बच्चों में पढ़ने और सीखने की क्षमता के लिए अपनाएं ये उपाय
आज के दौर में माता-पिता शुरू से ही बच्चों को प्ले स्कूलों या निजी विद्यालय भेज देते हैं। शुरूआती दौर में बच्चों को पढ़ना या लिखना कुछ भी नहीं आता, यहां तक कि उनके लिए वहां बैठना भी मुश्किल लगता है। इस आयु में बच्चे सुनकर या देखकर चीजों को सीखते हैं। ऐसे में जरूरी होता है कि उन्हें बोलकर या फिर चित्रों के माध्यम से पढ़ाया या सिखाया जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि पढ़ने से वाकई बच्चों पर गहरा असर होता है। एक अंग्रेजी रिपोर्ट के मुताबिक ‘बच्चों का ज्ञान बढ़ाने में कामयाबी के लिए सबसे ज़रूरी है, बच्चों को ज़ोर से पढ़कर सुनाना।
यह खासकर स्कूल जाने के पहले के वर्षों में किया जाना चाहिए। जब हम बच्चों को कहानियाँ पढ़कर सुनाते हैं तो वे छोटी उम्र में ही सीख जाते हैं कि किताबों में जो शब्द इस्तेमाल किए जाते हैं, उन्हें हम बातचीत में भी इस्तेमाल करते हैं। साथ ही वे किताबों की भाषा से भी वाकिफ होते हैं। ज़ोर से पढ़ने के बारे में छपी एक पुस्तिका कहती है कि हर बार जब हम बच्चे को पढ़कर सुनाते हैं तो हम उनके दिमाग में यह बिठा रहे होते हैं कि पढ़ना ‘मज़ेदार’ है। ज़ोर से पढ़कर सुनाना, विज्ञापन की तरह काम करता है, इससे बच्चे का दिमाग ऐसे ढल जाता है कि किताबें और छपी हुई जानकारी को पढ़ना उसे मज़ेदार लगता है।” अगर माता-पिता अपने बच्चों में किताब पढ़ने की ललक पैदा करें, तो बच्चे किताबों के शौकीन हो सकते हैं।
उन्हें आस-पास या दुनिया की चीजों के बारे में जानकारी देना ,बच्चे के शुरुआती शिक्षक माता-पिता होते हैं। जो माता-पिता ज़ोर से पढ़कर सुनाते हैं, वे अपने बच्चों को एक कीमती तोहफा दे सकते हैं और वह है, लोगों, जगहों और बहुत-सी चीज़ों का ज्ञान। ज़्यादा खर्च न करते हुए किताब के पन्नों के ज़रिए वे पूरी दुनिया “घूम” सकते हैं। उदाहरण के लिए, दो साल के एन्थनी की बात लीजिए। उसकी माँ उसके पैदा होने के बाद से ही उसे पढ़कर सुनाती थी। वह कहती है कि पहली बार चिड़िया-घर की सैर करना, उसका दूसरा सफर था।” यह उसका दूसरा सफर कैसे हो सकता है? हालाँकि चिड़िया-घर में वह पहली दफा हकीकत में ज़िंदा जेब्रा, शेर, जिराफ और दूसरे जानवरों को देख रहा था, मगर एक तरह से वह इन जानवरों से पहले ही मिल चुका था क्योंकि वह इनके बारे में जानता था। उसकी माँ आगे कहती है कि एन्थनी अपनी ज़िंदगी के शुरूआती दो साल में अनगिनत लोगों से मिला, कई जानवरों को जाना, साथ ही बहुत-सी चीज़ों और बातों के बारे में भी सीखा। और यह सब कुछ उसने किताबों के ज़रिए किया। छोटी उम्र के बच्चों को ज़ोर से पढ़कर सुनाने या चित्रों के जरिए से समझाने से उनमें दुनिया की समझ काफी हद तक बढ़ सकती है।
बच्चों को सुनाने सोच-समझकर किताबें चुनिए
अच्छी किताबें चुनना, शायद सबसे ज़रूरी बात हो सकती है। इसके लिए आपको थोड़ी मेहनत करनी होगी। ध्यान से किताबों की जाँच कीजिए और सिर्फ वही किताबें लीजिए जिनमें सही या फायदेमंद बातें लिखी हों और जिन कहानियों से हम अच्छे सबक सीख सकते हैं। उसकी जिल्द, तसवीरों और लेखन शैली पर गौर कीजिए। ऐसी किताबें चुनिए जो माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए दिलचस्प हों। अकसर बच्चे बार-बार एक ही कहानी को पढ़कर सुनाने के लिए कहते हैं। दुनिया भर के माता-पिताओं ने खासकर बाइबल कहानियों की मेरी पुस्तक को बहुत पसंद किया है। यह किताब इसी मकसद से तैयार की गयी है कि माता-पिता अपने छोटे बच्चों के लिए इससे पढ़कर सुनाएँ। इससे बच्चे सिर्फ अच्छा पढ़ना ही नहीं सीखते बल्कि बाइबल में उनकी दिलचस्पी भी बढ़ती है। जो माता-पिता अपने बच्चों को पढ़कर सुनाते हैं, वे उनमें पढ़ने की अच्छी आदत डालते हैं और इससे उन्हें पूरी ज़िंदगी अच्छे नतीजे मिल सकते हैं।