इंचार्ज समझेंगे तब बैटरी सदैव चार्ज रहेगी : मनोज श्रीवास्तव | Nation One
अपनी बैटरी चार्ज करके रखनी होगी। बैटरी चार्ज करने से विश्व के इंचार्ज बन जायेंगे। यदि सृष्टि के कर्तव्य हेतु अपने को इंचार्ज समझेंगे तब बैटरी सदैव चार्ज रहेगी। इस चार्ज के विस्मृति होने का अर्थ है, डिस्चार्ज होना। यदि अपने को चेक करेंगे तब हमारे मन की स्थिति कभी डिस्चार्ज नहीं होगी। इसलिए स्थिति में सभी कम्पलेंन कम्पलीट होकर समाप्त हो जाते हैं। हमारे समस्त कम्पलेंन का प्रमुख कारण है हम अपने को श्रेष्ठ कर्म का इंचार्ज नहीं समझते हैं।
जो कर्म मैं करूगा मुझे देख अन्य करेंगे। यह स्लोगन धारण करके रखना है। कर्म से वृत्ति अधिक सूक्ष्म होती है। इसलिए अब केवल कर्म पर ही फोकस नहीं करना है बल्कि वृत्ति पर भी ध्यान देना है। इसे याद रखना होगा की हम अपनी वृत्ति से वायुमण्डल बदलने का इंचार्ज बनना हूँ।
श्रेष्ठ वृत्ति से चंचलता दूर होती है। कोई बच्चा तभी चंचल होता है जब वह फ्री होता है। हमारी वृत्ति भी तभी चंचल होती है जब वृत्ति में बड़े लक्ष्य या बड़े कार्य की स्मृति नहीं होती है। जैसे चंचल बच्चे को किसी बंधन में बांधने की आवश्यकता है चाहे वह स्थूल बंधन हो, चाहे वाणी का बंधन हो, चाहे प्राप्ति के लालच का बंधन हो अथवा स्नेह का बंधन हो। उसी प्रकार हमें अपने बुद्धि और संकल्प को बंधन मंे बांधना होगा।
कर्म का आधार संकल्प और वृत्ति होता है। श्रेष्ठ स्मृति की वृत्ति में शक्ति है। स्मृति को बदलने से हमारा कर्म बदल जाता है। क्योंकि श्रेष्ठ कर्म का आधार श्रेष्ठ स्मृति है। अच्छी या बुरी वृत्ति से हम अच्छे या बुरे बन जाते हैं। यदि वृत्ति को पवित्र एवं ईश्वरीय विषय से लगाते हैं तब हमारी वृत्ति की उन्नति में वृद्धि होने लगती है।
उन्नति में वृद्धि का कारण श्रेष्ठ वृत्ति है। यदि वृत्ति ऊँची है तब प्रवृत्ति भी ऊँची होगी समर्थ ईश्वरीय विषय से सर्व सम्बन्ध और सर्व प्राप्ति हो जाती है। जब एक समर्थ ईश्वरीय विषय से सर्व सम्बन्ध और सर्व प्राप्ति की विस्मृति हो जाती है तब हमारी वृत्ति भी चंचल हो जाती है। ऊँची वृत्ति होने से चंचल वृत्ति समाप्त हो जाती है। वृत्ति के श्रेष्ठ बनते ही प्रवृत्ति आटोमैटिकली श्रेष्ठ बन जाती है। इसलिए अपनी वृत्ति को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनायें ताकि यह प्रवृत्ति हमारे प्रगति का कारण बन जाय।
यदि वृत्ति श्रेष्ठ है तब हमारे चरित्र, कर्तव्य और स्थिति तीनों की स्मृति में समर्थपन आ जाता है। जहां समर्थी है वहां हमारे चरित्र, कर्तव्य और स्थिति तीनों की स्मृति, विस्मृति में नहीं बदल सकती है। यदि चरित्र, कर्तव्य और स्थिति में निर्माणता का भाव है तब विश्व निर्माण आटोमैटिकली होगा। निर्माणता से देह अहंकार स्वतः समाप्त हो जाता है।
श्रेष्ठ स्मृति में रहने पर हमारी वाणी यर्थाथ और पावरफुल हो जाती है। कोई चीज जितना शक्तिशाली होती है उसकी क्वांटिटी कम होती है, लेकिन क्वालिटी अच्छी होती है। शक्तिशाली वाणी की स्थिति में शब्द कम निकलेंगे लेकिन शक्तिशाली निकलेंगे। जैसे-जैसे शक्तिशाली बनेंगे वैसे-वैसे हमें विस्तार में जाने की आवश्यकता कम महसूस होगी। हमारे एक-एक शब्द में हजारों शब्दों का रहस्य समाया होगा।
हमारे व्यक्तित्व से व्यर्थ बोल-चाल और वाणी स्वतः समाप्त हो जायेगी। जिस प्रकार ज्ञान का सार एक छोटे बीज में समाया होता है उसी प्रकार एक शब्द भी सर्व ज्ञानों का अनुभव कराने की क्षमता रखता है। जब वृत्ति और वाणी पावरफुल होगा तब कर्म भी यर्थाथ और शक्तिशाली होगा।
चेक करें हमारी बुद्धि कहां-कहां जाती है। अपने बुद्धि और वृत्ति को लौकिक से बदलकर और अलौकिक स्मृति के बंधन में बांध लेना चाहिए। जब सर्व सम्बन्ध और सर्व प्राप्ति के बन्धन से बंध जायेंगे तब हमारी सभी प्रकार की चंचलता समाप्त हो जायेंगी। जैसे सीता को लक्ष्मण रेखा भीतर बैठने का फरमान सुनाया गया था उसी प्रकार अपनी मर्यादा की लकीर के भीतर रहने की आदत डालनी होगी। लक्ष्मण रेखा के भीतर रहने से रावण का संस्कार वार नहीं करता है।
मनोज श्रीवास्वत, देहरादून