सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का फैसला बैंकों और देश हित में नहीं | Nation One
सरकार ने दो सरकारी बैंकों के निजीकरण की तैयारी कर ली है। संसद के इसी सत्र में बैंकिंग संसोधन बिल 2021 प्रस्तावित है। पिछले बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि सरकार दो सरकारी बैंकों, एक बीमा कंपनी और कुछ अन्य वित्तीय संस्थानों में विनिवेश के जरिए 1.5 लाख करोड़ रुपये जुटाना चाहती है।
देश में फिलहाल 12 सरकारी, 14 ओल्ड जनरेशन बैंक, 8 न्यू जनरेशन बैंक , 11 छोटे वित्तीय बैंक और 43 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक हैं । इनकी 1 लाख 42 हजार शाखाएं हैं, जिनमें 46 विदेशी बैंकों की शाखाएं भी शामिल हैं। 19 जुलाई 1969 को देश के 14 प्रमुख बैंकों का पहली बार राष्ट्रीयकरण किया गया था और बाद में 6 और बैंक नेशनलाइज हुए। लेकिन 50 साल बाद सरकार यूटर्न लेती हुई दिख रही है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का देश की अर्थवयवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है । बैंकों को जन जन, शहर शहर और गाँव गाँव तक पहुँचाने में इन बैंकों की बड़ा योगदान रहा है । समर समय पर निजी बैंक डूबते रहे हैं जिनको इन्हीं सरकारी बैंकों ने संभाला है।
सरकारी योजनाओं पर असर : सरकार की सभी योजनाओं (जनधन योजना, अटल पेंशन, प्रधानमंत्री कृषि, स्वास्थ्य, बीमा, आदि योजनाओं ) को ज्यादातर सरकारी बैंकों द्वारा ही जनता तक पहुँचाया जाता है। निजी क्षेत्र के बैंकों का इसमें हिस्सा न के बराबर है ।
ग्राहकों पर असर : सरकारी क्षेत्र के बैंक जहाँ सोशल बैंकिंग करते हैं वहीँ निजी क्षेत्र के बैंक क्लास बैंकिंग करते हैं। सरकारी बैंकों के मुकाबले प्राइवेट बैंकों ब्याज दरों के मामले में उनका रवैया एक समान नहीं रहता । प्राइवेट बैंकों के अपने हिडेन चार्जेज भी होते हैं।
कर्मचारियों पर असर : बैंकों के कर्मचारी सब से ज्यादा प्रभावित होंगे। कर्मचारियों की छटनी होगी , नई भर्ती परमानेंट न होकर कॉन्ट्रैक्ट पर होगी, कर्मचारियों को मिलने वाली आरक्षण की सुविधा भी समाप्त हो जाएगी । नये रोजगार के अवसर समाप्त होंगे। हायर एंड फायर का राज होगा।
सरकार को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजी हाथों में सोंपने से अच्छा रहेगा कि इन बैंकों को और मजबूती प्रदान करे और यदि बदलते समय के अनुसार निजीकरण के अतिरिक्त कुछ बदलाव की आवश्यकता है तो सभी स्टेक होल्डर के साथ बात करके निर्णय लिया जाये।
( अश्वनी राणा )
फाउंडर
वॉयस ऑफ बैंकिंग