जानिए आखिर क्या है नागरिक संशोधन बिल ||Nation One||
नागरिक संशोधन विधेयक के तहत 1955 के सिटिजनशिप ऐक्ट में बदलाव का प्रस्ताव है।
इस बिल में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले गैर मुस्लिम शरणार्थियों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को नागरिकता देने का प्रावधान है।
इन समुदायों के उन लोगों को नागरिकता दी जाएगी, जो बीते एक साल से लेकर 6 साल तक भारत में आकर बसे हैं।
फिलहाल भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए यह अवधि 11 साल की है। कैबिनेट बैठक में विधेयक को मंजूरी मिल गई है।
इसे अगले सप्ताह सदन में पेश किए जाने की संभावना है।
इस बिल में पड़ोसी मुल्कों से शरण के लिए आने वाले हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।
बिल का विरोध कर रहे विपक्षी दलों ने इसे संविधान की भावना के विपरीत बताते हुए कहा है कि नागरिकों के बीच उनकी आस्था के आधार पर भेद नहीं किया जाना चाहिए।
कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट धार्मिक आधार पर नागरिकता प्रदान किए जाने का विरोध कर रहे हैं।
नागरिकता अधिनियम में इस संशोधन को 1985 के असम करार का उल्लंघन भी बताया जा रहा है, जिसमें सन 1971 के बाद बांग्लादेश से आए सभी धर्मों के नागरिकों को निर्वासित करने की बात थी।
सरकार इस बिल को अल्पसंख्यक विरोधी बताए जाने की बात को खारिज कर रही है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि पड़ोसी देशों से आने वाले 6 धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को शरण देना मोदी सरकार की सर्वधर्म समभाव की नीति का परिचायक है।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी और लेफ्ट जैसे दल इस बिल का तीखा विरोध कर रहे हैं और बीजेडी ने भी कुछ ऐतराज जताए हैं।
इसके बाद भी बीजेपी के पास लोकसभा में इस बिल को पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्या है।
यही नहीं राज्यसभा में भी अकाली दल और जेडीयू जैसे सहयोगियों का उसे साथ मिल सकता है।
पूर्वोत्तर राज्यों में यह कह कर इस बिल का विरोध किया जा रहा है कि इससे मूल निवासियों की संख्या में कमी आएगी और आबादी का संतुलन बिगड़ेगा।
इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड में इनर लाइन परमिट बरकरार रखने और असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में भी पुराने नियमों के तहत मूल निवासियों के संरक्षण का भरोसा दिया है।
बताते चलें कि यह बिल दो हजार चौदह के बीजेपी मैनिफेस्टो में शामिल था और लोकसभा में उन्नीस जुलाई दो हजार सोलह में पेश किया गया था।
जिसका विरोध प्रमुखता से इस आधार पर किया जा रहा है कि यह एनआरसी यानि नेशनल रजिस्टर आफ सिटीजनशिप जिसे कि भारत की 1951 की जनगणना के बाद बनाया गया था।
जिसके अनुसार बांग्लादेश बनने यानि पच्चीस मार्च 1971 से पहले भारत आए थे उनको ही नागरिकता दी जाएगी और साथ ही इसमें कोई धार्मिक भेदभाव नहीं किया जाएगा।