रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद से आबरू बचाने को ली जल समाधि, जानें रानी कमलापति की गौरव गाथा| Nation One
देश का पहला वर्ल्ड क्लास रेलवे स्टेशन हबीबगंज अब रानी कमलापति के नाम से भी जाना जाएगा। पीएम मोदी आज इसका लोकार्पण करेंगे। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर रानी कमलापति कौन थीं और इतिहास में उनका क्या स्थान दर्ज है।
इतिहास के पन्नों में देखें तो 1600 से सन् 1715 तक गिन्नौरगढ़ किले पर गोंड राजाओं का आधिपत्य रहा और भोपाल पर भी उन्हीं का शासन था। गोंड राजा निज़ाम शाह की सात पत्नियां थीं, जिनमें कमलापति सबसे सुंदर थीं। रानी कमलापति भोपाल की अंतिम गोंड आदिवासी और हिंदू रानी थीं और अपनी इज्जत की रक्षा के लिए जल समाधि ले ली थी। आइए आपको बताते हैं कि कौन थीं रानी कमलापति…
16वीं सदी में सलकनपुर जिला सीहोर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया थे। उनके शासन काल में वहां की प्रजा बहुत खुश और संपन्न थी। उनके यहां एक खूबसूरत कन्या का जन्म हुआ। वह बचपन से ही कमल की तरह बहुत सुंदर थी। उसकी सुंदरता को देखते हुए उसका नाम कमलापति रखा गया। वह बचपन से ही बहुत बुद्धिमान और साहसी थी। इसके साथ ही शिक्षा, घुड़सवारी, मल्लयुद्ध, तीर-कमान चलाने में उसे महारत हासिल थी। वह अनेक कलाओं में पारंगत होकर कुशल प्रशिक्षण प्राप्त कर सेनापति बनी।
वह अपने पिता के सैन्य बल के साथ और अपने महिला साथी दल के साथ युद्धों में शत्रुओं से लोहा लेती थी। पड़ोसी राज्य अकसर खेत, खलिहान, धन-सम्पत्ति लूटने के लिए आक्रमण किया करते थे और सलकनपुर राज्य की देख-रेख करने की पूरी जिम्मेदारी राजा कृपाल सिंह सरौतिया और उनकी बेटी राजकुमारी कमलापति की थी, जो आक्रमणकारियों से लोहा लेकर अपने राज्य की रक्षा करती रही।
राजकुमारी धीरे-धीरे बड़ी होने लगी और उसकी खूबसूरती की चर्चा चारों दिशाओं में होने लगी। इसी सलकनपुर राज्य में बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह जो राजा कृपाल सिंह सरौतिया का भांजा लगता था, वह राजकुमारी कमलापति से विवाह करने की इच्छा रखता था। लेकिन उस छोटे से गांव के जमींदार से राजकुमारी कमलापति ने शादी करने से मना कर दिया। 16वीं सदी में भोपाल से 55 किलोमीटर दूर 750 गांवों को मिलाकर गिन्नौरगढ़ राज्य बनाया गया, जो देहलावाड़ी के पास आता है। इसके राजा सुराज सिंह शाह थे। इनके पुत्र निजामशाह थे, जो बहुत बहादुर, निडर तथा हर कार्य-क्षेत्र में निपुण थे। उन्हीं से रानी कमलापति का विवाह हुआ। उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई, जिसका नाम नवल शाह था।
बाड़ी किले के जमींदार का लड़का चैन सिंह राजा निजामशाह का भतीजा था। वह राजकुमारी कमलापति की शादी होने के बावजूद भी अभी उससे विवाह करने की इच्छा रखता था। उसने अनेक बार राजा निजामशाह को मारने की कोशिश की, जिसमें वह असफल रहा। एक दिन प्रेम पूर्वक उसने राजा निजामशाह को भोजन पर आमंत्रित किया और भोजन में जहर देकर उनकी धोखे से हत्या कर दी।
राजा निजामशाह की मौत की खबर से पूरे गिन्नौरगढ़ में खलबली हो गई। चैनसिंह ने रानी कमलापति को अकेले जानकर उन्हें पाने की नीयत से गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया। रानी कमलापति ने उस समय अपने कुछ वफादारों और 12 वर्षीय बेटे नवलशाह के साथ भोपाल में बने इस महल में छुप जाने का निर्णय लिया, जो उस समय सुरक्षा की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण था।
कुछ दिन भोपाल में समय बिताने के बाद रानी कमलापति को पता चला कि भोपाल की सीमा के पास कुछ अफगानी आकर रूके हुए हैं, जिन्होंने जगदीशपुर (इस्लाम नगर) पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में ले लिया था। इन अफगानों का सरदार दोस्त मोहम्मद खान था, जो पैसा लेकर किसी की तरफ से भी युद्ध लड़ता था। लोक मान्यता है कि रानी कमलापति ने दोस्त मोहम्मद को एक लाख मुहरें देकर चैनसिंह पर हमला करने को कहा।
दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर हमला कर दिया जिसमें चैनसिंह मारा गया और किले को हड़प लिया गया। रानी कमलापति को अपने छोटे बेटे की परवरिश की चिंता थी इसीलिए उन्होंने दोस्त मोहम्मद के इस कदम पर कोई आपत्ति नहीं जताई। दोस्त मोहम्मद अब सम्पूर्ण भोपाल की रियासत पर कब्जा करना चाहता था। उसने रानी कमलापति को अपने धर्म में शामिल होने और शादी करने का प्रस्ताव रखा। वह वास्तव में रानी को अपने धर्म में रखना चाहता था।
दोस्त मोहम्मद खान के इस नापाक इरादे को देखते हुए रानी कमलापति का 14 वर्षीय बेटा नवल शाह अपने 100 लड़ाकों के साथ लाल घाटी में युद्ध करने चला गया। इस घमासान युद्ध में दोस्त मोहम्मद खान ने नवल शाह को मार दिया। इस स्थान पर इतना खून बहा कि यहां की जमीन लाल हो गई और इसी कारण इसे लाल घाटी कहा जाने लगा।
रानी कमलापति ने विषम परिस्थति को देखते हुए अपनी इज्जत को बचाने के लिए बड़े तालाब बांध का संकरा रास्ता खुलवाया जिससे बड़े तालाब का पानी रिसकर दूसरी तरफ आने लगा। इसे आज छोटा तालाब के रूप में जाना जाता हैं। इसमें रानी कमलापति ने महल की समस्त धन-दौलत, जेवरात, आभूषण डालकर स्वयं जल-समाधि ले ली।
दोस्त मोहम्मद खान जब तक अपनी सेना को साथ लेकर लाल घाटी से इस किले तक पहुंचा उतनी देर में सब कुछ खत्म हो गया था। दोस्त मोहम्मद खान को न रानी कमलापति मिली और न ही धन-दौलत। जीते जी उन्होंने भोपाल पर परधर्मी को नहीं बैठने दिया। स्रोतों के अनुसार रानी कमलापति ने सन् 1723 में अपनी जीवन-लीला खत्म की थी। उनकी मृत्यु के बाद दोस्त मोहम्मद खान के साथ ही नवाबों का दौर शुरू हुआ और भोपाल में नवाबों का राज्य हुआ।