नई दिल्ली: विस्तारवादी चीन के खतरनाक मंसूबों को देखते हुए भारत और जापान ने दोनों देशों के सशस्त्र बलों के बीच आपूर्ति एवं सेवाओं के आदान-प्रदान के लिए एक करार किया है। समझौते पर रक्षा सचिव अजय कुमार और जापान के राजदूत सुजुकी सतोशी ने हस्ताक्षर किए।
रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि इस समझौते में करीबी सहयोग के लिए रूपरेखा बनाने, सूचना के आदान-प्रदान और दोनों देशों के सशस्त्र बलों द्वारा एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं के इस्तेमाल की बात की गई है।
उन्होंने कहा कि यह समझौता भारत और जापान के सशस्त्र बलों के बीच द्विपक्षीय प्रशिक्षण गतिविधियों के साथ ही सेवाओं और आपूर्तियों के आदान-प्रदान के लिए निकट सहयोग की रूपरेखा को सक्षम बनाता है।
भारत ने इसी तरह का समझौता अमेरिका, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और ऑस्ट्रेलिया के साथ भी किया है.अमेरिका के साथ 2016 में किए गए लॉजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट के तहत भारत को रिफ्यूलिंग और जिबूती, डिएगो गार्सिया, गौम और सूबिक बे स्थित अमेरिकी सैन्य बेसों तक पहुंच की सुविधा मिली है।
2018 में फ्रांस से किए गए करार से भारतीय नौसेना को मेडागास्कर के नजदीक रियूनियन आईलैंड और जिबूती में फ्रांसीसी बेस तक पहुंच मिलती है। आस्ट्रेलिया से हुए करार से दक्षिणी हिंद महासागर क्षेत्र और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र तक हमारे युद्धपोतों की पहुंच हो जाती है।
ये सभी करार भारत के लिए इसलिए अहम हैं क्योंकि चीन तेजी से हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पैठ बढ़ा रहा है। उसने अगस्त 2017 में जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य बेस शुरू किया था। साथ ही उसे पाकिस्तान के कराची और ग्वादर बंदरगाह तक भी पहुंच मिली हुई है। इसके अलावा वह कंबोडिया, वानुअतु और अन्य देशों में सैन्य बेस बनाने की कोशिश कर रहा है।