देहरादून: आज नवरात्र का सातवां दिन देवी कालरात्रि का दिन है। आज के दिन नौ देवियों में से सातवीं शक्ति मां काली कालरात्रि की पूजा की जाती है। अतः मां दुर्गा के इस सातवीं शक्ति या स्वरूप को कालरात्रि कहा जाता है, शक्ति रूपी मां काली का स्वरूप देखने में अत्यंत विकराल और भयानक सा नजर आता है। क्योंकि इनका स्वरूप काली रात के समान अंधकार की भांति काला है, इनके केश काली नागिन की तरह बिखरे हुए हैं और गले में बिजली की चमक वाली माला है, इनके त्रीनेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल व गोल हैं, जिनका तेज प्रकाश की भांति तेज है। इनकी नासिका से श्वास तथा निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। मां ने यह भयंकर स्वरूप राक्षसों के नाश के लिए ही धारण किया था।
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कालरात्रि की कहानी…
एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये।
बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत संपूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र की कामना वाले को पुत्र, धन की लालसा वाले को धन, विद्या की चाहना वाले को विद्या और सुख की इच्छा वाले को सुख मिलता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है। मनुष्य की संपूर्ण विपत्तियां दूर हो जाती हैं और घर में समृद्धि की वृद्धि होती है, बन्ध्या को पुत्र प्राप्त होता है।
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“एक वेधी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकणी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपदोल्लसल्लोहलताकण्टक भूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।”