
हाथरस कांड पर हाईकोर्ट सख्तः पूछा डीएम पर कार्रवाई क्यों नहीं,एडीजी को लताड़ा, दुष्कर्म की परिभाषा जानते हो | Nation One
लखनऊः उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस कांड में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने तीखी टिप्पणी की है. हाई कोर्ट ने कहा कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित, उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई करने की आवश्यकता है.
कोर्ट ने इस मामले में मीडिया, राजनीतिक दलों व सरकारी अफसरों की अतिसक्रियता पर भी नाराजगी प्रकट करते हुए उन्हें इस मामले में बेवजह बयानबाजी न करने की हिदायत दी है. साथ ही सरकार से पूछा कि, डीएम पर अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की गई. दूसरी ओर राज्य सरकार ने पक्ष रखा कि इस मामले में कोई भी दुर्भावनापूर्ण निर्णय नहीं लिया गया. कोर्ट ने सुनवाई पूरी होने के बाद चेंबर में लिखाने के लिए अपना आदेश सुरक्षित कर लिया है. साथ ही अगली सुनवाई के लिए दो नवंबर की तारीख मुकर्रर की है.
जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस राजन रॉय की बेंच ने मंगलवार को कार्रवाई को आगे बढ़ाते हुए राज्य सरकार को पीड़िता के परिवार को पूरी सुरक्षा देने के निर्देश दिए. साथ ही एसआइटी और सीबीआइ को भी मामले की जांच में गोपनीयता बरतने का आदेश दिया है.
बेंच ने सोमवार को हाथरस कांड में रात में मृत पीड़िता का अंतिम संस्कार किए जाने को लेकर अपने आदेश को सुरक्षित कर लिया था. हाईकोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया की शुचिता के लिए सरकार को हाथरस के डीएम प्रवीन कुमार लक्षकार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने को भी कहा है.
कोर्ट ने कहा कि एसपी को निलंबित किया गया है, डीएम के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई जबकि, उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है कि मृतका का रात में दाह संस्कार करने का निर्णय उनका अलीगढ़ के कमिश्नर, आगरा के एडीजी, आईजी अलीगढ़ व एसपी हाथरस का सामूहिक फैसला था. ऐसे में सिर्फ एसपी के खिलाफ ही कार्रवाई क्यों की गई.
हाईकोर्ट ने एडीजी ला एंड आर्डर प्रशांत कुमार व डीएम प्रवीन कुमार लक्षकार को इस बात के लिए लताड़ लगाई कि उन्होंने दुराचार जैसी गंभीर मामले में मेडिकल रिपेार्ट को लेकर बयानबाजी की और कहा कि पीडि़ता के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था. कोर्ट ने एडीजी से पूछा कि आप दुष्कर्म की परिभाषा जानते हैं, इस पर प्रशांत कुमार ने अपनी गलती भी मानी.
भविष्य में ऐसा विवाद न उत्पन्न होने पाए
कोर्ट ने कहा कि तथ्यों से प्रतीत होता है कि मृतका का चेहरा दिखाने के परिवार के अनुरोध को प्रशासन ने स्पष्ट रूप से इन्कार नहीं किया होगा. लेकिन, तथ्य यही है कि बार-बार के अनुरोध के बावजूद उनमें से किसी को उसका चेहरा दिखाया भी नहीं गया. इस प्रकार ‘गरिमापूर्ण ढंग से अंतिम संस्कार’ के अधिकार का उल्लंघन किया गया.
कोर्ट ने कहा कि हमारे समक्ष महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि परिवार को बिना धार्मिक कियाकलाप के परिवार को चेहरा दिखाए बिना आधी रात में अंतिम संस्कार करके क्या संविधान में प्रदत्त जीवन के अधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है. यदि ऐसा है तो यह तय करना होगा कि पीड़िता के परिवार की क्षतिपूर्ति कैसे की जा सकती है.
कोर्ट ने कहा कि जिला स्तरीय अधिकारियों को ऐसी परिस्थितियों के लिए सरकार की ओर से समुचित दिशानिर्देश मिलना चाहिए. भविष्य में ऐसा विवाद न उत्पन्न हो, इस बाबत भी कोर्ट विचार करेगी. अपने आदेश में अपर मुख्य सचिव के इस बयान को भी दर्ज किया कि सरकार ऐसी परिस्थितियों में अंतिम संस्कार को लेकर दिशानिर्देश जारी करेगी.
गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी से परहेज करें
जस्टिस पंकज मित्थल और जस्टिस राजन रॉय की खंडपीठ ने सख्ती से यह भी आदेश दिया है कि जो अधिकारी इस मामले की विवेचना से नहीं जुड़े हैं, वे बयान न दें क्योंकि यह भ्रम पैदा कर सकता है. कोर्ट व जांच एजेंसियां इस मामले को देख रही हैं लिहाजा गैर जिम्मेदाराना बयानबाजी से परहेज किया जाए.
अदालत ने कहा कि सरकार ने पीड़िता के परिवार के लिए मुआवजे की घोषणा की है लेकिन, सम्भवत: वह उन्हें स्वीकार नहीं है क्योंकि परिवार के एक सदस्य ने कहा कि मुआवजा अब किसी काम का नहीं. फिर भी मुआवजे का प्रस्ताव परिवार को जल्द से जल्द दिया जाए और यदि वे लेने से इन्कार करते हैं तो जिलाधिकारी किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में ब्याज मिलने वाले खाते में इसे जमा कर दें, जिसके उपयोग के बारे में हम आगे निर्देश दे सकते हैं. कोर्ट ने दो नवंबर को सचिव स्तर के एक अधिकारी, एडीजी लॉ एंड आर्डर व तत्कालीन एसपी विक्रांत वीर को भी तलब किया है.
मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझे
कोर्ट ने मीडिया की भूमिका को लेकर भी कई सख्त हिदायतें देते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करने की उसकी कोई मंशा नहीं है, पर उसे अपनी जिम्मेदारी को भी समझना होगा. कोर्ट ने कहा कि मीडिया व राजनीतिक दलों को कोई ऐसा विचार नहीं व्यक्त करना चाहिए, जिससे सामाजिक सद्भाव बिगड़े.
राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों को बात को कहते समय भी इस जिम्मेदारी को भी निभाना चाहिए.मीडिया ट्रायल पर नाराजगी जताते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि यह ध्यान रखना चाहिए कि कहीं युवती के परिवार व अभियुक्तों के अधिकारों का उल्लंघन हो.
ट्रायल पूरा होने से पहले अभियुक्तों को दोषी नहीं ठहराना चाहिए. इसी तरह किसी को पीड़िता के चरित्र हनन में भी शामिल नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने प्रकरण में जांच से जुड़े तथ्यों की रिपोर्टिंग को लेकर बेहद सावधानी बरतने की नसीहत भी दी.