तीन तलाक अंसैवधानिकः सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक की वर्षों पुरानी परंपरा को असंवैधानिक करार दिया है। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीन तलाक असंवैधानिक है, केंद्र सरकार को इसको लेकर छह महीने के अंदर कानून बनाना चाहिए।
फरवरी 2016 में सायरा बानो ने तीन तलाक को बंद करने के लिए याचिका दायर की थी। 18 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने उनके हक में फैसला सुनाया। पांच जजों की पीठ में से तीन जजों ने तीन तलाक को प्रतिबंधित करने का फैसला दिया। जजों ने कहा तीन तलाक शून्य, असंवैधानिक और गैरकानूनी है।
बेंच में शामिल दो जजों ने तीन तलाक पर छह महीने की रोक लगाने के आदेश दिए। जजों ने कहा- सरकार इस पर संसद में कानून बनाए। इस मामले पर तीन तलाक की पीड़ित महिलाओं के साथ ही कुछ संगठनों ने भी कोर्ट में याचिकाएं दायर की थीं। जिनके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।
इनमें एक याचिकाकर्ता सायरा उत्तराखंड के काशीपुर तथा इशरत जहां पश्चिम बंगाल के हावड़ा की रहने वाली हैं।जाकिया सोमन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की संस्थापक हैं। उनके संगठन ने लगभग 50 हज़ार मुस्लिम महिलाओं के हस्ताक्षर वाला ज्ञापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा था।
ज्ञापन में तीन तलाक को ग़ैर क़ानूनी बनाने की मांग की गई थी। इस ज्ञापन पर मुस्लिम समाज के कई पुरुषों के हस्ताक्षर भी थे। यह संस्था 11 साल से मुस्लिम महिलाओं के बीच काम कर रही है। इस संस्था ने देश के 10 राज्यों में मुस्लिम महिलाओं के बीच सर्वे किया था।
सर्वे करीब 4700 महिलाओं पर किया गया था। 2012 में संस्था ने दिल्ली में पहली पब्लिक मीटिंग की, जिसमें देशभर से करीब 100 महिलाएं ऐसी आईं जो तीन तलाक से पीडि़त थीं। इन तीनों महिलाओं के साथ ही आफरीन और अन्य कई महिलाओं ने भी कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ याचिका दायर की थीं।