सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर आज सुना सकता है फैसला…

सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को अयोध्या के राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद मामले में फैसला सुना सकता है कि इस मामले संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं।

शीर्ष कोर्ट इस्माइल फारूकी जजमेंट पर फैसला ले सकता है…

जानकारी के अनुसार उम्मीद है शीर्ष कोर्ट इस्माइल फारूकी जजमेंट पर फैसला ले सकता है कि इस मामले को बड़े संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाएगा या नहीं। इसमें फैसला दिया गया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

मुसलमान यहां नमाज अता कर सकते है या नहीं…

रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट अपना फैसला गुरुवार को दिन के 2 बजे तक सुना सकता है। शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई करेगी जिसमें अपील की गई है कि केस को बड़े संवैधानिक बैंच के पास ट्रांसफर किया जाए । सुप्रीम कोर्ट इस मामले में यह भी जांच करेगा कि मुसलमान यहां नमाज अता कर सकते है या नहीं।

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1994 का फैसला उनके लिए न्यायपूर्ण नहीं…

अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद मामले में 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद की विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। हाई कोर्ट ने इस जमीन को राम लला, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा के बीच बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था। हालांकि, अब मस्लिम पक्षों का तर्क है कि 1994 का फैसला उनके लिए न्यायपूर्ण नहीं था। 2010 के फैसले के लिए महत्वपूर्ण आधार बनाया गया था। उस फैसले में जमीन का बड़ा हिस्सा हिंदुओं को आवंटित किया गया था।

1992 में, 16 वीं शताब्दी में निर्मित बाबरी मस्जिद को लाखों कारसेवकों ने…

20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के तीन जज चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और अब्दुल नजीर की पीठ ने इस मामले पर अपने फैसले को सुरक्षित रखा था। वर्ष 1992 में, 16 वीं शताब्दी में निर्मित बाबरी मस्जिद को लाखों कारसेवकों ने ध्वस्त कर दिया था। कारसेवकों का दावा था कि हमने मस्जिद को धराशायी कर दिया ताकि इस स्थान पर भगवान राम को समर्पित एक मंदिर बनाया जाए। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था।

क्या था इस्माइल फारूकी केस…

  • अयोध्या में कारसेवकों ने 6 दिसंबर, 1992 में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया था। इसके बाद केंद्र सरकार ने 7 जनवरी, 1993 को अध्यादेश लाकर अयोध्या में 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया था। इसके तहत विवादित जमीन का 120×80 फिट हिस्सा भी अधिग्रहित कर लिया गया था जिसे बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि परिसर कहा जाता है।
  • केंद्र सरकार के इसी फैसले को इस्माइल फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपनी याचिका में कहा था कि धार्मिक स्थल का सरकार कैसे अधिग्रहण कर सकती है। इस पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।
  • सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर मुस्लिम समुदाय सहमत नहीं है। वे चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर दोबारा विचार करे। मुस्लिम समुदाय यह भी चाहता है कि अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक से जुड़े केस में फैसले से पहले 1994 के इस्माइल फारूकी मामले पर आए फैसले पर नए सिरे से विचार हो।
  • बता दें कि इस साल 7 जुलाई को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच अयोध्या में विवादित जमीन के मालिकाना हक से जुड़े मामले की जब सुनवाई कर रही थी तो मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा है या नहीं है, इस मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की मांग की थी। उनकी दलील थी मुस्लिम समुदाय की दलीलों को ध्यान से सुना और परखा जाए।
  • सुनवाई के दौरान राजीव धवन ने कहा था कि इस्लाम सामूहिकता का मजहब है। वैसे तो नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है, लेकिन जब शुक्रवार को सामूहिक नमाज होती है तो मस्जिद में उसे पढ़ा जाता है। उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया में इस्लाम की शुरुआत से ही यह परंपरा है।
  • मुस्लिम पक्षकार मोहम्मद खालिद कहते हैं कि इस संबंध में हमने कुरान की 24 आयतें सुप्रीम कोर्ट को सौंपी हैं, जिनसे यह साबित होता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का मुख्य अंग है।
  • वहीं, हिंदू पक्षकारों का कहना है कि यदि इस मामले की सुनवाई दोबारा शुरू होती है तो इसका असर टाइटिल सूट से जुड़े मुख्य मामले की सुनवाई पर पड़ सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट यदि इस मामले को संविधान की बड़ी बेंच के पास भेज देता है तो मुख्य मामले की सुनवाई लंबे समय तक अटक सकती है।