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कोवैक्सीन 81 फीसदी असरदार, जानिए कोविशिल्ड के मुकाबले ये बेहतर कैसे | Nation One
लखनऊ : देश में कोरोना महामारी से लड़ने के लिए वैक्सीनेशन का दूसरा फेज शुरू हो चुका है। ऐसे में अब भारत बायोटेक ने बुधवार शाम कोवैक्सीन के फेज-3 क्लिनिकल के अंतिम नतीजे जारी कर दिए हैं। वहीं इस वैक्सीन को 81 प्रतिशत असरदार बताया जा रहा है। देश के पीएम नरेंद्र मोदी ने भी 1 मार्च को इसी कोवैक्सीन का शॉट लिया था।
जानकारी के मुताबिक कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने ब्रिटिश दवा कंपनी एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर तैयार किया है। भारत में पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया इसकी पार्टनर है। भारत में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन कोविशिल्ड को मार्केट में उतारा गया है।
वहीं, कोवैक्सिन को हैदराबाद की भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी (NIV) के साथ मिलकर बनाया गया है।
कोवैक्सिन के फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के नतीजे
दरअसल, भारत सरकार ने 3 जनवरी को कोवैक्सिन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। तब कहा गया था कि फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के नतीजे नहीं आए हैं, इसलिए इसे क्लीनिकल ट्रायल मोड में मंजूरी मिली है। इसका मतलब ये होता है जिन लोगों को ये वैक्सीन दी जायेगी उन पर नजर रखी जाएगी।
अब कोवैक्सिन के फेज-3 क्लीनिकल ट्रायल्स के अंतरिम नतीजे आ गए हैं। इसमें 25,800 वॉलंटियर्स शामिल हुए थे। यह देश में वॉलंटियर्स के लिहाज से अब तक का सबसे बड़ा क्लीनिकल ट्रायल है।
वहीं इस कोवैक्सीन के रिजल्ट में पाया गया कि फेज-3 में शामिल 43 वॉलंटियर्स कोरोना से संक्रमित हुए। इनमें 36 प्लेसिबो ग्रुप के थे, जबकि 7 वैक्सीन ग्रुप के थे। इस आधार पर वैक्सीन की एफिकेसी या इफेक्टिवनेस 80.6% निकलकर आई।
वहीं, 4,500 वॉलंटियर्स ऐसे थे, जो पहले से ही किसी न किसी गंभीर बीमारियों से लड़ रहे थे। इन पर भी कोवैक्सिन ने अच्छा इम्यून रिस्पॉन्स दिखाया है। बता दें कि कोवैक्सिन के ट्रायल्स में 2,433 वॉलंटियर्स की उम्र 60 वर्ष या अधिक थी।
कोविशिल्ड के मुकाबले कोवैक्सीन कैसे हुई बेहतर जानिए
वैक्सीनेशन का मौजूदा नेटवर्क 2 से 8 डिग्री टेम्परेचर तक वैक्सीन स्टोर कर सकता है। इसके लिहाज से कोवैक्सिन को स्टोर करना बेहद आसान है। कोविशिल्ड के मुकाबले ये वैक्सीन ओपन वॉयल पॉलिसी के साथ मिलती है।
इसका मतलब ये हुआ कि वैक्सीन शीशी को खोलने के बाद उसका 25 से 30 दिन तक इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे वैक्सीन का वेस्टेज 10-30% तक कम होगा। वहीं कोविशील्ड वैक्सीन में यह सुविधा नहीं है। वैक्सीन की शीशी को खोलने के चार घंटे के भीतर इस्तेमाल करना जरूरी है।
इसके अलावा कोविशील्ड को पूरे वायरस को ध्यान में रखकर बनाया गया है। वायरस में छोटे-मोटे बदलाव आते हैं तो भी कोवैक्सिन का असर कम नहीं होगा। वहीं, कई रिपोर्ट्स में कहा गया है कि कोविशील्ड दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन पर बेअसर साबित हुआ है।
वहीं अगर विपक्ष की बात करें तो देश में कोवैक्सीन के इस्तेमाल को लेकर विपक्ष की ओर से काफी सवाल खड़े किए गए थे। देश में 16 जनवरी से टीकाकरण अभियान की शुरुआत हुई थी जिसमें कि लाभार्थियों को कोवैक्सीन और कोविशील्ड के टीके लगाए जा रहे हैं।
इससे पहले जनवरी में कोवैक्सीन की एक समीक्षा रिपोर्ट भी सामने आई थी जिसमें कहा गया था कि भारत बायोटेक द्वारा विकसित कोवैक्सीन टीका ब्रिटेन में मिले कोरोना वायरस के नये स्वरूप से बचाव में भी कारगर साबित होगा।
‘बायोआरएक्सिव्स’ द्वारा प्रकाशन पूर्व समीक्षा रिपोर्ट में टीके के बारे में बताया गया। न्यूयॉर्क में एक गैर लाभकारी अनुसंधान और शैक्षणिक संस्थान कोल्ड स्प्रिंग हॉर्बर लेबोरेटरी द्वारा इसे संचालित किया जाता है।