
नहीं जुटा पा रहे इलाज के लिए पैसे…पिछले पांच सालों से जिंदगी की जंग लड़ रहा है उत्तराखंड का ये फौजी…
चमोली : सेना का एक जवान पिछले पांच सालों से ज़िन्दगी और मौत की जंग लड़ रहा है। बीमारी के चलते सेना ने जवान को रिटायर कर दिया लेकिन ताज्जुब की बात ये है कि रिटायर के आठ माह बाद भी सैनिक को पेंशन नहीं मिल रहा है और न ही उपचार का खर्चा मिल रहा है।
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जवान दलबीर सिंह नेगी पांच साल से बिस्तर पर…
उत्तराखंड में कोट गांव निवासी और सेकंड गढ़वाल राइफल का जवान दलबीर सिंह नेगी पांच साल से बिस्तर पर जिंदगी की जंग लड़ रहा है। सैनिक की पत्नी इंद्रा देवी ने बताया कि एक मार्च 2013 को रिश्तेदारी से वापस आते हुए कंडारीखोड़ के पास पहाड़ी से पत्थर आने से दलबीर सिंह नेगी (40) पुत्र खड़क सिंह बेहोश हो गए उन्हें एमएच अस्पताल रानीखेत ले जाया गया।
महज तीन दिनों में छह लाख का खर्चा…
डॉक्टर ने दलबीर को कोमा में होने की बात कह बृजलाल अस्पताल हल्द्वानी रेफर कर दिया। महज तीन दिनों में छह लाख का खर्चा होने पर सैनिक को सेना के आरआर अस्पताल दिल्ली ले जाया गया, लेकिन हालात में सुधार नहीं होने पर जून 2013 में सैनिक को एमएच रानीखेत शिफ्ट कर दिया गया।
दलबीर की देखभाल के लिए कोई भी नहीं…
उन्होंने बताया कि जनवरी 2018 में सेना की ओर से दलबीर को रिटायर कर दिया गया और साथ में दिया तीमारदार भी हटा दिया गया। 13 सितंबर 2018 को सैनिक को हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया। इंद्रा देवी का कहना है कि वह कंडारीखोड़ प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका है। एकल शिक्षिका होने के चलते अवकाश भी नहीं मिल रहा है। साथ ही दो बच्चों की जिम्मेदारी भी है। हल्द्वानी में दलबीर की देखभाल के लिए भी कोई नहीं है।
25 से 30 हजार प्रतिदिन उपचार और तीमारदार का खर्चा…
अस्पताल में 25 से 30 हजार प्रतिदिन उपचार और तीमारदार का खर्चा है। उन्होंने कहा कि दलबीर को सेना ने रिटायर तो कर दिया, लेकिन 8 माह बाद भी पेंशन नहीं मिल पाई है। ऐसे में दलबीर की देखभाल में दिक्कतें आ रही हैं। जवान का सेवानिवृत्ति के बाद ईसीएच कार्ड बना दिया गया है, जिसका नंबर अस्पताल को उपलब्ध करा दिया गया है। निर्धारित प्रावधानों के अनुसार ही अस्पताल का भुगतान होगा।
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सेवानिवृत्त होने के बाद परिजनों को स्वयं दलबीर का…
सैनिक के पेंशन संबंधी कागजात रिकार्ड आफिस में होते हैं। यदि कोई परिजन लेने आएगा तो उन्हें उपलब्ध करा दिए जाएंगे। सेवानिवृत्त होने के बाद परिजनों को स्वयं दलबीर का तीमारदार रखने की व्यवस्था करनी पड़ेगी।