आखिर कब रुकेगा महिलाओं पर अत्याचार ? पढ़ें पूरी खबर | Nation One

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ“, इस टैगलाइन को ध्यान से पढ़िए, यह वह टैगलाइन है जो 2014 में बीजेपी सरकार बनने के बाद मोदी सरकार ने दी थी. इसे अभियान की एक नई शुरुआत माना जाता था पर, पिछले 2 दिनों से बलरामपुर व हाथरस की दो घटनाओं ने सोचने पर मजबूर कर दिया।

ये वे घटनाएं हैं जिसने उस सिस्टम को बेनकाब कर दिया, जो सत्ता की हनक में पलते हैं। माफ कीजिए हुजूर यह प्रश्न किसी सरकार पर नहीं बल्कि सरकार चलाने वाले उस सिस्टम पर है, जिस की कार्यप्रणाली उन पर ही कई सवाल खड़े करती है। दावे तो बड़े बड़े किए जाते हैं पर दावों पर कितना अमल किया जाता है, यह किसी से छिपा नहीं है।

हर घटना के बाद सरकार और पुलिस प्रशासन यह कहकर अपना पल्लू झाड़ लेता है कि हम रेप के मामलों को फास्ट्रेक के जरिए जल्दी से जल्दी पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाएंगे. 3 दिसंबर 2019 को देश की प्रतिष्ठित वेबसाइट में रेप के मामलों पर एक आंकड़ा प्रस्तुत किया था, जो काफी चौंकाने वाला था। सवाल किसी जाति का बिल्कुल भी नहीं है, महिला पर हो रहे अत्याचारों पर है।

2012 में निर्भया कांड होने के बाद आरोपियों को सजा मिलने के बाद शायद ही जनता ने सोचा होगा कि रेप के मामले कम होंगे. लेकिन, हाथरस की घटना और बलरामपुर की घटना के बाद एक बार फिर से ये जिन्न बाहर निकल आया है. आखिर कब तक, सवाल यही है कि आरोपियों को सजा मिलने में क्या फिर से 10 साल 20 साल या 30 साल लगेंगे क्योंकि कहने के लिए फास्ट ट्रैक बना तो दिया गया है. निर्भया मामले में भी फास्ट ट्रेक था पर, सजा मिलने में कितना समय लग गया यह किसी से छुपा नहीं.

सवाल तो कई हैं लेकिन, जवाब सिर्फ एक ही है कि क्या सिस्टम से हार रही है महिलाएं, या कानून की लचर व्यवस्था से हार रही हैं. जवाब सिर्फ सिस्टम और सरकार के पास है.

 

नेशन वन से प्रमेश मनोड़ी की रिपोर्ट