प्रदेश में चाय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार अब चाय की खेती का दायरा दोगुना करने जा रही है। इसके लिए विश्व बैंक व नाबार्ड का सहयोग लेकर एक हजार हेक्टेयर से अधिक नए क्षेत्र में चाय उत्पादन किया जाएगा। इससे न केवल किसानों की आर्थिकी को मजबूत करना है बल्कि इससे रोजगार के अवसर पैदा कर पलायन पर भी अंकुश लग सकेगा। नाबार्ड व विश्व बैंक की ओर से इसके लिए 98 करोड़ रुपये की योजनाओं को सैद्धांतिक सहमति भी मिल चुकी है।
एक जमाने में चाय की खेती के लिए उत्तराखंड मशहूर था। देहरादून के चाय बागानों की चाय विदेशों तक सप्लाई होती थी। समय के साथ साथ चाय की खेती से लोग दूर होने लगे। मौजूदा समय में यह दायरा सिमट कर केवल 1140 हेक्टेयर रह गया है। प्रदेश में अभी चाय की केवल चार सरकारी व एक निजी फैक्ट्री संचालित हो रही है। अभी प्रदेश में तकरीबन 70 हजार किलो चाय का उत्पाद हो रहा है। इसमें चार हजार लोग रोजगार पा रहे हैं।
अब लंबे समय बाद सरकार की नजरें भी इस क्षेत्र में पड़ी हैं। सरकार अब चाय बागानों को पुनर्जीवित करने की तैयारी कर रही है। दरअसल, चाय की फसल के लिए ढलानदार जमीन चाहिए। इसके लिए उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड की ओर से प्रदेश के कई क्षेत्रों का सर्वे कराया गया।
चाय की खेती से होते हैं ये फायदे
चाय नगद फसल है, इसके लिए बाजार भी उपलब्ध है। एक बार चाय उगाने के बाद कई वर्षों तक इसकी फसल तोड़ी जा सकती है। दैवीय आपदा से भी इसे बहुत कम नुकसान होता है। चाय बागानों से होता है जल संरक्षण। ग्रीन कवर बढ़ाने में भी करता है सहायता।