पेंशन नहीं मिली तो सीएम को कीजिए ट्विट
देहरादून। अल्मोड़ा के चौखुटिया की रहने वाली अंबुली देवी को छह महीने से समाज कल्याण विभाग से विधवा पेंशन नहीं मिली थी। नम्रता कांडपाल ने सीएम को ट्विट किया कि अंबुली देवी को पेंशन नहीं मिल रही है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने तुरंत ध्यान देते हुए इस शिकायत को अल्मोड़ा की जिलाधिकारी को फॉरवर्ड करके कार्यवाही के आदेश दिए।
अल्मोड़ा की जिलाधिकारी ईवा आशीष श्रीवास्तव ने शिकायतकर्ता से पूरा विवरण मांगा और दूसरे दिन अंबुली देवी को पेंशन का चेक जारी कर दिया गया। जिलाधिकारी ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और शिकायतकर्ता को ट्विटर पर टैग करते हुए पेंशन चेक की फोटो और विधवा पेंशन की धनराशि जारी किये जाने का आदेश पोस्ट किए।
मुख्यमंत्री ने सभी जिलाधिकारियों से सोशल मीडिया पर सक्रिय रहकर इसी प्रकार जनता की समस्याओं के त्वरित निस्तारण की अपेक्षा की है। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि जिन जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षकों ने सोशल मीडिया का उपयोग शुरू नही किया गया है वे तत्काल इसका उपयोग जन समस्याओं के निस्तारण और महत्वपूर्ण सूचनाओं के प्रसार के लिए करें।
सवाल उठता है कि क्या जनता को पेंशन जैसी समस्याओं के लिए सोशल मीडिया पर शिकायत करनी पड़ेगी। यह तो अल्मोड़ा की अंबुली देवी का मामला है, जिनके लिए नम्रता कांडपाल ने मुख्यमंत्री को टि्वट कर दिया। क्या अंबुली देवी को छह माह से पेंशन नहीं मिलने के पीछे विभागीय लापरवाही सामने नहीं आती।
शिकायत करने पर ही उनको जिलाधिकारी ने दूसरे दिन चेक उपलब्ध करा दिया। क्या इस बात की पड़ताल नहीं होनी चाहिए कि अंबुली देवी को छह माह से विधवा पेंशन जारी नहीं होने के पीछे कौन अधिकारी और कर्मचारी जिम्मेदार हैं। जिलाधिकारी ने सीएम के आदेश पर कार्यवाही करा दी, लेकिन क्या जिलाधिकारी कार्यालय यह भी देखेगा कि ऐसी कितनी महिलाएं हैं, जिनको छह माह से पेंशन नहीं मिली।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ट्विटर पर शिकायतों को तुरंत संज्ञान ले रहे हैं, लेकिन क्या उनको हर समस्या के निस्तारण के लिए ट्विट करना पड़ेगा। क्या जिलों में तैनात अधिकारियों की ड्यूटी जनसमस्याओं को दूर करना नहीं है। क्या हर समस्या से प्रदेश के मुखिया के पास ही फरियाद करने के लिए आना होगा।
अगर मुख्यमंत्री के पास ही सभी शिकायतें आ रही हैं, तो इसका मतलब है कि पूरे प्रदेश में सिस्टम ठीक ढंग से काम नहीं कर रहा है और अधिकारी जनता की बात नहीं सुन रहे हैं। अगर अफसर जनता की सुन रहे होते तो पेंशन का मामला समाज कल्याण अधिकारी या जिलाधिकारी के दफ्तर से ही निस्तारित हो जाना चाहिए था।