जानिए….आजादी से पहले उत्तराखंड का स्वतंत्रता आंदोलन में क्या रहा योगदान…
देहरादून : आजादी से पहले भारत में कई स्वतंत्रता आंदोलन (Freedom Movements) हुए, जिस से उत्तराखंड भी अछूता नहीं रहा। कुली बेगार और डोला पालकी जैसे बड़े आंदोलन भी उत्तराखंड में हुए। साथ ही कई बार भारत की स्वतंत्रता का स्वर भी उत्तराखंड में उठता रहा।
अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन दो प्रकार…
भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन दो प्रकार का था – एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन। भारत की आज़ादी के लिए 1757 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए, उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई।
19वीं सदी में अंग्रेजों ने अपने शासन में सबसे ऊंचाई…
1757 में पलासी के युद्ध के बाद ब्रिटिश भारत में राजनीतिक सत्ता जीत गए और यही वो समय था जब अंग्रेज भारत आए और करीब 200 साल तक राज किया। 1848 में लाॅर्ड डलहौजी के कार्यकाल के दौरान यहां उनका शासन स्थापित हुआ। उत्तर-पश्चिमी भारत अंग्रेजों के निशाने पर सबसे पहले रहा और 1856 तक उन्होंने अपना मजबूत अधिकार स्थापित कर लिया। 19वीं सदी में अंग्रेजों ने अपने शासन में सबसे ऊंचाई को छुआ।
1857 का विद्रोह’ या ‘1857 के गदर…
नाराज़ और असंतुष्ट स्थानीय शासकों, किसानों और बेरोजगार सैनिकों ने विद्रोह कर दिया जिसे आमतौर पर ‘1857 का विद्रोह’ या ‘1857 के गदर’ के तौर पर जाना जाता है।
जिनमें से कुछ प्रमुख स्वतंत्र संग्राम इस प्रकार हैं …
- 1857 के आन्दोलन का उत्तराखंड में बहुत ही कम असर था, क्योंकि गोरखा शासन की अपेक्षा अंग्रेजों का शासन सुधारवादी लग रहा था, कुमाऊॅ कमिश्नर रैमजे काफी कुशल और उदार शासक था, राज्य में शिक्षा, संचार और यातायात का अभाव था।
- चम्पावत ज़िले के बिसुंग गाँव के कालू सिंह महरा ने कुमाऊॅ क्षेत्र में क्रांतिवीर संगठन बनाकर अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन चलाया। उन्हें उत्तराखंड का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता हैं।
- कुमाऊॅ क्षेत्र के हल्द्वानी में 17 सितम्बर 1857 को एक हजार से अधिक क्रांतिकारियों ने अधिकार किया, इस घटना के कारण अनेक क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया।
- 1870 ई. में अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब की स्थापना की और 1871 से अल्मोड़ा अखबार की शुरुआत हुई, 1903 ई. में पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने हैप्पी क्लब की स्थापना की। राज्य में चल रहे आन्दोलन को संगठित करने के लिए 1912 में अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना की ।
- राज्य की सामाजिक , आर्थिक, राजनीतिक तथा शैक्षणिक समस्याओं पर विचार करने के लिए गोविन्द बल्लभ पन्त, हरगोविंद पन्त , बद्रीदत्त पाण्डेय आदि नेताओं के द्वारा 1916 में कुमाऊ परिषद का गठन किया।
- गढ़वाल क्षेत्र में स्वतंत्रता आन्दोलन अपेक्षाकृत बाद में शुरू हुआ, 1918 में बैरिस्टर मुकुन्दी लाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के प्रयासों से गढ़वाल कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ, 1920 में बापू द्वारा शुरू किए गये असहयोग आन्दोलन में कई लोगो ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया और कुमाऊ मण्डल के हजारों स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बागेश्वर के सरयू नदी के तट पर कुली-बेगार न करने की शपथ ली और इससे संबंधीत रजिस्ट्री को नदी में बहा दिया।
- 1929 में बापू और नेहरु ने हल्द्वानी, भवाली, अल्मोड़ा, बागेश्वर व कौसानी ने सभाएँ की इसी दौरान गाँधी ने अवाश्क्तियोग नाम से गीता पर टिप्पणी लिखी।
- 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में 2/18 गढ़वाल रायफल के सैनिक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में निहत्थे अफगान स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलने से इंकार कर दिया था, यह घटना ‘पेशावर कांड’ के नाम से प्रसिद्ध है।