ऐसे व्यक्तियों को तरजीह दी
जिन्होंने चैनल मालिको और संपादकों को शॉर्टकट से मोटा मुनाफा दिलाने की बात कही,इसी लालच ने स्टिंग जैसी कुप्रथा को जन्म दिया,चैनलों ने बिना जांच-पड़ताल के जाहिलो से,अपराधिक सोच वाले चमचो से और ब्लैकमेलिंग जैसे घटिया मामलों में दक्ष लोगो को ब्यूरो और आईडी बेचना शुरू कर दिया,पारिश्रमिक देने की बजाय पैसा लेना शुरु कर दिया,कितना पैसा दोगे हर महीने जैसे शब्द चैनल मालिको के मुँह से स्पष्ट सुने जाने लगे,यही से शुरू हुआ सच्ची पत्रकारिता का पतन और स्टिनबाज़ों का जलवा,लेकिन ये सच है कि सच्ची पत्रकारिता ऐसे किसी स्टिंग या स्टिंग्बाज़ का समर्थन नही करती जो पत्रकारिता के मूल तत्वों का कत्ल करते हो अब ज़रूरत है छंटनी की और सच्चे चयन की जो पत्रकारिता की मान, मर्यादा और उसूलों का निर्वहन कर सके,विश्वास को विश्वास और अन्याय को अन्याय साबित करने में सच्चे मन का परिचायक हो,सोचना होगा उन चैनल मालिको को जिन्होंने सच्चे पत्रकारों से कहा महीने में कितना दोंगे और बेइज़्ज़त किया सच्चे पत्रकारों को,तरजीह दी ब्लैकमेलिंग सोच को और तिलांजली दे दी सच्चे जनहित को,पब्लिक का विश्वास खो गया और वो पूर्ण रूप से पत्रकारिता के पतन के ज़िम्मेदार बन गए।