उत्तराखंड का दुर्भाग्य या बेबस सरकारें, पढ़े पूरी खबर | Nation One
देहरादून| उत्तराखंड राज्य का गठन हुए यू तो 20 साल हो गए है, लेकिन राज्य को अभी तक नारायण दत्त तिवारी के अलावा कोई भी ऐसा मुख्यमंत्री नहीं मिला जिसने 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा किया हो। इसको राज्य का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा राज्य में एक मुख्यमंत्री के अलावा किसी ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। आखिर एक छोटा सा राज्य होने के बावजूद भी राज्य आंदोनकारियों ने नए राज्य के लिए जो सपने देखे थे क्या वो इन नेताओ ने पूरा करने कि कोशिश की।
सूबे के लोगो के सपने तो दूर की बात है बीस वर्ष बाद भी राज्य को अभी तक इस्थाई राजधानी नहीं मिल पाई है। इसके पीछे वजह चाहे जो भी हो लेकिन प्रदेश में पक्ष हो या विपक्ष उनको राज्य आंदोलन के दौरान जिन लोगो ने अपनी जान गंवाई और शहीद हो गए उनकी आत्मा इन स्वार्थी नेताओ को कभी मुआफ नहीं करेगी।
उत्तराखड को बीस साल के बाद इस्थई राजधानी मिली हो या ना मिली हो लेकिन दो दो अस्थाई राजधानी ज़रूर मिली है। आपको बता दे कि गैरसैंण भराड़ीसैंण को इसी वर्ष राज्य कि ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया है, जिसको लेकर विपक्ष ने सरकार पर अनेक आरोप लगाए। लेकिन इस बात को कतई नहीं नकारा जा सकता कि राज्य में आज के समय में विपक्ष नाम की कोई जगह बचा ही नहीं है।
नेता चाहे किसी भी पार्टी का हो सब अपना अपना विकास करने में लगे है और जनता और प्रदेश का विकास भगवान भरोसे ही है। लेकिन आज की राजनीति में जो हो रहा है वो किसी भी देश के लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है जनता की गाढ़ी कमाई के पैसों से आज लोकतंत्र कि बोली लगना आम बात हो गया है।
जनता अपने प्रतिनिधि को इसलिए चुनती हैं ताकिउनके चेत्र का विकास हो सके लेकिन जनता राह तकती रह जाती है। लेकिन विकास नाम का ये प्राणी पूरे पांच साल चेट्रा में नहीं दिखता है अब जनता इनको समझे तो समझे कैसे।
जो भी है उत्तराखंड में आने वाले विधानसभा चुनाव में लोग देश की दो बड़ी पार्टियों से इतने आजिज अा चुके है कि नए विकल्प को प्रदेश में तलाशने का मनं भी बना सकते है। अब देखना ये होगा कि क्या आने वाले विधानसभा चुनाव में किसी को पूर्ण बहुमत मिलेगा या फिर ड्रामे वाली सरकार राज्य को मिलेगी जो भी हो भूला तो नेताजी का इंतज़ार करे है कब आवे और कुछ हो जावे।
देहरादून से आदिल पाशा की रिपोर्ट