![VIDEO: देवभूमि की इस महिला ने परम्पराओं को तोड़ा, ढोल बजा कर की महारथ हासिल…](https://nationone.tv/wp-content/uploads/2018/10/12_10_2018-ushadevinwtp_18525693.jpg)
VIDEO: देवभूमि की इस महिला ने परम्पराओं को तोड़ा, ढोल बजा कर की महारथ हासिल…
टिहरी: आज के दौर में अगर देखा जाए तो किसी भी क्षेत्र में महिला पुरूषों से पीछे नही है। आज की महिला हर एक काम में पुरूषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही है और देश का नाम रोशन कर रही है। और बात अगर उत्तराखंड की करें तो यहां की नारी शक्ति अब पहले की तरह बंदिशों में कैद नही रहना चाहती है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है उत्तराखंड के टिहरी जनपद के हटवाल गांव की रहने वाली उषा देवी ने। आपको बता दे कि उन्होनें सदियों से चली आ रही अपनी परंपरा को तोड़ा दिया है। ऊषा देवी को अपने क्षेत्र की पहली महिला ढोलवादक होने का गौरव प्राप्त है।
आपको बता दें कि टिहरी जिले के जौनपुर के हटवाल गांव की इस महिला ने सदियों से चली आ रही परंपरा को तोड़ दिया है। उषा देवी ने ढोलवादक में गौरव हासिल की है। और इतना ही नही उन्होने जागर में भी महारथ हासिल की है। आज से ठीक 10 साल पहले जब उषा देवी गांव की महिला मंडली के साथ भजन-कीर्तन के कार्यक्रमों में बढ़ चढ़कर भाग लिया करती थीं और इस कार्यक्रम में वह भजन गाने के साथ ढोलक भी बजाया करती थीं।
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इसके कुछ समय बाद उन्होंने तबले पर भी हाथ आजमाना शुरू दिया और कुछ ही दिनों में तबला वादन में भी पारंगत हो गईं थीं। वही एक दिन अचानक उनके मन में ख्याल आया कि जब वह तबला बजा सकती है तो ढोल क्यों नही बजा सकती है। फिर क्या था उषा को अपनी कला दिखाने का अवसर जो मिल गया था। वह अपने घर पर ही ढोल बजाने का प्रयास करने लग गई। हलांकि उनको इस राह पर चलने के लिए कई सारी दिक्कतों का भी सामना करना पड़ा होगा। लेकिन फिर भी उन्होने हार नही मानी। और अपने मार्ग पर चलती रही।आज वह ढोल के विभिन्न ताल बड़ी सहजता और अच्छा बजा लेती हैं।
https://www.youtube.com/watch?time_continue=6&v=VutPQOQKi3g
अब उषा देवी को हर बड़े मंच पर बुलाया जाता हैं जहाँ भी ढोल वादक की जरुरत होती है वर्तमान में उन्हें शादी-समारोह के साथ ही नवरात्र, हरियाली व विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजनों में भी ढोल वादन के लिए बुलाया जाता है। उत्तराखंड में अगर देखा जाए तो हमारी प्राचीन समय से चली आ रही ढोल दमाऊं की प्रथा अब धीरें- धारें अपनी पहचान खोती नजर आ रही है। हमारी यह प्रथा अब विलुप्त होती जा रही है। तो वही एक महिला हाने के नाते उषा देवी अपनी इस सभ्यता को बरकरार रखने का हरसंभव प्रयास कर रही है। और आज उषा देवी बड़े-बड़े मंचों पर ढोल को बजा रही है।